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08 अप्रैल 2022

सोशल मीडिया से बढ़ता अकेलापन

 हम सभी लोग अक्सर सामान्य बातचीत में आपस में पनपते जा रहे खामोश माहौल की चर्चा करने लगते हैं. यह चर्चा कहीं भी, कभी भी शुरू हो जाती है. चर्चा तो हो जाती है, चर्चा में लगभग सभी लोगों का शामिल होना भी हो जाता है मगर उस चर्चा का कोई सकारात्मक पहलू सामने नहीं आता है. ऐसा नहीं है कि चर्चा एकपक्षीय रहती हो. चर्चा में अकेलेपन के बहुत सारे बिन्दुओं पर गौर किया जाता है, उनसे सम्बंधित पहलुओं पर भी रौशनी डाली जाती है. इसके बाद भी ऐसा क्या हो जाता है कि समाज में लोगों के बीच पसरा अकेलापन दूर होने का नाम नहीं लेता? कहीं ऐसा तो नहीं कि इंसान स्वयं ही अपना अकेलापन दूर करने की मानसिकता नहीं रख रहा है?


इधर विगत कुछ वर्षों से लोगों के अकेलेपन, बच्चों की कार्यप्रणाली, उनकी मानसिकता आदि पर एक तरह का अघोषित अध्ययन बना हुआ है. ये नहीं कहा जायेगा कि यह अंतिम सत्य है मगर यह निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि हम सबके सोशल मीडिया में आवश्यकता से अधिक व्यस्त हो जाने ने अकेलेपन को बढ़ाया है. सोशल मीडिया के बहुत सारे मंचों का उपयोग हम सभी लोग जानकारियों के, सूचनाओं के आदान-प्रदान के लिए करते हैं. ऐसा करने को ही हम संबंधों का निर्वहन समझने लगे हैं. दिन में मिल जाने पर संभव है कि आपस में किसी तरह का वार्तालाप न होता हो मगर सोशल मीडिया के मंचों से सुबह, शाम औपचारिक अभिवादन अवश्य ही होता है. इस अभिवादन के पीछे मंशा सामने वाले के हालचाल लेना नहीं होता है बल्कि अपनी तरफ से एक तरह की औपचारिकता का निर्वहन कर लेना होता है.




असल में यही महज निर्वहन कर लेने की सोच ही सर्वाधिक कष्टकारी है. टेक्स्ट मैसेज के द्वारा, चित्रों के द्वारा हम एक-दूसरे तक अपनी बात को तो पहुँचा सकते हैं मगर किसी भी रूप में उसकी मानसिकता को, उसकी मनोदशा को, उसकी स्थिति को नहीं समझ सकते हैं. जाने कितने-कितने चेहरों को अपने चेहरों पर लगाये बैठे लोग कष्ट के दौरान भी मैसेज में हँसने की स्माइली भेजते हैं. किसी मैसेज के जवाब में मिलने वाली स्माइली, किसी कार्टून से सामने वाले की मनोदशा का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता है. ऐसे में औपचारिकता का निर्वहन दोनों तरफ से होने के कारण एक तरह का नितांत खालीपन संबंधों में आने लगता है. यही खालीपन अकेलेपन को बढ़ाता जाता है.


यहाँ ये तो नहीं कहा जा सकता है कि जो चंद उपाय, चंद कदम दिमाग में आते हैं वे पूरी तरह से लोगों के अकेलेपन को समाप्त कर देंगे पर ये अवश्य कह सकते हैं कि उस अकेलेपन को बहुत हद तक दूर कर सकते हैं, कम कर सकते हैं. बहुतायत समय मोबाइल, लैपटॉप आदि में गुजारने की बजाय आपस में मिलना-जुलना करने से संबंधों में प्रगाढ़ता तो आती ही है, आपसी खालीपन को दूर करने में भी सहायता मिलती है. बेहतर हो कि सोशल मीडिया के द्वारा आपसी हालचाल लेने-देने के बजाय फोन करके, आमने-सामने मिलकर, बातचीत करके एक-दूसरे का हालचाल लिया-दिया जाये. संभव है कि सबके पास समय एक तरह से खाली न रहता तो मगर ऐसा भी नहीं कि दस-पंद्रह दिन में एक दिन भी खाली न निकलता हो. एक ऐसे दिन का, समय का चुनाव करें जबकि एकसाथ मिला-बैठा जाये, खूब हँसी-मजाक किया जाये, जीवन की समस्याओं को आपस में कह-सुनकर उनका समाधान खोजा जाये.


यहाँ ध्यान यह रखने की आवश्यकता है कि जब सभी लोग आपस में साथ होंगे तो समस्याएँ भी दूर होंगी और अकेलापन भी दूर होगा.


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