यदि कोई दोस्त यदि वाकई में आपका दोस्त है तो
उसका दोस्त होना आपको प्रसन्न कर देता है. दोस्तों के मामले में, दोस्ती के मामले
में हम बहुत सौभाग्यशाली रहे हैं. दोस्त हमेशा ऐसे मिले हैं जो वाकई दोस्ती के
काबिल रहे, जिनकी दोस्ती पर गर्व किया जा सकता है. आप सभी में से बहुत से लोग ऐसे
होंगे जिनको दोस्त की, दोस्ती की असली दौलत मिली होगी. ऐसे दोस्तों के साथ एक-दो
मिनट का पल भी बहुत सुखद और मन को स्फूर्ति देने वाला होता है.
आज के दौर में जबकि हम सभी अपने-अपने कामों में
व्यस्त हैं, अपने परिवार में व्यस्त हैं, अपनी एक रूटीन दिनचर्या में व्यस्त हैं,
ऐसे समय में यदि आपको कोई मित्र आपके ऐसे शौक, आपके ऐसे काम को याद रखे हो जो तीन
दशकों से अधिक समय पुराना हो तो आश्चर्य होना स्वाभाविक है. एक गणितीय आकलन कीजिये
वर्ष 1983-84 से आज 2023 के बीच के समय का. लगभग चालीस वर्ष का समय बीच में निकल
गया. ऐसे में आपको भी आश्चर्य होना चाहिए कि यदि कोई दोस्त आज से चालीस साल पहले
की बात को, काम को स्पष्टतः याद रखे हो. यह आश्चर्य उस समय और भी ज्यादा हो जाता
है जबकि आपको इसकी जानकारी हो कि अपने इस दोस्त से आप नियमित भले मिल रहे हों मगर
अपनी व्यक्तिगत रुचियाँ, अपने शौक आदि उसके साथ बाँटे न जा रहे हों.
ऐसा पढ़ कर आप लोग संशय न करने लगिएगा. पता नहीं
आप सबके पास ऐसे मित्र हैं या नहीं पर हमारे पास ऐसे दोस्त हैं जिनके साथ मुलाकात
किसी न किसी विशेष आयोजन पर होती है. कभी किसी त्यौहार पर, कभी किसी समारोह में,
कभी किसी वैवाहिक कार्यक्रम में तो कभी किसी अन्य पारिवारिक कार्यक्रम में. उन
मित्रों से भले ही पल-पल की बातें शेयर न की जाती हों, भले ही उनको अपनी नितांत
गोपनीय, नितांत व्यक्तिगत जानकारी दी जाती हो मगर उनके साथ दोस्ताना सम्बन्ध में
कोई कमी नहीं होती है, उनके साथ दोस्ती का जज्बा बीते दिनों की तरह ही बना रहता
है. हमारे ऐसे बहुत से दोस्त हैं जो आजकल अपने रोजगार, अपनी आजीविका के सम्बन्ध
में उरई से बाहर हैं. बहुत से मित्र ऐसे हैं जो उरई में ही हैं मगर व्यस्तता के
कारण उनसे मिलना-जुलना यदा-कदा भले होता हो मगर दोस्ती में, दोस्त होने के अंदाज
में कोई कमी नहीं आई है.
बहरहाल, जो बात आपको बताना चाह रहे थे, वो दोस्तों
के चक्कर में रही जा रही है. बचपन के अपने स्केचिंग, पेंटिंग के शौक को जब-तब समय
मिलने पर पूरा करते रहते हैं. इस बार जून की छुट्टियों में लगभग रोज ही किसी न
किसी रूप में स्केचिंग की जा रही है. कभी पेन्सिल से तो कभी सीधे पेन से. ऐसे में
एक दिन विचार आया कि कोई छोटी सी डायरी आकार की स्केच बुक/डायरी ले ली जाये. उसी
पर स्केच बनाने से वे सभी एक जगह सुरक्षित रहेंगे. बाजार में इस तरह की किसी स्केच
बुक/डायरी के बारे में पता किया तो परिणाम शून्य मिला. अब समझ नहीं आया कि अपने इस
शौक को कैसे अपने सोचे हुए ढंग से अंजाम दिया जाये. इसी सब में ध्यान आया कि
व्यापारी, दुकानदार बही खाता सम्बन्धी जिस किताब का उपयोग करते हैं, उसके छोटे आकार
से हमारा काम बन सकता है. अपने परिचित की एक दुकान पर अपनी बात रखी, उन्होंने
तुरंत पुस्तकाकार एक बही खाता हमें थमा दिया. उपयोग करके उसकी उपयोगिता को परखने
के उद्देश्य से वह लाल किताब हमने खरीद ली.
इसके बाद जब हम अपने स्कूटर में पेट्रोल डलवाने
गए तो वहाँ अपने मित्र से मुलाक़ात हो गई. वह हमारे साथ कक्षा छः से पढ़ा है. ये समय
संभवतः 1983-84 का रहा होगा. पेट्रोल डलवाने के लिए जैसे ही हमने अपने स्कूटर की
सीट ऊपर की तो उसको वह बही खाता पुस्तिका दिख गई. उसने आश्चर्य से पूछा तुमको क्या
काम इस बही खाते का? जैसे ही हमने उसे बताया कि पेंटिंग, स्केचिंग करने के लिए
लिया है तो वह बहुत ही आश्चर्य से पूछने के अंदाज में बोला कि कक्षा छ, सात, आठ के
शौक अभी तक चल रहे हैं? हमने जोर का ठहाका लगाया और बताया कि वे शौक तो चल ही रहे
हैं, और नए शौक जुड़ भी गए हैं. इसके बाद आश्चर्यचकित होने की बारी हमारी थी जब
उसने सवाल किया कि अभी भी तिरछी राइटिंग में लिखते हो? असल में उस समय अपने
फाउंटेन पेन की निब को तिरछा काटकर उसके सहारे कैलीग्राफी की जाती थी. तब न हमें
मालूम था कि उस लिखने की स्टाइल को क्या कहते हैं और न ही हमारे मित्र को. उसकी
याददाश्त को शाबासी देते हुए उसे बताया कि सामान्य लेखन तो सामान्य ढंग से ही होता
है मगर अभी भी तिरछी राइटिंग में भी लिखते हैं.
असल में उस समय हमारी क्लास में बहुत कम बच्चे
ऐसे थे जिनकी हस्तलिपि अच्छी, सुन्दर थी. उन बच्चों में एक हम थे और इसी कारण से
कक्षा के बहुत से बच्चों की कॉपी में, किताबों में, प्रैक्टिकल बुक में नाम लिखने,
डिजाईन बनाने का काम हमारे पास रहता था. अब जबकि कंप्यूटर के कारण से लोगों का
लिखना लगभग बंद हो चुका है, तब भी हम नियमित रूप से लिखते हैं. ये बात उस दिन बड़ी
न लगी जब हमारे मित्र ने हमारी चालीस बरस पुरानी बात को याद दिलाया. ये वाकई बहुत
ज्यादा ख़ुशी की बात है. सबके लिए हो या न हो पर हमारे लिए अवश्य है कि कम से कम
हमारे मित्र तो हमारी किसी विशेषता को आज भी याद रखे हैं.
बढ़िया,सिध्दहस्त है आप स्मृतियों को सहेजने में तो आपके गुणो के कारण लोगो की स्मृतियों में भी आप स्थान बना लेते है।
जवाब देंहटाएंस्मृतियाँ ही शेष रह जाती हैं, इसलिए उनको सँभाले रहते हैं।
हटाएं