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28 फ़रवरी 2022

नशे की गिरफ्त में युवा

हर फ़िक्र को धुंए में उड़ाता चला गया, एक गीत की ये पंक्ति आज के युवाओं को बहुत उत्साहित करती है. इस एक पंक्ति के उत्साह में वे जगह-जगहकहीं छिपे भाव मेंकहीं खुलेआम उन्मुत रूप में धुआँ उड़ाते दिख जाते हैं. धुआँ उड़ाते इन किशोरों को उस गीत की धुआँ उड़ाती पंक्ति तो उत्साहित कर जाती है मगर उसके ठीक पहले का हिस्सा याद नहीं रहता. वह हिस्सा जो साफ़-साफ़ कहता है कि मैं ज़िन्दगी का साथ निभाता चला गया, इस हिस्से को ये युवा भुलाने का काम कर रहे हैं. उनको इसका भान नहीं है कि गीत की पंक्तियों का अनुसरण करना और ज़िन्दगी की वास्तविकता के साथ चलना दो अलग-अलग स्थितियाँ हैं. इसको जानने-समझने से इतर आज का युवा नशे की दुनिया में हँसते-मुस्कुराते हुए प्रवेश कर रहा है.


नशे की शौकिया प्रवृत्ति कब उनके लिए मजबूरी बन जाती है, इसकी उनको भनक तक नहीं लगती है. वे इसे भी ज़िन्दगी जीने का एक तरीका समझते रहते हैं. अपनी मस्ती, अपनी दुनिया, अपनी स्वतंत्रता में इन किशोरों अथवा युवाओं को आभास ही नहीं रहता है कि वे कब ज़िन्दगी को जीने की कोशिश में ज़िन्दगी से ही खिलवाड़ करने लग जाते हैं. ऐसी स्थितियों के लिए पूरी तरह से युवाओं को अथवा किशोरों को दोष देना भी उचित प्रतीत नहीं होता है. देखा जाये तो भौतिकतावादी दौड़ में ऐसे बच्चों के माता-पिता भी शामिल दिखाई देते हैं. लाड़-प्यार के चलते उनके लिए सभी अत्याधुनिक संसाधन सहज मुहैया करवा दिए जाते हैं. ऐसे में युवाओं को न तो धन की महत्ता समझ आती हैन समय कीन कैरियर की और न ही अपनी ज़िन्दगी की. इसी मानसिकता के कारण समाज की बहुसंख्यक युवा आबादी नशे की गिरफ्त में है.




नशा-मुक्त समाज की संकल्पना समाज के प्रत्येक जागरूक व्यक्ति की चाह है. इसके बाद भीनशे के दुष्प्रभाव की जानकारी होने के बाद भी युवाओं में ही नहीं बल्कि समाज में नशे के प्रति आसक्ति लगातार बढती ही जा रही है. शादी-विवाह के समारोहकिसी भी हर्ष-उमंग का अवसर होनायुवाओं की अपनी मस्ती आदि अब बिना नशे के पूरी नहीं हो पाती है. कहीं न कहीं समाज में इस तरह के नशे को स्वीकार्यता मिल चुकी है. किसी भी तरह का आयोजन हो, छोटे-बड़े स्तर के क्लब या होटल हों सभी में किसी न किसी रूप में नशे की उपस्थिति देखने को मिलने लगी है. बहुत सी जगहों पर खुलेआम या चोरी-छिपे ड्रग्स पार्टियाँ, हुक्का बार आदि जैसी संकल्पना धरातल पर देखने को मिलती है.


जब समाज के एक बहुत बड़े वर्ग में ऐसी स्थिति की स्वीकार्यता होगी तो नशा-मुक्ति की अवधारणा पूरी तरह से सफल नहीं हो सकती है. नशा-मुक्त समाज की जितनी संकल्पना अभी तक सामने आई है उसके अनुसार सभी का एकमात्र विरोध उन नशीले तत्त्वों से है जो अवैध रूप से बाज़ार में चोरी-छिपे बेचे जा रहे हैं. विभिन्न ड्रग्स को लेकर समाज में एक तरह का विरोध लगातार देखने को मिलता है. देश के महानगरों से निकल-निकल कर अब ये बुराई दूर-दराज के गाँवों में भी पहुँच गई है. अनेक तरह की ड्रग्स अवैध तरीके से खरीदी-बेची जा रही हैसिगरेट-इंजेक्शन आदि के सहारे शरीर में पहुँचाई जा रही है. 


