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25 फ़रवरी 2023

गालियाँ देने का फैशन

बीते कुछ वर्षों में जिस तरह से ओटीटी प्लेटफ़ॉर्म ने अपना अशालीन रंग दिखलाया है उसका सर्वाधिक नकारात्मक असर बच्चों पर, किशोरों पर देखने को मिल रहा है. तकनीकी भरे दौर में हर हाथ में स्मार्ट फोन और इंटरनेट के होने के कारण समूचा विश्व सबकी मुठ्ठी में समाहित है. मुठ्ठी में समाये इस विश्व में अब कुछ भी गोपन नहीं रह गया है. इसी अगोपन ने ओटीटी के बहुसंख्यक कार्यक्रमों, वेबसीरीज की अश्लीलता को भी सार्वजनिक कर दिया है. इन वेबसीरीज के पल-पल बदलते दृश्यों में, बात-बात पर गालियों भरे संवादों के आने ने बच्चों, किशोरों के दिल-दिमाग में गालियों के प्रति एक अजब सा आकर्षण पैदा कर दिया है.


ओटीटी प्लेटफ़ॉर्म पर बनने वाले कार्यक्रम हों या फिर फ़िल्में, सभी में वास्तविकता दिखाने के नाम पर गालियों को जैसे ठूँसा जाने लगा है. इसके साथ-साथ सोशल मीडिया पर बने अनेकानेक चैनलों पर भी सार्वजनिक रूप से गालियों का दिया जाना होता है, अश्लील भाव-भंगिमा, शब्दों के साथ प्रस्तुतियाँ दी जा रही हैं. इनके इस तरह से सार्वजनिक होते रहने का दुष्परिणाम यह निकल रहा है कि गालियों को लेकर, अश्लील बातचीत को लेकर समाज में जिस तरह की शर्म, लिहाज बना हुआ था, वह लगभग समाप्त हो गया है. कम उम्र के युवाओं में बात-बात पर गालियाँ दिया जाना आम हो गया है. बच्चों में, किशोरों में अपने हमउम्र दोस्तों के साथ बातचीत में गालियों का प्रयोग करने के पीछे मानसिकता उनके साथ वैमनष्यता करने जैसी नहीं होती है. जरा-जरा सी बात पर अशालीन शब्दों का प्रयोग करने के पीछे उनकी मंशा सामने वाले को अपमानित करने की नहीं होती है. वे ऐसा महज उस आकर्षण के वशीभूत करते हैं, जिसे उन्होंने विभिन्न कार्यक्रमों में, सोशल मीडिया के मंचों पर देखा होता है.  




समाज में एक सामान्य सी धारणा बनी हुई है कि एक बच्चा आज्ञाकारी होगा. वह बड़ों का आदर-सम्मान करने वाला होगा. युवावस्था आने तक वह अपने भीतर ऐसे गुणों को धारण कर चुका होगा जो समाज, परिवार के हित में होंगे. बहुतायत में ऐसा करने वाले बच्चे मिलते भी हैं. किशोरावस्था का दौर अत्यंत ही संवेदित और बेहद महत्वपूर्ण होता है. किसी भी बच्चे का व्यक्तित्व विकास इसी दौर में होता है. इसी कारण से इस दौर में बच्चों का गालियों की दिशा में जाना, अश्लील शब्दावली की तरफ भटकना चिंतनीय है. बहुतेरे किशोर इन्हीं सबके चलते अनैतिक संबंधों के बनाने की हद तक चले जाते हैं. ऐसे में किशोर उम्र में उनकी तरफ विशेष ध्यान देना आवश्यक है.


ऐसे में सवाल यही उठता है कि बच्चों में, किशोरों में इस तरह के अशालीन व्यवहार को करने के पीछे उत्प्रेरक बने इन कार्यक्रमों से बचने का क्या रास्ता है? यह बात वर्तमान दौर में पूरी तरह से सही है कि वैश्विक खुलेपन के दौर में अब किसी विषय को, किसी जानकारी को परदे में रख पाना संभव नहीं रह गया है. तकनीक के बहाव भरे इस दौर में इन बच्चों की ऊर्जा को, उनके आकर्षण को उचित दिशा में मोड़ने का प्रयास किया जाना चाहिए. यह विचार करना अनिवार्य होना चाहिए कि जिस तरह के कार्यक्रम इस आयुवर्ग के बच्चों को उकसा रहे हैं, उनसे बच्चों को दूर कैसे रखा जाये. इस बिन्दु पर आकर स्वयं अभिभावकों को विचार करने की आवश्यकता है कि कहीं उनके द्वारा तो इन बच्चों के लालनपालन में कोई कमी तो नहीं रह जा रही है?


वर्तमान में जिस तेजी से नगरीकरण तथा औद्योगिकरण ने हर व्यक्ति को अपने चपेट में लिया है, उसने सभी को धन कमाने की अंधी दौर में धकेल दिया है. इससे भी परिवार अपने ही बच्चों पर नियंत्रण रखने में तथा उनको संस्कारित करने में लगभग असफल हुए हैं. समयाभाव में अपने ही बच्चों को उनकी वैयक्तिक स्वंतत्रता के नाम पर बच्चों को, किशोरों को समय से पूर्व बड़ा हो जाने दिया है. इसने बच्चों में नैतिक मूल्यों का क्षरण किया है. इस बात को परिवारों को, अभिभावकों को समझना होगा कि बच्चे ही देश का भविष्य हैं. उनका संस्कारवान होना, शालीन होना, सभ्य होना इसलिए भी आवश्यक है क्योंकि वे इस समाज की, इस देश की धरोहर हैं. किसी भी समाज और देश का भविष्य इन्हीं के कंधों पर अपनी विकासयात्रा को पूरा करता है. ऐसी स्थिति में न केवल सरकारों की जिम्मेवारी है बल्कि परिवार की, समाज की, अभिभावकों की भी जिम्मेवारी है कि वे बच्चों के, किशोरों के, युवाओं के सर्वांगीण विकास के लिये एक स्वस्थ्य सामाजिक, सांस्कृतिक वातावरण प्रदान करें. मनोरंजन के नाम पर जिस तरह से अशालीनता, अश्लीलता, गालियाँ, अनैतिक संबंधों का प्रदर्शन सार्वजनिक रूप से किया जा रहा है, उस पर नियंत्रण लगाया जाये.







 

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