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30 अप्रैल 2023

नक्सली हिंसा रोकने को बने कारगर रणनीति

छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में नक्सलियों ने विस्फोटक के द्वारा हमला करके ग्यारह जवानों मौत की नींद सुला दिया. डिस्ट्रिक्ट रिजर्व गार्ड के जवान एक ऑपरेशन को अंजाम देकर वापस लौट रहे थे, उसी समय उन पर आईईडी की सहायता से हमला किया गया. बस्तर में नक्सलियों ने इस समय टैक्टिकल काउंटर अफेंसिव कैंपेन (टीसीओसी) चला रखा है. इसके अंतर्गत नक्सली अक्सर बड़े हमले करते हैं. इस कैंपेन के चलते सेना पहले से ही वहाँ अलर्ट मोड पर है, इसके बावजूद भी नक्सली अपना हमला करने में कामयाब रहे. देश में आतंकवादक्षेत्रवादवर्ग-संघर्ष के साथ-साथ नक्सलवाद भी शासन-प्रशासन के लिए नासूर बन गया है. यह भी एक तरह का आतंकवाद बना हुआ है. समय के साथ बढ़ते शक्ति प्रदर्शन ने नक्सलवाद को हिंसात्मक बना दिया है. प्रसिद्ध नेता माओत्से तुंग की आदर्श खूनी क्रांति की उक्ति पावर कम्स आउट ऑफ़ द बैरल ऑफ़ ए गन (सत्ता बंदूक की नली से निकलती है) के पार्श्व में नक्सलवाद के बीज आरोपित होते दिखते हैं. वामपंथी विचारधारा से लैस माओत्से सदा ही आदर्श खूनी क्रांति के समर्थक रहे और यही कारण है कि किसी न किसी रूप में उनकी विचारधारा कोउनको आदर्श मानने वालों ने भी किसी न किसी तरह से खूनी क्रांति के रास्ते को अपनाना उचित समझा. 


पश्चिम बंगाल के नक्सलवाड़ी गाँव में सन् 1967 में भूमिहीनों, किसानों द्वारा एक तरह का वर्ग-संघर्ष भू-स्वामियों के विरुद्ध आरम्भ हुआ था. इस संघर्ष को मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के तत्कालीन जिला स्तरीय नेता चारू मजूमदारकानू सन्याल तथा जंगल सन्थाल ने नेतृत्व प्रदान किया. सन् 1967 में किसानोंमजदूरों और जमींदारों के बीच का वर्ग-संघर्ष एक आन्दोलन के रूप में तीव्रता पकड़ने लगा. कभी पश्चिम बंगाल के चार जिलों में फैला यह आन्दोलन लगातार अपने कार्य-प्रभाव क्षेत्र का विस्तार करता रहा. आँकड़ों के अनुसार नक्सलवाद देश के बीस राज्यों के दो सौ से अधिक जिलों को अपने प्रभाव में ले चुका है. पश्चिम बंगाल से शुरू इस खूनी आन्दोलन ने छत्तीसगढ़झारखण्डआंध्रप्रदेशउड़ीसाबिहारकर्नाटकउत्तर प्रदेश आदि राज्यों में अपना प्रभाव कहीं कमकहीं ज्यादा दिखाया है. इस कारण से अनेक नक्सली संगठनों ने अलग-अलग राज्यों में न केवल अपना अस्तित्व बनाया है बल्कि वहाँ हिंसात्मक कार्यवाहियाँ अंजाम दी हैं. इन संगठनों ने शक्ति प्रदर्शन के लिए अकारण हत्याओं के साथ-साथ धन उगाहीअपहरणलूटमार जैसी घटनाओं में अपनी संलिप्तता बनाई. नक्सलवाद अब एक आन्दोलन के स्थान पर आतंकवाद अथवा सशस्त्र खूनी हिंसा के समकक्ष खड़ा हो गया है.




देखने-सुनने में यह समस्या जितनी भयावह दिखती है वास्तविकता में उससे कहीं अधिक भयावह है. आये दिन पुलिस थानों पर हमलेरेलवे स्टेशनों को जलाया जानास्कूलोंअस्पतालों को बन्द करवा देनाबारूदी सुरंग बिछानाचुनावों में हिंसा करनाबसों-ट्रेनों में बम धमाकेसरकारी अधिकारियों को मारनाविकास कार्यों में बाधा खड़ी करनाअपहरणहत्या आदि दर्शाते हैं कि नक्सली आन्दोलन अब आतंकवाद बन गया है. सामान्यतः लोगों ने नक्सली आन्दोलन को आदिवासियों द्वारा अपने हित और हक के लिए चलाया जाने वाला आन्दोलन मान रखा थायहाँ तक कि आज भी बहुत से लोग इसको हिंसात्मक आन्दोलन अथवा आतंकी घटना मानने को तैयार नहीं हैं. इसके परिप्रेक्ष्य में देखा जाना चाहिए कि कैसे नक्सली बन्दूक उठाये सिर्फ और सिर्फ अपनी शक्ति दिखाने के लिए हमले कर रहे हैं. हाल के वर्षों में सैन्य बलों के साथ-साथ क्षेत्र के भोले-भाले नागरिकों की, हिंसक कार्यवाहियों में मासूम बच्चों, वृद्धों की हत्या करनाआदिवासियोंजंगलवासियों पर जबरन नक्सली आन्दोलन से जुड़ने का दवाब बनाना दर्शाता है कि जंगलवासियों की समस्या का समाधानआदिवासियों के हकों की प्राप्तिसामाजिक समरसता की चाह उनके लिए अब गौण हो चले हैं.


