दिल्ली सहित
कई राज्यों में नदियों के बढ़ते जलस्तर ने तबाही मचा रखी है. जलप्रवाह अनियंत्रित
रूप में बाढ़ की शक्ल में दिखाई दे रहा है. ऐसा दृश्य कोई इसी बार का नहीं है बल्कि
प्रत्येक मानसून मौसम में ऐसी स्थिति कहीं न कहीं दिखाई पड़ती है जबकि नदियों में
जलस्तर बढ़ा हुआ होता है. यही स्थिति ग्रीष्म ऋतु में उलट हो जाती है. भीषण गर्मी
में इन्हीं उफनती नदियों का जलस्तर अत्यल्प होता है. ऐसी स्थिति में राष्ट्रीय नदी
जोड़ो परियोजना पर स्वतः ही ध्यान चला जाता है. देश में अपनी तरह की इस अनूठी योजना
के द्वारा देश भर में कुल तीस रिवर-लिंक बनाने की योजना है. इन लिंक के सहारे सैंतीस
नदियों को एक-दूसरे से जोड़ा जाएगा. इस योजना को मूर्त रूप देने के लिए लगभग पंद्रह
हजार किमी लंबी नई नहरों का निर्माण भी किया जाना है.
देश
में नदियों को जोड़ने सम्बन्धी इस परियोजना का आरम्भ भले ही देर से हुआ हो मगर इसका
विचार सबसे पहले उन्नीसवीं सदी में आया था. सन 1858 में मद्रास प्रेसीडेंसी के मुख्य अभियंता आर्थर
कॉटन द्वारा पहली बार नदियों को आपस में जोड़ने सम्बन्धी विचार रखा गया था. इस
विचार के पीछे उद्देश्य था कि ईस्ट इंडिया कंपनी को बंदरगाहों की सुविधा प्राप्त
हो सके साथ ही साथ दक्षिण-पूर्वी प्रांतों में बार-बार आने वाले सूखे से भी निपटा
जा सके. कालांतर में स्वतंत्र भारत में सन 1960 में तत्कालीन
ऊर्जा और सिंचाई राज्य मंत्री के.एल राव ने इस प्रस्ताव पर विचार किया और गंगा और
कावेरी नदियों को जोड़ने का प्रस्ताव रखा. इसी क्रम में सन 1982 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने राष्ट्रीय जल विकास एजेंसी की स्थापना
की. उस समय ऐसा अनुभव किया जा रहा था कि एक एजेंसी की स्थापना के बाद शायद नदी
जोड़ो परियोजना अपने वास्तविक रूप में सामने आये मगर ऐसा नहीं हो सका. सन 2002
में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा हस्तक्षेप करने के बाद सरकार पुनः
सक्रिय हुई. अदालत द्वारा सरकार से सन 2003 तक नदियों को
जोड़ने की योजना को अंतिम रूप देने और सन 2016 तक इसे
क्रियान्वित करने को कहा गया. इसी के चलते सन 2014 में देश
की पहली परियोजना के रूप में केन-बेतवा नदी जोड़ने को कैबिनेट की मंजूरी मिली. इसके
बाद केंद्र सरकार द्वारा कोसी- मेची नदी को जोड़ने की स्वीकृति प्रदान की. केन-बेतवा
योजना के बाद इसे नदियों को जोड़ने का देश का दूसरा सबसे बड़ा प्रोजेक्ट बताया जा
रहा है.
राष्ट्रीय
नदी जोड़ो परियोजना को दो चरणों में लागू किया जाना है. इसमें एक चरण में हिमालयी
क्षेत्र की नदियों के विकास किया जाना प्रस्तावित है. इसके लिए कुल चौदह लिंक चुने
गए हैं. गंगा, यमुना, कोसी, सतलज जैसी नदियाँ
इस चरण का हिस्सा होंगी. इसी तरह से दूसरे चरण में प्रायद्वीप क्षेत्र की नदियों
को शामिल किया गया है. इसमें दक्षिण भारत की नदियों को जोड़ने के लिए कुल सोलह लिंक
बनाने की योजना है. इसमें महानदी, गोदावरी, कृष्णा, कावेरी, नर्मदा आदि को
जोड़ा जाना है. नदियों को आपस में जोड़ने का मुख्य उद्देश्य देश में सभी नदियों में
एक समान जलस्तर बनाने का प्रयास है. इससे देश के अनेक भागों में सूखे की समस्या से,
कई राज्यों में बाढ़ की समस्या से निपटना आसान हो सकता है. इस तरह की स्थिति से
दो-चार होती नदियों के आपस में जुड़ने से एक तो इनके जलस्तर में संतुलन बना रहेगा,
दूसरे बाढ़, सूखा जैसी आपदाओं में कमी आने की सम्भावना रहेगी.
