इसे दुर्भाग्य ही कहा जायेगा कि क्रिकेट के नशीले तूफ़ान ने बहुत सारे खेलों को लोगों के मन-मष्तिष्क से मिटा दिया है. इसकी अतिशय लोकप्रियता का आलम ये है कि उसका कोई भी संस्करण कहीं भी हो रहा हो, नागरिक पागलपन की हद तक उसे देखता है. क्रिकेट के अलावा अन्य खेलों के प्रति अरुचि को वर्तमान में सहज रूप में देखा जा सकता है. इस समय चीन के हांगझोऊ में एशियाई खेल 2023 का आयोजन हो रहा है मगर इस बारे में नागरिकों के बीच वैसी चर्चा, बहस, विमर्श नहीं दिख रहा जो क्रिकेट आयोजन के दौरान दिखता है. जिस दौर में एशियाई खेलों के बारे में जानने की रुचि लोगों में नहीं है, उस दौर में यह कल्पना करना भी कठिन है कि लोगों को एशियाई खेलों के जनक के बारे में जानकारी होगी. यह आश्चर्य का विषय हो सकता है किन्तु सत्यता यही है कि एशियाई खेलों के जनक भारत के शिक्षाविद और खेल प्रशासक गुरुदत्त सोंधी थे. उन्होंने ही सबसे पहले ओलंपिक खेलों की तरह से एशियाई खेलों के आयोजन का विचार रखा. परिणामस्वरूप सन 1950 से ओलम्पिक खेलों की तरह प्रत्येक चार वर्ष में आयोजित किये जाने वाले एशियाई खेलों की योजना तैयार की गई. इस योजना का व्यावहारिक रूप अगले ही वर्ष 1951 में पहले एशियाई खेलों के रूप में दिखाई पड़ा.
एशियाई खेलों का आयोजन एशियाई
ओलम्पिक परिषद द्वारा अन्तर्राष्ट्रीय ओलम्पिक परिषद की देख-रेख में किया जाता है. इसमें केवल एशिया के
विभिन्न देशों के खिलाड़ी भाग लेते हैं. यह गर्व का विषय है कि पहले एशियाई खेलों
का आयोजन भारत कि राजधानी नई दिल्ली में किया गया था. पहले आयोजन के 1951 में
संपन्न होने के बाद दोबारा वर्ष 1982 में इनका आयोजन नई दिल्ली में ही किया गया
था. पहले
एशियाई खेलों के आयोजन में भारत सहित कुल ग्यारह देशों ने भाग लिया था. शेष दस देशों में अफगानिस्तान, नेपाल, बर्मा (वर्तमान
म्यांमार), सीलोन
(वर्तमान श्रीलंका), जापान,
इंडोनेशिया, सिंगापुर,
ईरान, फिलीपींस और थाईलैंड शामिल
थे. इस पहले आयोजन में मात्र छह खेलों- एथलेटिक्स, बास्केटबॉल, फुटबॉल, साइकिलिंग, एक्वेटिक्स और वेटलिफ्टिंग को शामिल किया गया था. इन छह खेलों की 57
स्पर्धाओं में इन ग्यारह देशों के कुल 489
एथलीटों ने विभिन्न पदकों के अपनी दावेदारी प्रस्तुत की थी.
पिछले कुछ समय
से भारतीय खिलाड़ियों, विशेष रूप से एथलीटों द्वारा शानदार प्रदर्शन किये जा रहे
हैं. उनके द्वारा वैश्विक स्तर पर अनेक प्रतियोगिताओं में पदक भी हासिल किये जा
रहे हैं. अनेक खिलाड़ी तो विश्व स्तरीय सूची में सर्वोच्च स्थान पर भी हैं. ऐसे
सुनहरे समय में भारत की तरफ से 634 खिलाड़ियों द्वारा 38 स्पर्धाओं में चुनौती पेश
की जाएगी. इतनी बड़ी संख्या में खिलाड़ियों के उतारे जाने के बाद भी भारतीय दल पदकों
की संख्या सौ पार कर लेने की उम्मीद लगाए है. इसका कारण 2018 में जकार्ता में
आयोजित एशियाड में भारतीय पदकों की संख्या है. यहाँ भारतीय दल ने 15 स्वर्ण पदकों
के साथ कुल 69 पदक हासिल किये थे. पदकों की संख्या के हिसाब से यह भारत का
सर्वोत्कृष्ट प्रदर्शन है. स्वर्ण पदक की दृष्टि से खिलाड़ियों का सर्वोच्च
प्रदर्शन 1970 में बैंकाक में आयोजित एशियाड में रहा, जबकि उन्होंने 25 स्वर्ण पदक
हासिल किये थे. इसे भारतीय खेल मेधा का असम्मान कहा जाये या दुर्भाग्य कि इतनी बड़ी
जनसंख्या के बाद भी हम अपने लिए ही सर्वाधिक पदक पाने की उम्मीद लगाए हैं, न कि
उच्च स्थान पाने की.
अभी तक आयोजित
हुए एशियाई खेलों में कभी भी भारत पहले स्थान पर नहीं आया है. पहले एशियाई खेलों
में वह दूसरे स्थान पर और चौथे एशियाई खेलों में तीसरे स्थान पर रहा था. शेष में
उसका प्रदर्शन निराशाजनक ही रहा है. एशियाड के अठारह आयोजनों के पदक और स्थान
सम्बन्धी इतिहास में अभी तक सिर्फ जापान और चीन का ही एकछत्र साम्राज्य रहा है. पहले
एशियाड 1951 से लेकर आठवें एशियाड 1978 तक पहले स्थान पर जापान का दबदबा रहा. इसके
बाद नौवें एशियाड 1982 से लेकर अठारहवें एशियाड 2018 तक चीन पहले स्थान पर बना
रहा.
भारतीय
खिलाड़ियों से भले ही सौ से अधिक पदक लाने की उम्मीद लगाई जा रही हो मगर सरकार को,
सम्बंधित अधिकारियों को, नागरिकों को अपनी-अपनी जिम्मेवारी को गम्भीरता से समझने
की आवश्यकता है. किसी एक खेल के प्रति दीवानगी का दुष्परिणाम है कि आज अन्य खेलों
में उत्कृष्ट खिलाड़ियों की संख्या उँगलियों पर गिनने योग्य भी नहीं है. अरबों की
आबादी में मात्र सौ पदकों की उम्मीद रखना घनघोर निराशाजनक स्थिति है. समय के साथ
इसे बदलने की आवश्यकता है.
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