मामला चूँकि माननीय अदालत से सम्बंधित है, उसके आदेश से सम्बंधित है इस कारण समझ नहीं आता कि इस बारे में क्या लिखा जाये, क्या कहा जाये? दिल्ली के मुख्यमंत्री को अदालत द्वारा महज इस कारण अंतरिम जमानत मिल जाती है कि उनको चुनाव प्रचार करना है. समझ नहीं आता कि ये किस तरह की न्याय व्यवस्था है जहाँ जेल में बंद व्यक्ति को महज इस कारण से अंतरिम जमानत मिल जाती है कि उसे लोकसभा चुनाव में प्रचार करना है. संभवतः ये अपनी तरह का पहला मामला होगा?
बहरहाल, अदालत के आदेश पर कोई टीका-टिप्पणी नहीं. बावजूद इसके सवाल मन में उभरता है कि क्या इस आधार पर कोई भी व्यक्ति अंतरिम जमानत पाने का अधिकारी हो जाता है? एक ऐसा व्यक्ति जो जेल में बंद है और वह चुनाव में उतरने के लिए अपनी दावेदारी प्रस्तुत करता है तो क्या उसे भी अंतरिम जमानत दी जाएगी? क्या ऐसे व्यक्ति जो अभी भी जेलों में बंद हैं और वे राजनैतिक व्यक्ति नहीं हैं, तब भी क्या उनको चुनाव प्रचार के लिए अंतरिम जमानत दी जाएगी? संभव है कि चुनाव प्रचार करना संवैधानिक अथवा मौलिक अधिकार नहीं हो किन्तु यदि माननीय अदालत किसी एक व्यक्ति को इस आधार पर राहत देती है तो फिर यह निर्णय अन्य लोगों के लिए नजीर के रूप में काम करेगा.
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