नदी जोड़ो परियोजना के पाँच प्रमुख लक्ष्य निर्धारित किये गए
हैं. इन लक्ष्यों में व्यापक जल डेटाबेस को सार्वजनिक करना तथा जल संसाधनों पर
जलवायु परिवर्तन के प्रभाव का आकलन करना; जल संरक्षण, संवर्द्धन और
परिरक्षण हेतु नागरिक और सरकारी कार्रवाई को बढ़ावा देना; अधिक जल दोहन वाले
क्षेत्रों सहित कमज़ोर क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करना; जल उपयोग कुशलता में बीस प्रतिशत
की वृद्धि करना और बेसिन स्तर तथा समेकित जल संसाधन प्रबंधन को बढ़ावा देना शामिल
है. यदि इन लक्ष्यों की तरफ गंभीरता से ध्यान दिया जाये और उनको व्यावहारिक रूप से
अमल में लाया जाये तो इस परियोजना के अनेकानेक लाभ भी हैं. नदियों को आपस में जोड़ने
से उन क्षेत्रों से अतिरिक्त पानी को स्थानांतरित किया जा सकता है जो बहुत अधिक
वर्षा वाले हैं और बाढ़ की स्थिति से जूझते रहते हैं. इनके जल को स्थानांतरित किये
जाने से उन क्षेत्रों के सूखे की स्थिति से निपटा जा सकता है, जहाँ वर्षा जल कम
रहता है. इससे देश के कई हिस्सों में जल संकट को दूर करने में भी सहायता मिलेगी. इसके
साथ-साथ जलविद्युत उत्पादन में भी बढ़ोत्तरी संभव है. ऐसा अनुमान है कि इस परियोजना
के द्वारा लगभग 34000 मेगावाट बिजली पैदा की जा सकती है. नदियों
में जलस्तर के संतुलन से जल प्रदूषण नियंत्रण, नौवहन,
सिंचाई , मत्स्य पालन, वन्यजीव
संरक्षण आदि में भी सहायता मिलेगी. सिंचाई के साधन के बढ़ने की सम्भावना है. इससे अनियमित
बारिश से कृषि उत्पादन की समस्या को दूर किया जा सकेगा. इनके अलावा यह परियोजना
व्यापारिक, वाणिज्यिक रूप में भी सहायक हो सकती है. नदियों के आपस में जुड़ जाने से
अंतर्देशीय जलमार्ग परिवहन प्रणाली को विकसित किया जा सकता है.
लाभ
के इन अनेक पहलुओं के बीच अनेक तरह की आशंकाएँ भी व्यक्त की जा रही हैं. इन
आशंकाओं के बीच राज्यों के बीच जल बँटवारा एक बहुत बड़ी बाधा के रूप में उपस्थित
है. विस्थापन की, पुनर्वास की, जलमग्न की, वन्य जीवों, वनस्पतियों के नकारात्मक
रूप से प्रभावित होने जैसी अनेक समस्याएँ भी सामने आने की आशंका है. संभव है कि इस
तरह की परियोजना पूरे पारिस्थितिकी तंत्र को बदल दे. ऐसी आशंकाओं के बीच नदियों के
जोड़ने के लाभ अधिक दिखाई देते हैं. देश के धरातल पर प्रतिवर्ष उपलब्ध लगभग 690 बिलियन क्यूबिक मीटर जल का मात्र पैंसठ प्रतिशत जल ही उपयोग में आ पाता
है, शेष जल बहकर समुद्र में चला जाता है. स्पष्ट है कि नदियों को आपस में
जोड़ना नदी-जल का अधिकतम उपयोग सुनिश्चित करने का एक तरीका है. इसके प्रति सभी को
गंभीरता से सहयोगी बनने की आवश्यकता है.
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