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15 दिसंबर 2022

होंठ थक गये झूठी हँसी बिखेरते - 2250वीं पोस्ट

ग़म छिपाने को

सीखना है दूसरा हुनर,

होंठ थक गये

झूठी हँसी बिखेरते।

 

छिपाये थे राज

बड़ी ही खामोशी से,

आँखें कह गईं सब

भावनाओं में बह के।

 

बात होती उनसे

मगर अधूरी रहती,

कैसे हो पूरी

यही बात न समझे।

 

इक उम्र मिली

चार दिन के लिए,

जन्मों की कहानी

उनसे कैसे कहते।

 

हथेलियों में थामे

हथेलियों का एहसास,

उनकी उँगलियों को

फिसलता देखते रहे।


(इस ब्लॉग की 2250वीं पोस्ट)





 

2 टिप्‍पणियां:

  1. बढ़िया कविता और संख्या आपकी ब्लॉग पोस्ट्स की
    दोनो ही ऊँचाई छुए।

    जवाब देंहटाएं
  2. अच्छी जानकारी !! आपकी अगली पोस्ट का इंतजार नहीं कर सकता!
    greetings from malaysia
    let's be friend

    जवाब देंहटाएं