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31 जनवरी 2009

कुछ सोचें साहित्य के लिए भी.....

आज बसंत पंचमी है। आज के दिन तो इस मंहगाई, भरष्टाचार, रिश्वतखोरी, परेशानी आदि से बाहर निकल कर कुछ तो सोच लिया जाए. सरस्वती पुत्रों के लिए तो ये दिन विशेष होना चाहिए. इस ख़ास दिन की एक विशेषता और है और वो है इसका महाप्राण निराला से सम्बंधित होना.

अभी हाल में ही निराला जी से सम्बंधित एक लेख पढ़ रहे थे, उसके द्वारा मालूम हुआ कि किस तरह उनके अन्तिम समय में देश के प्रतिष्ठित साहित्यकारों ने उनसे पल्ला झाड़ लिया था. कुछ ने तो उनको पागल तक कह डाला था. क्या वाकई वे पागलपन का शिकार हो गए थे या फ़िर समाज के पागलपन का शिकार बन गए थे? समाज में चलती हुई स्थिति से वे शायद समझौता नहीं कर सके और इस हालत में आ गए थे कि लोग उनको पागल समझने लगे।

हिन्दी के इस प्रतिष्ठित लेखक की इस हालत का जिम्मेवार कौन है? इस तरह का उदहारण एकमात्र निराल जी का ही नहीं है. आज भी कई ऐसे मूर्धन्य लेखक हैं जो अपने दौर में तो काफ़ी अधिक प्रतिष्ठित रहे किंतु समय के साथ समझौता न कर पाने के कारण कहीं अंधेरे में गुम गए. ये सब देखकर लगता है कि क्या आज का समय वाकई चाटुकारिता, चारण गान का है, अर्थ-प्रधान है, क्या अब साहित्य की जरूरत आम आदमी को नहीं है, क्या साहित्य अब केवल पुस्तकालयों और प्रकाशकों के लिए ही लिखा जा रहा है.............. इन बहुत से सवालों के बीच साहित्य-पुरोधाओं को कुछ सोचना होगा। जब तक वे सोचें तब तक आप सब बसंत पंचमी का आनंद लीजिये.

(अगले किसी पर्व पर फ़िर कोई याद आएगा....किसी के प्रति चिंता व्यक्त की जायेगी और फ़िर..........)

3 टिप्‍पणियां:

  1. बढ़िया लेख बसंत पर्व की हार्दिक शुभकामना आपको भी

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  2. आपको भी वसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामना।

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  3. चलिये, कम से कम पर्व के बहाने याद कर लिए जा रहे है..आने वाले समय में क्या होगा?

    वसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाऐं.

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