ये सोचने वाली बात है और अध्ययन का विषय होना चाहिए कि ऐसे नशीले पदार्थ बाज़ार में आ कैसे जा रहे हैंसुरक्षा एजेंसियां क्या महज नेताओं की सुरक्षा का जायजा लेने के लिए रह गई हैंक्या हमारा सुरक्षा तंत्र महज बचाव कार्यों के लिए ही प्रयुक्त होने लगा हैपहली बात तो ऐसे नशीले पदार्थों की आवक पर ध्यान देने की जरूरत हैउसके स्त्रोतों को पकड़ने की जरूरत हैइनको बाज़ार में खपाने वाले तत्त्वों को खोजने की जरूरत है. इसके साथ-साथ यह भी समझना होगा कि आखिर नशे की गिरफ्त में विशेष रूप से युवा वर्ग क्यों आ रहा हैइसके लिए समाज में युवाओं की, किशोरों की समस्याओं पर विचार करने की आवश्यकता है. औद्योगीकरणवैश्वीकरण की परिभाषा इस तरह से चारों तरफ घेर दी गई है कि सिवाय लाखों के पैकेज के युवाओं को और कुछ सूझ नहीं रहा है. आपस में बढ़ती गलाकाट प्रतियोगी भावनाजल्द से जल्द सफलता की अधिकतम ऊंचाइयों को प्राप्त कर लेने की लालसाकम से कम प्रयासों में अधिकतम प्राप्ति की चाह आदि ने युवा वर्ग को अंधी दौड़ में शामिल करवा दिया है. जहाँ घुस जाने के बाद उनको न तो अपना भान रहता है और न ही सामाजिकता का. इसके अलावा ग्रामीण इलाकों के युवाओं के समक्ष कार्य के अवसरों के अत्यल्प होने के कारण से अवसाद जैसी स्थिति है. लाभ केउन्नति केसमर्थ कार्य करने आदि के कम से कम अवसरों के कारण यहाँ के युवा निराश तो रहते ही हैं साथ ही महानगरों की चकाचौंध उनको हताश भी करती है.


 सरकार कोसमाज के जागरूक लोगों को नशा मुक्ति के साथ-साथ युवाओं के लिए अवसरों की अनुकूलता बढ़ाने की आवश्यकता है. जो युवा वर्ग भौतिकता की अंधी दौड़ में फंस गया है उसको समझाने कीसँभालने की जरूरत है. यदि हम अपनी युवा पीढ़ी को सही-गलत का अर्थ समझा सकेसामाजिकता-पारिवारिकता का बोध करा सकेकर्तव्य-दायित्व को परिभाषित करा सके तो बहुत हद तक नशा-मुक्त समाज स्थापित करने में सफल हो जायेंगे. 


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1 टिप्पणी:

  1. नशे को ग्लैमर और पौरुष की अभिव्यक्ति के रूप में प्रस्तुत किया जाता है।समाज मे पुरुष की भूमिका एक रूलर की है हर व्यक्ति स्वय को इसी भूमिका में देखना चाहता है।महिलाएं भी आज इसी भूमिका को जीना चाहती है सबसे सस्ता और सरल तरीका है नशा करके बैठ जाना । वास्तव में real man की भूमिका निभाना इन पुरुष जैसे दिखने वाले प्राणियों और पुरुष की भूमिका को टेक ओवर करने के पागलपन से जूझ रही आधुनिक नारियों के लिए सम्भव नहीं है। ये स्ट्रगल उन्हे लाइन तोड़ के ,मान्यताओं को ध्वस्त करने औऱ कुछ अलग दिखने की चाह नशे की और ले जाती है।








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