हिन्दू धर्म की सर्वाधिक
पवित्र और प्राचीन परम्पराओं में से एक कुम्भ का आयोजन है. इसके आयोजन के पीछे
अनेक पौराणिक, धार्मिक
और खगोलीय कारण हैं. वर्तमान में प्रयागराज में महाकुम्भ का आयोजन हो रहा है. गंगा, यमुना और सरस्वती नदियों की त्रिवेणी की भांति ही यहाँ ज्ञान, भक्ति और कर्म की त्रिवेणी का संगम है. यह समय आत्मशुद्धि, आस्था और ध्यान के लिए उपयुक्त माना गया है. पौराणिक कथाओं के अनुसार समुद्र
मंथन के समय देव और दानवों के बीच हुई रस्साकशी में अमृत की बूँदें बारह स्थानों
पर गिरी थीं. जिनमें चार स्थान पृथ्वी पर और आठ देवलोक में हैं. पृथ्वी में ये चार
स्थान प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और
नासिक के रूप में चिन्हित हैं. प्रयागराज में संगम, हरिद्वार
में गंगा, उज्जैन की क्षिप्रा और नासिक की गोदावरी नदी के तट पर कुम्भ का आयोजन
होता है.
कुम्भ की तिथियाँ
खगोलीय घटनाओं के आधार पर निर्धारित होती हैं. सूर्य और बृहस्पति ग्रह की स्थिति
का इससे गहरा सम्बन्ध है. चूँकि बृहस्पति को अपनी कक्षा में बारह वर्ष का समय लगता
है, इसलिए इसका आयोजन
प्रत्येक बारह वर्ष में होता है. प्रयागराज में कुम्भ का आयोजन उस समय होता है जब सूर्य
मकर राशि में और बृहस्पति वृष राशि में होता है. इसी तरह से सूर्य के मेष राशि में
और बृहस्पति के कुम्भ राशि में आने पर हरिद्वार में, सूर्य
के कर्क और बृहस्पति के सिंह में आने पर नासिक में तथा सूर्य के मेष राशि में और
बृहस्पति के सिंह राशि में आने पर उज्जैन में कुम्भ मेला आयोजित होता है. प्रयागराज
में दो कुम्भ पर्वों के बीच छह वर्ष के अन्तराल में अर्धकुम्भ भी होता है. नासिक
और उज्जैन में बृहस्पति के सिंह राशि में होने के कारण यहाँ के कुम्भ मेले को
सिंहस्थ भी कहा जाता है.
महाकुम्भ सनातन परम्परा
के प्रतीक, गंगा स्नान,
तीर्थ दर्शन और साधु-संतों के
त्रिवेणी तट पर आगमन, कल्पवास करने का पर्व नहीं बल्कि भारतीय संस्कृति की जड़ों से
जुड़ने का सशक्त माध्यम है. इसके साथ-साथ यह भक्ति-भाव से भगवान और भक्त के आपस
में मिलन का विराट आयोजन है. महाकुम्भ में परम्परा, मान्यता, वेदांती,
महामंडलेश्वर, संत, गृहस्थ, विद्वान, निर्गुण, सगुण आदि के माध्यम से भारतीय संस्कृति, सनातनता के विविध मनोहारी रंग, गुण, कलाएँ आदि देखने को मिलते हैं. कहीं यज्ञ हो रहा है, कहीं कथा हो रही है, कहीं ध्यान तो कहीं प्रवचन.
कहीं नागा संन्यासियों का समाधि-बोध का सुख है तो कहीं अमरत्व की चाह में त्रिवेणी
के पावन जल में डुबकी लगाती श्रद्धालुओं की भीड़. पवित्रता,
पावनता, ज्ञान, कर्म, भक्ति, साधना, ध्यान, योग, समाधि आदि से ओत-प्रोत सनातन संस्कृति के इस
विशाल आयोजन को सोशल मीडिया के कुछ अराजक तत्त्वों ने तमाशा बना दिया है.
