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02 जनवरी 2009

स्तनों में आये परिवर्तनों को नजरअंदाज न करें महिलाएँ

स्तन मानवीय देह, विशेष रूप से स्त्री देह में एक ऐसे अंग के रूप में विकसित है जो किसी महिला को अन्नपूर्णा रूप में प्रतिस्थापित करते हैं, साथ ही उस महिला के शारीरिक सौन्दर्य में वृद्धि करते हैं. किसी भी व्यक्ति की सौन्दर्य सम्बन्धी अवधारणा में आंतरिक और बाह्य सौन्दर्य के नाम पर अलग-अलग स्थितियों की संकल्पना बनाई गई है. उसके शारीरिक सौष्ठव से ज्यादा महत्त्व उसके आंतरिक गुणों को, उसके व्यवहार को दिया गया है. इसके बाद भी महिलाओं की सौन्दर्य सम्बन्धी संकल्पना में स्तनों का महत्त्व माना-समझा जाता है. ऐसा तब है जबकि शरीर का यह अंग स्त्री और पुरुष दोनों में समान रूप से पाया जाता है. इसके बाद भी दोनों में मूल अंतर यह है कि महिलाओं का यह अंग शिशुओं को भोजन प्रदान कर उन्हें जीवन देता है. 


भले ही किसी व्यक्ति के गुण सम्बन्धी व्यवहार के लिए उसकी बाह्य छवि से ज्यादा आंतरिक छवि को महत्त्व दिया जाता रहा हो मगर महिलाओं में अपनी दैहिक सुन्दरता के प्रति जो सजगता है, वह स्तनों को लेकर बहुत अधिक रहती है. वह स्तनों के विकास, उनके उभार, उनके सौन्दर्य के प्रति हमेशा सजग दिखती है. इतनी सजगता के बाद भी बहुसंखाय्क महिलाओं का अपने ही स्तनों के प्रति, उसके द्वारा होने वाले गंभीर रोग के प्रति कहीं न कहीं लापरवाही भी बरती जाती है. यह एक सामान्य सी प्राकृतिक अवस्था है कि स्त्री और पुरुष दोनों में स्तन पाए जाने के बावजूद सिर्फ महिलाओं को ही स्तनों में परिवर्तन का आजीवन अनुभव होता है. उम्र के साथ आते इन्हीं सामान्य परिवर्तनों के साथ-साथ कई बार अनेक महिलाओं में असामान्य परिवर्तन भी झलकने लगते हैं. अपनी शारीरिक सुन्दरता के मानकों में स्थापित अंग के प्रति स्वयं महिलाओं को इन असामान्य परिवर्तनों की जानकारी करते रहना चाहिए. ऐसा इसलिए क्योंकि उनके स्तनों में किसी भी तरह का असामान्य परिवर्तन किसी रोग का संकेत हो सकता है. यह रोग स्तन कैंसर या ब्रेस्ट कैंसर हो सकता है. 


चिकित्सा शोधों से स्पष्ट हुआ है कि औरतों में होने वाले कैंसर रोग में सबसे ज्यादा होने वाला कैंसर स्तन का ही है. इसे ऐसे समझा जा सकता है कि महिलाओं को होने वाले तमाम कैंसरों में एक तिहाई मामले स्तन कैंसर के होते हैं. ऐसा नहीं है कि स्तन कैंसर सिर्फ महिलाओं को ही होता है. यह खतरनाक बीमारी पुरुषों में भी होती है मगर माना जाता है कि चार सौ पुरुषों में किसी एक पुरुष को यह रोग होता है. स्त्रियों के मुकाबले पुरुषों में इसके होने की आशंका 150 गुना कम होती है. इसके बाद भी पुरुषों को भी अपने स्तनों में आने वाले परिवर्तनों के प्रति उसी तरह से गंभीर रहने की आवश्यकता है जिस तरह कि एक महिला को है. यदि किसी पुरुष के स्तन में (खासकर एक ही तरफ) कोई गांठ हो, जिसमें कोई दर्द न हो रहा हो तो यह कैंसर की गांठ हो सकती है. स्तन कैंसर स्तन की कोशिकाओं में होने वाला एक प्रकार का ट्यूमर है, जो शरीर के बाकी हिस्सों और ऊतकों को भी प्रभावित करता है.  

किसी महिला को होने वाले स्तन कैंसर का बहुत हद तक सम्बन्ध उसमें होने वाले हार्मोनल परिवर्तन से होता है. महिलाओं में ये हार्मोनल परिवर्तन उनमें होने वाली माहवारी से जुड़े होते हैं. दरअसल माहवारी का होना न होना किसी भी महिला के हार्मोंस पर निर्भर करता है. इन हार्मोंस में एस्ट्रोजन, प्रोजेस्ट्रोन आदि शामिल हैं. चिकित्सकीय शोधों से ज्ञात हुआ है कि स्तन कैंसर हार्मोन आधारित कैंसर है, ऐसे में किसी महिला की माहवारी का निर्धारण मुख्य भूमिका निभाता है. किसी महिला की माहवारी का बहुत कम उम्र में ही, लगभग ग्यारह-बारह वर्ष की उम्र में, शुरू हो जाना स्तन कैंसर की आशंका को बढ़ाता है. इसी तरह अधिक उम्र में रजोनिवृति होने से भी स्तन कैंसर का खतरा बढ़ता है. कहने का तात्पर्य यह कि यदि किसी महिला को मीनोपॉज कम उम्र में ही हो जाता है तो उनमें स्तन कैंसर होने का खतरा काफी कम होता है. स्तन कैंसर के सम्बन्ध में पारिवारिक इतिहास हालाँकि किसी कारक के रूप में नहीं रहता है तथापि यह स्तन कैंसर की आशंका को बढ़ाता है. यदि किसी परिवार में माता, बहन या बेटी को कम आयु में कैंसर हुआ हो तो स्तन कैंसर का खतरा बढ़ जाता है. इसके साथ-साथ यदि परिवार के किसी पुरुष, पिता या भाई को स्तन कैंसर हुआ हो तो भी स्तन कैंसर की आशंका बनी रहती है.

