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20 मार्च 2022

वे क्षण, वो स्नेह, वो अपनापन हमारी धरोहर है

मित्रों के घर आना-जाना तो सभी का लगा ही रहता है. सामान्य तौर पर जाना भी होता है और किसी विशेष अवसर पर भी जाना पड़ता है. एक ऐसा ही विशेष अवसर आया हमारी मित्र के गृह प्रवेश का. मित्रता बहुत पुरानी, अनौपचारिक और पारिवारिक है, सो जाना अनिवार्य जैसा ही था. जाना हुआ भी उसके घर. उसके परिजनों में बहुत सारे लोग ऐसे थे जिनसे मुलाकात नहीं थी मगर सभी के नामों से (कारनामों से भी) जबरदस्त परिचय था. वैसे सोशल मीडिया के कारण उन सभी पारिवारिक सदस्यों के चेहरों से भी परिचय था, बस आमने-सामने की मुलाकात नहीं थी.


फिलहाल, नियत समय पर मित्र के घर जाना हुआ. दिल-दिमाग में एक विचार बहुत बार आया कि वहाँ सबसे मिलना होगा, जिन लोगों से पहली बार मिलना होगा उनकी प्रतिक्रिया क्या होगी? खुद हमारा अपना व्यवहार, उनसे मिलने का अंदाज उनके प्रति कैसा होगा? उन लोगों की तरफ से मुलाकात कितनी औपचारिक, कितनी अनौपचारिक रहेगी? खैर, इस तरह के सवाल सामने आते और हम अपने स्वभाव के चलते उनको हवा में उड़ा देते क्योंकि विगत वर्षों की दोस्ती का जो अंदाज बना हुआ है उसके कारण यह तो खुद पर भरोसा था कि मुलाकात, परिचय महज औपचारिक तो नहीं ही रहेगा.


जो समय हमने स्वयं में विचार कर रखा था, उससे कुछ देरी से ही घर पहुँचना हुआ. इस देरी का बहुत बड़ा कारण गाड़ी के मिलने में होने वाली समस्या रही. होली का त्यौहार होने के कारण गाड़ियाँ सहज रूप में उपलब्ध नहीं थीं. भले ही कुछ देरी से मित्र के घर पहुँचना रहा हो मगर द्वार पर पहुँचते ही लगा नहीं कि ऐसे लोगों के सामने आकर खड़े हो गए हैं, जिनसे पहली बार मुलाकात हो रही है, पहली बार बातचीत हो रही है. स्वागत की करो तैयारी, आ रहे हैं भगवाधारी की हमारी तर्ज़ पर ही हमारा स्वागत किया गया.


उसे वैसे स्वागत क्या ही कहेंगे, वो स्वागत से बहुत-बहुत ज्यादा ही कुछ था. अपनत्व, स्नेह, प्रेम, अनौपचारिकता, सम्मान, पारिवारिकता से भरपूर दरवाजे का वो अद्भुत नजारा सामने आया जैसा कि सोचा भी न था. ऐसा महसूस हुआ जैसे सभी लोग बस हमारा ही इंतजार कर रहे थे. खिलंदड अंदाज में कोई अपनी बात कह रहा था, कोई कैमरे वाले को बुलाने में लगा था, कोई फूलों की बारिश करने में, कोई गलबहियाँ करने में. और जब ऐसी स्थिति बने कि कार से उतरते ही अपेक्षा से कहीं बहुत अधिक और मनपसंद स्थिति मिल जाये तो फिर न पैर जमीन पर टिके होते हैं और न दिमाग अपने ठिकाने पर होता है. ऐसा स्वागत तो विश्वस्तर पर भी किसी VVVVIP का भी नहीं हुआ होगा या कहें कि उसने कल्पना भी नहीं की होगी.


ऐसा तब होना और भी आश्चर्यचकित करता है, मंत्रमुग्ध करता है जबकि मित्र के परिजनों से केवल खुद का नाम ही परिचित हो, सोशल मीडिया एक माध्यम रहा हो. निस्संदेह अद्भुत, अप्रतिम, स्नेह-अपनत्व-अनौपचारिकता से भरे क्षण थे वे. उन चंद पलों में न केवल हम ही वरन गृह प्रवेश के अवसर पर आये बहुत सारे लोग भी आश्चर्यचकित थे. उसके बाद परिवार के अन्य सदस्यों से व्यक्तिगत मुलाक़ात करवाना, बातचीत का हास्य-बोध भरा माहौल, नितांत अनौपचारिक वातावरण में एकदम पारिवारिक सा अनुभव हो रहा था. यह व्यक्तिगत प्रसन्नता ही होती जबकि आपका पारिवारिक दायरा और अधिक विस्तार ले लेता है. इसे हम सहज रूप में महसूस कर सकते हैं.


वे चंद पल ज़िन्दगी भर के लिए अपना ऋणी बनाने के लिए पर्याप्त हैं. अब वे क्षण, वो स्नेह, वो अपनापन हमारी धरोहर है.





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