ऐसे में सवाल यह उठना स्वाभाविक है कि क्या नक्सली समस्या से निपटने का कोई उपाय नहीं हैक्या देश के एक जिले से फैलता हुआ लगभग चालीस प्रतिशत भू-भाग पर फैल चुका नक्सलवाद समूचे देश को अपनी गिरफ्त में ले लेगाजंगलवासियोंआदिवासियों के नाम पर चलाया गया आन्दोलनजमींदारों के शोषण से मुक्ति पाने के लिए चलाया गया आन्दोलनशोषितों को समाज में समानता दिलवाने के लिए प्रारम्भ हुआ आन्दोलन क्या महज स्वार्थपूर्ति में लगा रहेगासमानतासामाजिक समरसताभेदभावन्याय जैसी विशिष्ट अवधारणा को लेकर चला संघर्ष क्या हिंसाअपहरणहत्या जैसी आतंकी घटनाओं में परिवर्तित हो जायेगाइन सवालों के आलोक में सरकारी प्रयासों की तरफ भी ध्यान देना होगा. ऐसा नहीं है कि सरकार सिर्फ दमनात्मक रूप से ही नक्सली हिंसा को दबाना चाहती है. उसके द्वारा वर्ष 2013 में आजीविका योजना के तहत रोशनी नामक विशेष पहल की शुरूआत की गई थी, ताकि सर्वाधिक नक्सल प्रभावित ज़िलों में युवाओं को रोज़गार के लिये प्रशिक्षित किया जा सके. हालिया नक्सली हमले में शहीद हुए रिजर्व गार्ड के रूप में उन्हीं युवाओं को भर्ती किया जाता है जो नक्सली हिंसा छोड़कर समाज की मुख्यधारा से जुड़ते हैं. इसके अलावा सरकार द्वारा सर्वाधिक नक्सल प्रभावित तीस ज़िलों में जवाहर नवोदय विद्यालय और केंद्रीय विद्यालय संचालित किये जा रहे हैं. हिंसा का रास्ता छोड़कर समर्पण करने वाले नक्सलियों के लिये सरकार पुनर्वास की भी व्यवस्था कर रही है.


इन प्रयासों के साथ ही सरकार को चाहिए कि आदिवासियों और जंगलवासियों में यह विश्वास पैदा करें कि जंगल की सम्पत्तिवन-सम्पदा उनकी अपनी हैउस पर उन्हीं का हक है. केन्द्र सरकार कोराज्य सरकारों को इस तरह के कार्य करने होगे जो विश्वास की परम्परा को बनाये रखते हुए नक्सली आन्दोलन से जुड़े लोगों को राष्ट्र कीविकास की मुख्य धारा में शामिल कर सकें. पुलिस सत्रांश सेना में नवयुवकों की भर्ती लगातार की जा रही है. इन संगठनों में भर्ती के इच्छुक युवकों को सामान्य सा पैकेज न देकर उनको पूर्ण कालिक रोजगार देकर राष्ट्र की मुख्यधारा से जुड़ने का अवसर देना चाहिए. सरकार और नक्सलियों के समर्थक इसे लेकर एकमत हैं कि सुलह का रास्ता बातचीत के बाद निकलता है. ऐसे सरकारी प्रयासों के बीच नक्सलियों को हिंसा का रास्ता छोड़कर वार्ता के लिए आगे आना चाहिए. इसके लिए नक्सलियों को अपना एक सर्वमान्य नेता स्वीकार करना होगा. उनको समझना होगा कि शांति का रास्ता एक व्यवस्थित मन्त्र और तन्त्र के द्वारा ही निकलता है. नक्सली समस्या का हल भले ही हिंसा से न होवार्ता से हो पर उसे भी पूर्ण संकल्प और दृढ़ता के साथ करना होगा. एक बात सरकार कोशासन कोप्रशासन कासशस्त्र बलों को और स्वयं नक्सलियों को भी समझनी होगी कि संकल्प का कोई भी विकल्प नहीं होता और प्रशासन से बढ़कर कोई भी तन्त्र नहीं होता है. 

 






 

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