देश की शैक्षणिक
व्यवस्था में लगातार किसी न किसी रूप में सुधारात्मक कदम उठाये जाते रहे हैं. समयानुसार
ऐसा किया जाना एक सतत प्रक्रिया है. उच्च शिक्षा क्षेत्र में सुधारात्मक क़दमों के
रूप में राष्ट्रीय मूल्यांकन और प्रत्यायन परिषद (नैक) की कार्यकारी परिषद की बैठक
में निर्णय लिया गया कि अब देश में उच्च शिक्षण संस्थानों को मान्यता प्रणाली (एक्रीडिटेशन
सिस्टम) के द्वारा ग्रेड नहीं दिया जाएगा. अब महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों को
ए डबल प्लस
से लेकर डी तक किसी भी प्रकार का ग्रेड नहीं मिलेगा. इसके स्थान पर उच्च शिक्षण
संस्थानों को द्विआधारी मान्यता पद्वति के द्वारा मान्यता प्राप्त या मान्यता
प्राप्त नहीं के रूप में वर्गीकृत किया जाएगा. यह व्यवस्था शैक्षणिक सत्र 2024-25
से लागू हो जाएगी.
उच्च शिक्षण
संस्थानों में ग्रेडिंग के स्थान पर मान्यता प्रणाली को दो चरणों में लागू किया
जायेगा. पहले चरण में बताया जाएगा कि संस्थान मान्यता प्राप्त है अथवा मान्यता प्राप्त
नहीं है. पहले चरण की इस प्रक्रिया के पश्चात दूसरे चरण में संस्थानों को एक से लेकर
पाँच तक के स्तर पर आँका जायेगा. इसका उद्देश्य उच्च शिक्षण संस्थानों को अच्छा
करते रहने के लिए प्रेरित करना होगा. जिस संस्थान का प्रदर्शन जिस क्षेत्र में जितना
अच्छा होगा, उसे उसी के अनुसार एक से पाँच तक की रेटिंग दी जाएगी. नैक की कार्यकारी
परिषद् का मानना है कि इस द्विआधारी व्यवस्था से अभिभावकों और विद्यार्थियों के
लिए यह पहचानना सहज हो जायेगा कि कौन सा संस्थान मान्यता प्राप्त है और कौन सा
नहीं. इसी के साथ उस शैक्षणिक संस्थान की एक से पाँच तक की रेटिंग के अनुसार वे
उसे अपने अध्ययन हेतु चयनित कर सकेंगे.
अभी तक की संचालित
व्यवस्था में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के दिशानिर्देशों के अन्तर्गत नैक
द्वारा पूरे
देश के विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों को ग्रेड प्रदान किये जाते हैं. जो विश्वविद्यालय
और महाविद्यालय नैक टीम के निरीक्षण के दौरान उनके द्वारा निर्धारित मापदंडों पर खरे
नहीं उतरते हैं, उनको ग्रेड प्राप्त
करने में मुश्किल होती है. यूजीसी के अनुसार देश के कुल 1113 विश्वविद्यालयों में से 437 के पास ही नैक मूल्यांकन ग्रेडिंग है जबकि बाकी
676 के पास नैक मूल्यांकन नहीं
है. इसी तरह देश में 43796 महाविद्यालयों
में से 9335 के पास ही नैक
मूल्यांकन ग्रेडिंग है जबकि 34461 कॉलेज अभी तक मूल्यांकन नहीं करवा सके या असफल हुए हैं. नैक एक स्वायत्त
संस्था है, जिसे 1994 में यूजीसी द्वारा स्थापित किया गया था. इसका
काम देश भर के विश्वविद्यालयों, उच्च शिक्षण संस्थानों, निजी
शिक्षण संस्थानों में गुणवत्ता को परखना, उनका मूल्यांकन करके ग्रेडिंग देना है. यूजीसी
के दिशा-निर्देशों के अनुसार सभी उच्च शिक्षण संस्थानों के लिए नैक से मान्यता प्राप्त
करना आवश्यक है. यदि किसी संस्थान द्वारा इसकी मान्यता नहीं ली जाती है तो उसे सरकारी योजनाओं
का लाभ नहीं मिलता है.
