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22 फ़रवरी 2009

सपने देखने न छोडो

क्या कभी सपने भी सच होते हैं? यह एक ऐसा सवाल है जो अपने आप में कई तरह के जवाब दे सकता है। किसी के सपने सच होते हैं और किसी का जीवन बस सपने देखते ही बीत जाता है। कभी-कभी इस बात पर विचार करते हैं तो लगता है कि किसी भी व्यक्ति के जीवन में सपनों का कितना महत्व है। हम सब किसी न किसी रूप में कोई न कोई सपना देखते रहते हैं (कोई कोई तो सपना??? को ही देखने में लगा रहता है, कृपया सपना नाम के लोग क्षमा करेंगे उनका नाम उपयोग करने के लिए)
एक आदमी को सपनों की महत्ता हो सकती है न ज्ञात हो पर सोचिए वो पल जब किसी काम के लिए, किसी मंजिल के लिए कोई व्यक्ति लगातार मेहनत करता है और उसको अपनी सफलता की एक छोटी सी भी आस जान पड़ती है तब सपना ही उसको सम्बल देता है। बच्चों को कुछ नया पाने का सपना, युवाओं को हर कदम सफलता प्राप्त करने का सपना, जो किसी रोजगार में लगे हैं उनको उसमें और अधिक लाभ का सपना।
देखा जाये तो सपना हर आँख को आगे बढ़ने की प्रेरणा भी देता है। हताशा और निराशा के माहौल में भी आगे बढ़ने का बल देता है। जीत के पलों में शक्ति और विश्वास देता है। यदि यह सत्य है (जैसा कि हमारा मानना है कि यह सत्य है) तो सपनों को देखने की आदत को नहीं त्यागना चाहिए। सत्य हो या न हो किन्तु इस बहाने ही सत्य के आसपास तो पहुँचा जा सकता है।
क्या पता सपने देखते देखते ही कोई सपना सत्य हो जाये और जब कल सोने के बाद आँख खुले तो अपने भारत के सुख, समृद्ध, भाईचारे, प्रेम, अहिंसा आदि गुणों से परिपूर्ण होने का सपना भी सत्य हो जाये। दुआ करो कि सब नहीं तो यही एक सपना ही सत्य हो जाये।

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