पहाड़ों की
घुमक्कड़ी इस यात्रा के पहले भी हो चुकी थी, बावजूद इसके पहाड़ों को फिर से नजदीक से
देखने का मन कर गया. अकादमिक यात्रा के साथ-साथ घुमक्कड़ी भरी यात्रा के लिए पहले
तो कई साथी तैयार हुए मगर धीरे-धीरे कई मित्र अपनी-अपनी व्यस्तताओं के चलते
अपनी-अपनी जगह ही बने रहे. कई मित्रों के साथ बनी योजना के बाद अंततः त्रिमूर्ति
(ऋचा, अरुण और हम) ने पिथौरागढ़ की अपनी अकादमिक सह घुमक्कड़ी यात्रा का आरम्भ किया.
India’s Security Threats विषय
पर आयोजित नेशनल सेमीनार में सहभागिता के लिए चली त्रिमूर्ति के अपने-अपने
शोध-पत्र भी अलग-अलग सत्रों में प्रस्तुतीकरण के लिए चयनित थे. कोरोना की जबरदस्त
तालेबंदी के चलते लम्बे समय बाद किसी अकादमिक आयोजन में सहभागिता का भी एक उत्साह
बना हुआ था. हल्द्वानी तक रेल के सफ़र के बाद टैक्सी के माध्यम से पहाड़ों के बीच से
लहराते-झूमते पिथौरागढ़ तक जाना था. पहाड़ी सफ़र की संभावित परेशानियों से निपटने की
तैयारियों के साथ सुबह-सुबह हल्द्वानी रेलवे स्टेशन पर उतरना हुआ.
बाएँ से - अरुण, ऋचा, कुमारेन्द्र |
हल्द्वानी रेलवे स्टेशन |
हल्द्वानी रेलवे स्टेशन पर ही दशकों पुराने परिचित चेहरों से मुलाकात ने यह इत्मीनान जगाया कि मैदानी क्षेत्र से दूर इस पहाड़ी स्थान पर आयोजित सेमीनार में परिचितों से मुलाकात हो जाएगी. इसके साथ ही रेलवे स्टेशन पर ही पहाड़ों ने हमारा स्वागत झाँकते हुए वाली मुद्रा में किया. हल्द्वानी रेलवे स्टेशन पर ही नेशनल सेमीनार के विषय विशेषज्ञों से मुलाकात और पहाड़ों के स्वागत ने पिथौरागढ़ की तरफ को बढ़ते कदमों में ऊर्जा भर दी. रात भर के सफ़र की थकान मखमली हवा के साथ-साथ पहाड़ों पर बिखरी हरियाली ने दूर कर दी. टैक्सी वाले ड्राईवर रवि ने पिथौरागढ़ तक जाने के दो रास्तों की जानकारी दी तो निर्धारित हुआ कि जाना एक रास्ते से और वापसी दूसरे रास्ते से की जाएगी. बस, फिर क्या था, चल दी हमारी कार हल्द्वानी से पिथौरागढ़ के लिए हम त्रिमूर्ति को लेकर. अपनी पहली यात्रा में ही रवि ने अपने स्वभाव से इतना प्रभावित किया कि अगले पाँच-छह दिन तक वही नियमित रूप से अपनी ड्राइविंग सेवा देता रहा.
यहाँ कार ने
दौड़ना शुरू किया, वहाँ हमारे कैमरे ने, मोबाइल ने प्राकृतिक सौन्दर्य को कैद करने
के लिए अपने आपको तैयार कर लिया. घुमावदार रास्तों का आना, पहाड़ों का पास आना और
कभी दूर होना, रास्तों का कभी चढ़ाई वाला होना कभी जबरदस्त ढाल भरा होना रोमांचित
कर जाता. कभी लगता कि आसमान, बादल पलक झपकते मुट्ठी में आ जायेंगे तो कभी लगता कि
ढलान भरा रास्ता सीधे पाताल ले जाकर ही छोड़ेगा. दूरी के हिसाब से बहुत लम्बी
यात्रा न होने के बाद भी अपने घुमावदार रास्तों, पहाड़ों की अनुशासित ड्राइविंग के
चलते समय के हिसाब से बहुत लम्बी थी. सफ़र में कई जगह रुकते हुए चाय-नाश्ता-भोजन
व्यवस्था का आनंद उठाया गया तो कई जगह पूरे इत्मिनान के साथ प्राकृतिक दृश्यों को
आत्मसात किया गया. यहीं छुईमुई के पौधे और फूल ने भी मन मोहा.
छुईमुई का पौधा, फूल |
हरे-भरे पहाड़ों,
बर्फ जैसे सफ़ेद बादलों, रंगीन मकानों, नीली-हरी नदियों के साथ
घूमते-टहलते-हिलते-डुलते शाम को पिथौरागढ़ में अपने निश्चित स्थान पर पहुँचना हुआ. स्नेहयुक्त,
अपनत्व भरे आतिथ्य ने मन को, दिल को प्रफुल्लित कर दिया. सेमीनार के आयोजकों की स्नेहिल
मुलाकात और भोजन व्यवस्था से अभिभूत होकर होटल
के टैरेस पर देर रात तक बैठकर चाय की चुस्कियों के साथ-साथ पिथौरागढ़ की ठंडक,
बादलों को घूँट-घूँट अपने भीतर उतारते हुए अगले दिन के सेमीनार के लिए ऊर्जा ग्रहण
करते रहे.
पिथौरागढ़ का नजारा होटल के टैरेस से |
(क्रमशः...)
05 अक्टूबर 2022 को यात्रा उरई से कार से आरम्भ. 06 अक्टूबर 2022 की शाम पिथौरागढ़ पहुँचना हुआ.
सुंदर आरंभ
जवाब देंहटाएंBahut Sundar... Ham bhi Haldwani rahte hai aur Orai se hi hai...ab aap kabhi aaye to Jaroor milege....aapke post fb par hamesha dekhte rahte hai ham.. your photography pics is so creative or unique
जवाब देंहटाएंबिलकुल ही मिलेंगे अबकी आने पर.
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