सोशल मीडिया की संपादकत्वविहीन
कार्यशैली ने उच्छृंखलता को बढ़ाया है. इसके द्वारा महाकुम्भ में आये लाखों श्रद्धालुओं,
साधुओं, संन्यासियों, वैरागियों की भक्ति, आस्था और वैराग्य का मजाक बनाना शुरू
कर दिया गया. इनको आईआईटी का युवा साधु, माला बेचती युवती की आँखें, युवा साध्वी
का दैहिक सौन्दर्य ही आकर्षण का केन्द्र समझ आया. महाकुम्भ की पावनता, ज्ञान, भक्ति से इतर सोशल मीडिया के लिए ये लोग
फूहड़ सवालों, सेल्फी, वीडियो आदि का
केन्द्रबिन्दु बने. विडम्बना देखिये कि इसी अतिवादिता के कारण इन तीनों को
महाकुम्भ से प्रस्थान करना पड़ा. अखाड़ों के क्रिया-कलाप, नागा
संन्यासियों की समाधिस्थ भावना, साधु-संतों की ध्यान
प्रक्रिया, गृहस्थों द्वारा किया जा रहा कल्पवास, जगह-जगह होते प्रवचन, पौराणिक कथाएँ, सांस्कृतिकता आदि सोशल मीडिया के लिए महत्त्वपूर्ण नहीं रही.
ऐसा नहीं कि महाकुम्भ में पहुँचने वाला प्रत्येक साधु, संन्यासी शास्त्रों का ज्ञाता ही हो. अनेक तो पूर्ण निरक्षर भी होंगे किन्तु वे अपना सम्पूर्ण जीवन भगवद-भक्ति में समर्पित कर चुके हैं. सम्भव है कि उनके पास सोशल मीडिया के कथित चैनलों के अनर्गल प्रश्नों के उत्तर न हों. सम्भव है कि उनके पास फूहड़ कुतर्कों की काट भी न हो. उनके पास अपने आराध्य देव के प्रति श्रद्धा है, धर्म में आस्था है. ऐसे सहज लोगों के मुँह में जबरन माइक डाल कर कुछ व्यूज, लाइक आदि के लिए उन्हें अज्ञानी बताया जा रहा है. महाकुम्भ का उद्देश्य गंगा स्नान, संत दर्शन, और आध्यात्मिक शांति प्राप्त करना है. ऐसे में धर्म, ज्ञान, साधना आदि से अनभिज्ञ सोशल मीडिया के उतावले लोग कुम्भ की प्रतिष्ठा पर चोट कर रहे हैं.
शासन-प्रशासन को
चाहिए कि वह महाकुम्भ क्षेत्र में नियंत्रित मीडिया मंचों को ही अनुमति प्रदान
करें. अनर्गल रूप से सोशल मीडिया पर दिखती रील्स, वीडियो के द्वारा जहाँ महाकुम्भ की पावनता, प्रतिष्ठा, आस्था पर सवाल खड़े हो रहे हैं वहीं
मीडिया चैनलों की भूमिका, छवि भी धूमिल हो रही है. जिस तरह से सम्पूर्ण क्षेत्र की
सुरक्षा व्यवस्था में सुरक्षाकर्मी, कैमरे, आधुनिक तकनीक कार्य कर रही है, उसके माध्यम से ही असभ्य
सोशल मीडिया, यूट्यूबरों, रील्स बनाने वालों को प्रतिबंधित किया जाये. सरकार
द्वारा सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को अपमानजनक, अमर्यादित सामग्री को हटाने सम्बन्धी
निर्देश जारी करने चाहिए.
हम सभी को समझना
होगा कि त्रिवेणी संगम को जीवन के यथार्थ में उतारना कुम्भ का संदेश है. जिसमें दृश्य
और दृष्टि गंगा, यमुना की भांति प्रत्यक्ष बह रही है वहीं दर्शन सरस्वती की भांति अदृश्य
होकर प्रवाह बनाये है. जो दिखता है वह तो सत्य है ही पर जो नहीं दिखता है वह भी परम
सत्य है. महाकुम्भ केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं है बल्कि हमारी सनातन संस्कृति का प्रतीक है.
इसकी पवित्रता बनाए रखना सभी का कर्तव्य है. इसे तमाशा बनाने वालों के खिलाफ खड़ा होना
हम सभी का कर्तव्य है. कथित माइकधारियों और उनकी फूहड़ रिपोर्टिंग को रोकने के लिए
सरकार और समाज दोनों को सशक्त कदम उठाने होंगे.
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