संसद में अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी एक बार फिर से सांसदों को नैतिकता और देश की सम्पत्ति की सुरक्षा का पाठ पढ़ाते दिखायी दिये। देश के सदन में जहाँ कि समूचे भारतवासियों की तकदीर का फैसला होता हो वहाँ सांसदों का आचरण अपने आपमें एक सवाल पैदा करता है। संसद की बैठकों के सम्बन्ध में व्यवस्था की गयी है कि एक वर्ष में कम से कम 100 बैठकें सम्पन्न हो सकें पर विद्रूपता देखियें कि सन् 1985-86 के बाद से ऐसा नहीं हो पा रहा है। और यह स्थिति तो इस बार और विकट तब लगी जब बैठकों ने 50 की संख्या को भी नहीं छुआ। इस तरह की अनियमितता के साथ-साथ एक विसंगति और यह दिखती है कि एक दिन के संचालन में लगभग 24 लाख रुपये का खर्च आता है। यह धनराशि सीधे-सीधे जनता के हिस्से की है और प्रत्येक चुनाव के बाद इसी खर्च का बोझ जनता के सिर पर ही आता है।
सदन में सोमनाथ चटर्जी ने तो सभी सांसदों को हार जाने का श्राप तक दे डाला पर क्या उनका ये श्राप बिना जन-जागरूकता के पूरा हो सकेगा? जनता को टी0 वी0 पर शोर करते दिखते सांसदों, विधायकों, मंत्रियों, नेताओं आदि पर गुस्सा तो बहुत आता है किन्तु चुनाव के आने पर उनकी सभी तरह की कारस्तानी, सभी तरह की गलतियों आदि को भुला कर उन्हें फिर से उपद्रव करने के लिए सदन में भेज दिया जाता है। जनता की उदासीनता इस तरह से हावी है कि देश हित में लिए जा रहे तमाम सारे निर्णयों का न तो उन्हें पता चलता है और न ही उन निर्णयों के बारे में पता चल पाता है जो नेतागण अपने लाभ के लिए लेते हैं।
लोकसभा चुनावों की आहट साफ तौर पर दिख रही है और जनता अभी से क्षेत्र, जाति, दल के नाम पर लामबन्द होना शुरू हो गयी है। इस तरह की स्थिति में चाहे हमारे सांसद या फिर विधायक सदन में किसी भी तरह का आचरण करें वे चुनावों के आते ही क्षम्य रूप धारण कर लेते हैं। जहाँ उनके क्षम्य रूप को सहजता से स्वीकार नहीं किया जा सकता है वहाँ शक्ति के सहारे ऐसा करवा दिया जाता है। बहरहाल ये रोना तो लगता है कि अब बराबर रोना पड़ेगा क्योंकि जिस तरह से राजनीति से भले लोगों का पलायन हो रहा है और जिस तरह से गलत लोगों का प्रवेश हो रहा है, जाति, क्षेत्र का बोलबाला हो रहा है वह ऐसी स्थितियों का ही जन्म देता रहेगा।
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'जिस तरह से राजनीति से भले लोगों का पलायन हो रहा है और जिस तरह से गलत लोगों का प्रवेश हो रहा है, जाति, क्षेत्र का बोलबाला हो रहा है वह ऐसी स्थितियों का ही जन्म देता रहेगा।'
जवाब देंहटाएंबंधु, राजनीति में भले लोग अब आते ही कहां हैं। यहां जो भला है वो बुरा है।
राजनीति में भले लोगों के आने के लिए किसी पार्टी कों भले चरित्र के पढे लिखें जवान लोगों को प्रत्यासी बनाना चाहिए। तब लोगों को बुरे व अच्छे मे चुनाव का विकल्प भी मिलेगा। हमारे मिडीया के लोगों को भी डरे बिना बुरे प्रतयासी खडे करने वाली पार्टीयों के बहीसकार के लिए एडवट्ाईज करना चाहिए।
जवाब देंहटाएंये नेतागण जानते हैं की हमें कुछ पढ़े लिखे और समझदार लोगों के लिए पूरे पाँच साल काम करने की बजाय , कुछ शिक्षित और अधिकाँश अशिक्षित , लालची और तात्कालिक स्वार्थ पूर्ति वाले लोग हैं ऐसे लोगों के लिए सिर्फ़ चुनाव के समय ही दौड़ धुप और प्रलोभन हेतु धन सामग्री खर्च करने से चुनाव जीता जा सकता है . बस चुनाव के समय जनता के तात्कालिक स्वार्थों और लालच को इतना भर दो की जनता अपने पाँच साल के कारगुजारियों को भूल जाए . अतः ऐसी स्थिती मैं सोम दा का श्राप मुझे नही लगता की काम करेगा .
जवाब देंहटाएंजाने कब वो दिन आयेगा जब राजनितिज्ञ इंसानों की केटेगरी में आयेंगे.
जवाब देंहटाएंकाश! सोमनाथ दा का श्राप इन्हें लग जाए।
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