कुछ तारीखें ऐसी
होती हैं जिनको लाख कोशिशों के बाद भी भुलाना संभव नहीं होता है. वे तारीखें अपने
आप सम्बंधित घटनाओं को किसी चलचित्र की तरह आँखों के सामने रख देती हैं. हमारे
अपने जीवन में ऐसी कोई एक-दो नहीं बल्कि बहुत सारी तारीखें हैं, जिनको चाह कर भुलाया नहीं जा सकता
और यदि भूलने की कोशिश भी करते हैं तो उनको भूल नहीं पाते हैं. ऐसी ही अनेक
तारीखों की तरह आज, 16 मार्च की तारीख है. आज के दिन हमारे
सिर से पिताजी का साया हमेशा के लिए हट गया था. सामान्य परम्परा में यह मन को
संतुष्टि देने वाली बात होती है कि पिताजी भले ही शारीरिक रूप से हमारे बीच नहीं
हैं, पर वे आत्मिक रूप में हमारे साथ हैं. यह सोच, यह
मानसिकता खुद को कमजोर होने से बचाती है.
बहरहाल, पिताजी का जाना हमारे लिए गहरी चोट
जैसा था. खुद को नवजीवन की राह पर उतारे अभी महज एक वर्ष ही बीता था, अभी खुद ही
जिम्मेवार होने जैसा कोई एहसास अपने में जगा नहीं पाए थे कि बहुत बड़ी जिम्मेवारी
हमारे कंधों पर आ गई थी. विगत 18 सालों में कोई दिन ऐसा नहीं बीता कि पिताजी की
कमी को महसूस न किया हो, इसके साथ ही किसी न किसी रूप में
उनको अपने साथ बने रहने का भाव भी बनाये रखा है. उनके न होने के भाव ने जहाँ बहुत
बार भावनात्मक रूप से कमजोर किया तो उनके साथ रहने के भाव ने आत्मविश्वास बनाये
रखा.
बहुत कुछ सोचा था
पिताजी के बारे में लिखने को मगर आँखों के धुँधलेपन ने ऐसा करने नहीं दिया. बैठे-बैठे
तमाम एल्बम, अनेक फोटो
देखकर बीते दिनों को याद कर लिया गया. अब फोटो के रूप में बस यही यादें शेष हैं, बस यही यादें ही साथ हैं.
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