हमारी जीवनशैली बहुत हद तक स्तन कैंसर को आमंत्रित करती है. किसी महिला का अत्याधिक मोटापा स्तन कैंसर के खतरे को बढ़ाता है. इसके अलावा ऐसी महिलाएँ जिन्होंने कभी गर्भधारण न किया हो उन्हें स्तन कैंसर का खतरा अधिक रहता है. 35 वर्ष की आयु के बाद गर्भधारण करने वाली महिलाओं में भी इस कैंसर के होने का खतरा अधिक रहता है. स्तन कैंसर का एक कारण स्तनपान न करवाना भी होता है. इसके अलावा मद्यपान, हार्मोन का सेवन, विकिरणयुक्त वातावरण में कार्य की स्थिति भी स्तन कैंसर के खतरे को बढ़ाती है.


स्तन कैंसर की सही समय पर रोकथाम, उपचार के लिए महिलाओं को स्वतः ही सजग रहने की आवश्यकता है. इसके लिए महिलाओं को स्वयं ही इसकी जाँच करते रहनी चाहिए. महिलाओं को नियमित समयांतराल पर अपने स्तनों को अच्छी तरह से दबा-दबाकर, उसके चारों तरह हथेलियों के स्पर्श से टटोलते हुए नियमित रूप से देखना चाहिए कि स्तन में कहीं कोई गांठ तो नहीं है. ऐसा वह कम से कम प्रतिमाह करे ही. यदि किसी भी समय उसे कहीं भी, छोटी-सी भी गांठ भी महसूस होती है तो उसे सामान्य सी गाँठ समझने की बजाय तुरंत चिकित्सक से संपर्क करना चाहिए. 

स्तन में गांठ का होना कैंसर होने की संभावना को दर्शाता है. ऐसी दशा में चिकित्सक से तुरंत संपर्क करना चाहिए. इसके अलावा स्तन या निप्पल में किसी भी तरह का परिवर्तन होने पर, बगल में सूजन या गांठ के  होने पर, स्तन के आकार और बनावट में परिवर्तन होने पर, स्तन में एक तरफ असामान्य सूजन की स्थिति होने पर, स्तनों के आकार में असामान्यता दिखाई देने पर, निप्पल का अंदर की ओर धँसने जैसी अवस्था समझ आने पर, निप्पल और उसके आसपास की त्वचा में लालिमा के आने पर, स्तनों से दूध के अलावा पानी जैसा या खूनयुक्त स्त्राव होने पर भी तत्काल चिकित्सक से संपर्क करते हुए सलाह लेनी चाहिए. यदि महिला शिशु को स्तनपान नहीं करवा रही है और नियमित जाँच के दौरान स्तन के निप्पल से किसी तरह का कोई द्रव निकलता दिखाई दे तो भी उसे चिकित्सक की सलाह लेनी चाहिए.

चिकित्सा विज्ञान में तरक्की के बाद भी स्तन कैंसर की सर्वाधिक प्रामाणिक जाँच बायोप्सी के द्वारा ही हो पाती है. इसके अलावा मैमोग्राफी, एमआरआई या अल्ट्रासाउंड आदि ऐसी जांचें हैं को किसी भी डॉक्टर के लिए यह निर्धारित करने का काम करती हैं कि बायोप्सी करवाई जाये या नहीं. इन जांचों के द्वारा अंतिम तौर पर कभी तय नहीं किया जा सकता कि स्तन में बनी गांठ कैंसर की है या नहीं. बसे ज्यादा जरूरी बात यही है कि स्तन कैंसर की सबसे महत्वपूर्ण जांच बायोप्सी ही है. बिना बायोप्सी के कोई भी डॉक्टर पुख्तातौर पर नहीं बता सकता कि संबंधित गांठ कैंसर की है या नहीं. ऐसे में अगर स्तन कैंसर सम्बन्धी किसी भी तरह की आशंका लगती है तो अपने डॉक्टर की जांच पर सीधे बायोप्सी कराई जा सकती है. इससे स्तन कैंसर के सम्बन्ध में पुख्ता जानकारी मिल सकेगी और यदि ऐसा पाया जाता है तो उसका इलाज भी समय से किया जा सकता है. ध्यान रखना चाहिए कि समय का बढ़ना न केवल इलाज को, ऑपरेशन को बढ़ाता है वरन मरीज की उम्र को भी कम करता है.

इस स्थिति में, इस बीमारी की जकड़ में आने के पूर्व यदि जीवन-शैली को नियंत्रित रखा जाये, संयमित रखा जाये तो बहुत हद तक इस बीमारी को रोका जा सकता है. इसके लिए शरीर के वजन को संतुलित रखा जाये. नियमित व्यायाम करने की आदत विकसित की जाये. खुद को धूम्रपान एवं अत्यधिक मद्यपान से बचाया जाए. ऐसी महिलाएँ जिनको प्रसव हुआ है वे अपने शिशु को अधिक से अधिक स्तनपान करा कर इस बीमारी के खतरे को कम कर सकती हैं.



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