जैसा कि नैक की
कार्यकारी समिति के अध्यक्ष भूषण पटवर्धन ने कहा कि मान्यता की द्विआधारी पद्धति यह
सुनिश्चित करेगी कि ग्रेड की अस्वास्थ्यकर प्रतिस्पर्धा जड़ से समाप्त हो जाए. वह दौड़
जिसमें एक महाविद्यालय को ए डबल प्लस से सम्मानित किया गया और दूसरे को ए प्लस से सम्मानित किया जाना
था, समाप्त हो, ऐसे में सवाल यह उठता है कि क्या वाकई ऐसा हो सकेगा? इस स्तर पर आकर विचारणीय यह है कि ऐसे
संस्थान जो मान्यता प्राप्त नहीं वर्ग में आयेंगे उनके शिक्षकों, कर्मचारियों, विद्यार्थियों का भविष्य क्या होगा? उनके कैरियर की दिशा क्या होगी? शिक्षण दायित्वों
से इतर अनेकानेक कार्यों के लिए शिक्षकों को अनुमति होगी अथवा नहीं? नैक मूल्यांकन-रहित संस्थानों के भविष्य के साथ-साथ उनसे जुड़े शिक्षकों, कर्मियों, विद्यार्थियों के भविष्य पर भी समवेत रूप
से विचार किया जाना महती आवश्यकता है.
एक लम्बे समय से
यूजीसी द्वारा बार-बार निर्देशित किये जाने के बाद भी बहुसंख्यक संस्थानों द्वारा
नैक मूल्यांकन नहीं करवाया गया. इसके पीछे ऐसा नहीं कि संस्थानों की मंशा
मूल्यांकन करवाने की नहीं है बल्कि वास्तविकता ये है कि बहुत बड़ी संख्या में ऐसे
संस्थान हैं जिनका मूलभूत ढाँचा ही नैक द्वारा निर्धारित किये गए मानदंडों के
आसपास भी नहीं ठहरता है. ग्रामीण अंचलों में संचालित संस्थानों में तो स्थिति और
भी दयनीय है. मूलभूत ढाँचे के अभाव के साथ-साथ शिक्षकों की कमी, विद्यार्थियों का बहुत बड़ी संख्या
में अनुपस्थित रहना, पाठ्यक्रमों का रोजगारपरक न होने से
प्रवेश का कम होना आदि ऐसी स्थितियाँ हैं जिनके कारण भी बहुत से संस्थान नैक
मूल्यांकन में सफल नहीं हुए हैं.
विगत कुछ वर्षों
में शिक्षा के उन्नतीकरण से अधिक जोर उसके व्यवसायीकरण पर दिया गया. परिणामस्वरूप
निजी संस्थानों की भरमार हो गई, जिनमें से बहुतायत में शिक्षा व्यवस्था, शिक्षकों,
विद्यार्थियों, परीक्षा, मूल्यांकन आदि की स्थिति किसी से
छिपी नहीं है. ऐसे संस्थान धनबल की ताकत से किसी भी कार्य को पूर्ण करवाने का दम
भरते भी हैं और रखते भी हैं. इसी के चलते माना जाने लगा था कि नैक मूल्यांकन भी अब
पारदर्शी नहीं रह गया है. नवीन व्यवस्था के पहले चरण को आगामी चार महीनों में पूरा
किया जाना है. ऐसे में वे संस्थान जिनका ढाँचा ही सही नहीं है, जहाँ मूलभूत सुविधाओं का अभाव है, वे कैसे इस चरण
के लिए आवेदन कर सकेंगे? निश्चित है कि संस्थानों द्वारा
मान्यता प्राप्त करने के लिए वही अतार्किक, असंगत उपाय अपनाए
जाने की आशंका रहेगी जिनके कारण नैक मूल्यांकन को अनुपयुक्त माना जाने लगा है.
यूजीसी द्वारा उच्च शिक्षण संस्थानों की मूल्यांकन प्रणाली बदलने से इतर
प्राथमिकता यह होनी चाहिए कि संस्थान अपने मूलभूत ढाँचे में, शैक्षणिक गुणवत्ता
में, शैक्षणिक वातावरण, विद्यार्थियों की उपस्थिति में आवश्यक
सुधार करें. बिना इसके किसी भी बदलाव का बहुत सारगर्भित प्रभाव नहीं होने वाला.
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