समय गुजरता रहता
है. दिन, महीने, साल भी गुजरते जाते हैं. इनके साथ-साथ तारीखें भी गुजरती जाती हैं मगर
कुछ तारीखें ऐसी होती हैं जो गुजरने के बाद भी अपनी जगह पर रुकी रहती हैं. ऐसा
नहीं कि ये तारीखें दिन, महीने, साल के
साथ आगे नहीं बढ़तीं, ये भी आगे बढ़ती हैं मगर इन तारीखों में
मिले निशान ज्यों के त्यों बने रहते हैं, जिसके कारण ऐसा
लगता है कि ये तारीख ज्यों की त्यों अपनी जगह पर रुकी हुई है. लगभग सभी के जीवन
में ऐसी कोई न कोई तारीख होती होगी, काश! ऐसी कोई तारीख किसी
के जीवन में न आये जो हर पल, हर क्षण अपने होने का दुखद
एहसास करवाती रहे. तमाम सारी दुखद तारीखों के बीच एक ऐसी ही दुखद तारीख हमारे लिए
22 अप्रैल है. ये एक ऐसी तारीख है जिसे चाह कर भी न तो हम भुला पा रहे हैं और
निश्चित रूप से ताउम्र हमारे अभिन्न में इस तारीख को भुला सकेगा.
इस तारीख में जो
होना था वो तो हो ही गया मगर इसे न भूल पाने का कारण इस तारीख को मिले वे निशान, वे ज़ख्म हैं जो हर पल साथ हैं, सोते-जागते अपना एहसास कराते हैं. एक दुर्घटना के बाद जो ज़ख्म, जो निशान, जो दर्द मिला उसके बाद बहुत से
अपनों-परायों ने सांत्वना देने के लिए, हिम्मत बढ़ाने के लिए
कहा कि समय के साथ इसे भूलने की कोशिश करो. अपने आपको काम में व्यस्त करके इस
दुर्घटना के ज़ख्म को, निशान को भूलने का प्रयास करो. चूँकि
अपने विश्वास, अपनी शक्ति पर विश्वास अखंड है तो सोचा कि एक
बार ऐसी कोशिश करने में क्या समस्या है. आखिर जब खुद को मौत के मुँह के सामने खड़ा
पाकर भी वापस लाने में किसी तरह की समस्या हमने खुद में महसूस नहीं की तो उस
दुर्घटना के ज़ख्म को, दर्द को भुलाने में क्या समस्या? यही सोचकर पिछले कुछ सालों में लगातार प्रयास किया कि इस दर्द को भुला
सकें मगर लाख चाहने के बाद भी इसे भुलाना संभव न हुआ.
यदि किसी एक दिन
के आरम्भ को सुबह से जोड़कर देखें तो आखिर इस ज़ख्म को कैसे भुला दें जबकि नींद
खुलने के बाद अपने दोनों पैरों को सामान्य स्थिति में लाने के लिए बीस-पच्चीस मिनट
तक उनकी मालिश करनी होती है? कैसे भुला दें अपनी शारीरिक अक्षमता को जबकि स्वयं को खड़ा करने के लिए एक
कृत्रिम पैर की आवश्यकता पड़ती है? कृत्रिम पैर के सहारे
दोनों पैरों के दर्द को खुद में पीते हुए दैनिक कर्म संपन्न किये जाते हैं, इसे कैसे भूला जा सकता है? घर से बाहर जाने के लिए
तैयार होने के पहले दाहिने पैर के क्षतिग्रस्त पंजे पर पट्टी के बाँधने का
अनिवार्य कृत्य करना कैसे भुला देगा कि बिना इस पट्टी के चलना संभव नहीं? रात को सोने की कोशिश में बार-बार पंजे को इधर-उधर टकराने से बचाने का
काम करते हुए नींद भी लेना, ऐसी कोशिश में कैसे भूल जाएँ 22
अप्रैल को? 2005 में हुई दुर्घटना के बाद से आज इस पोस्ट के
लिखे जाने तक एक पल, एक क्षण ऐसा नहीं गुजरा जबकि दाहिने
पंजे में, पैर में दर्द न हुआ हो तब कैसे भूल जाएँ इस दर्द
को? अपने काम के दौरान, तमाम सामाजिक, पारिवारिक, सांस्कृतिक, साहित्यिक, अकादमिक गतिविधियों के दौरान बाँए कृत्रिम पैर द्वारा दिए जा रहे कष्ट को
सहते हुए कैसे भूल जाएँ कि हमारा एक पैर नहीं है?
कई बार लगता है कि
बहुत कुछ ऐसा होता है जिसके बारे में कहना बहुत आसान होता है मगर उस कहे को
व्यावहारिक रूप देना बहुत कठिन होता है, लगभग असंभव होता है. ऐसा ही कुछ असंभव सा अब हमारे साथ जुड़ा
हुआ है. ऐसा ही आजीवन साथ रहने वाले दर्द
हमारे साथ है. हमारे शरीर का अंग न होने के बाद भी शरीर का अंग बने कृत्रिम पैर के
साथ पूरे जीवन भागदौड़ करनी है. किसी समय मैदान पर दस हजार मीटर की दौड़ लगाने वाले
एथलीट का एक कदम अब बिना छड़ी के नहीं उठता है. ऐसी तमाम स्थितियों को, दिक्कतों कि साथ लेकर एक-एक पल गुजारते समय कैसे भुलाया जा सकता है इस
तारीख को? बस आज इस तारीख को याद करते हुए शाम गुजर गई, रात गुजरने वाली है. दर्द जो हमेशा साथ रहना है,
उसके लिए क्या रोना? जो ज़ख्म ज़िन्दगी भर के लिए यारी निभाने
आया है उसे कैसे भुलाया जाये? ये भी उन्हीं मित्रों, रिश्तेदारों की तरह हैं जिनको छोड़ा भी नहीं जा सकता और जिनसे पीछा छुड़ाया
भी नहीं जा सकता.
भूलना तो संभव ही नहीं लेकिन दर्द के साथ जीते कैसे है ये ज़रूर आपसे प्रेरणा लेने लायक है।कोई दूसरा कभी इस दुर्घटना के बाद ऐसे नहीं खड़ा हो सकता है जैसे आप।
जवाब देंहटाएंजिम्मेवारियाँ बहुत कुछ सिखा देती हैं, बहुत कुछ सहन करना सिखा देती हैं.
हटाएं