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28 दिसंबर 2021

अनेक रिसर्च के बाद भी नए शोध की गुंजाइश रह ही जाती है

शिक्षकों को भी समय-समय पर खुद को अपडेट करने के लिए पढ़ना पड़ता है। कहा जाए कि  बस पढ़ना ही पड़ता है, तो ये सही न रहेगा बल्कि उनको भी इसके लिए किसी विद्यार्थी की तरह कक्षा मे बैठना पड़ता है, शिक्षकों से पढ़ना होता है। वर्तमान मे कुछ ऐसा ही हमारे साथ भी हो रहा है। Faculty Induction Programme के नाम पर अनिवार्य रूप से किया जाने वाला एक कोर्स किया जा रहा है। देश की सर्वाधिक प्रतिष्ठित संस्था माने जाने वाले जवाहर लाल नेहरू (JNU) से आयोजित होने वाले इस प्रोग्राम मे हमारी भी सहभागिता हो रही है। 27 दिसम्बर 2021 से 22 जनवरी  2022 तक चलने वाले इस प्रोग्राम मे प्रतिदिन चार सेशन चलने हैं, जिसमें देश के प्रतिष्ठित बौद्धिक लोगों का लेक्चर होना है।


आज दूसरा दिन है, इस प्रोग्राम का। हमारा अपना विचार तो यही है कि आपके बीच प्रतिदिन के सेशन के बारे मे कुछ न कुछ जानकारी शेयर की जाए मगर देखिए कि कितना कर पाते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि सुबह 09:30 से शुरू होने वाला सत्र शाम 05:15 तक लगभग निर्बाध रूप से चलता राहत है। आज दूसरे दिन के तीसरे सत्र मे प्रोफेसर आर. के. शर्मा जी का व्याख्यान हुआ। उनके द्वारा रिसर्च के बारे मे जानकारी दी गई। उनके द्वारा स्पष्ट रूप से बताया गया कि किसी भी विषय मे, किसी भी बिन्दु पर चाहे कितनी भी रिसर्च क्यों न हो जाएं, उसमें कोई न कोई बिन्दु ऐसा रह जाता है जहां कि शोध की जगह रह जाती है। यह जगह किसी भी शोधार्थी को देखनी चाहिए, खोजनी चाहिए।


हमारे द्वारा अपनी जिज्ञासा समाधान के रूप मे उनसे पूछा गया कि आज हिन्दी साहित्य मे स्त्री-विमर्श अथवा दलित विमर्श को लेकर पर्याप्त शोध हो चुका है, ऐसे मे नए शोध की गुंजाइश कहाँ रह जाती है? शोध जाँचने वालों द्वारा भी किसी नए प्रोजेक्ट को यह कहकर अस्वीकार कर दिया जाता है कि संबंधित विषय पर पर्याप्त काम हो चुका है, ऐसे मे शोधार्थी क्या करे? शर्मा जी का स्पष्ट रूप से कहना था कि किसी विषय पर शोध करने के लिए उसको ऊपर-ऊपर से देखना उचित नहीं। उस विषय की गहराई मे जाकर देखने की आवश्यकता है। यदि शोधार्थी गंभीरता से अध्ययन करे तो कोई न कोई बिन्दु अवश्य ही निकल आएगा, जहां कि इन्हीं विषयों पर शोध किया जा सकता है।


इसी बात को गाँठ बाँधते  हुए संबंधित प्रोग्राम मे अपना रिसर्च पेपर ‘हिन्दी महिला उपन्यासकारों का स्त्री-विमर्श और सामाजिक सरोकार’ प्रस्तुत कर दिया है। अब देखना ये है कि यह स्वीकार होता है या अस्वीकार? बाकी, कल से कोशिश रहेगी रोज की रिपोर्ट यहाँ प्रस्तुत करने की।


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