अंतर्राष्ट्रीय बालिका दिवस पर सभी तरफ से बेटियों के सम्बन्ध में पोस्ट दिखाई दे रही हैं. इधर नवदुर्गा का आयोजन भी किया जा रहा है, इसमें भी बेटियों को देवी स्वरूप मानकर उनकी पूजा की जा रही है. इस एक बालिका दिवस के बीत जाने के बाद और नवदुर्गा का आयोजन समाप्त हो जाने के बाद बहुत से लोग बेटियों को सशक्त बनाने के प्रति संवेदित नहीं दिखते. बेटियों के साथ होने वाली किसी भी दुर्घटना के बाद कहा जाता है कि बेटियों के बजाय बेटों को शिक्षा दें कि वे स्त्री को एक इन्सान समझें. सही है मगर क्या कभी इस दृष्टि से विचार किया गया कि हमने बेटियों का उस तरह से लालन-पालन किया है कि वे बिना घबराये, बिना डरे, पूरे विश्वास के साथ सामने वाले दुराचारी का, आपराधिक प्रवृत्ति के इंसान का मुकाबला कर सकें?
हम बराबर और बार-बार कहते हैं कि समाज में
स्त्री-पुरुष का, लड़के-लड़की का, बेटे-बेटी
का भेद करने से कभी कोई सुधार नहीं आने वाला. बेटों को किसी तरह की शिक्षा दें या
न दें मगर सभी माता-पिता अपनी बेटियों को ये शिक्षा अवश्य दें कि
=>> वे जीरो फिगर की फालतू अवधारणा से
बाहर निकलें.
=>> वे खुद को सभी काम करने में सक्षम
समझें न कि अपने भाई, पिता आदि के भरोसे रहें.
=>> शारीरिक सौष्ठव किसी भी रूप में
अपमानजनक नहीं है. खुद की देह को क्रीम, पाउडर, लिपस्टिक, परफ्यूम आदि की जकड़न से बाहर निकाल कसरती
बनायें.
=>> घर की चाहरदीवारी में घुसे रहने की
प्रवृत्ति त्याग कर खुद को मैदानी इन्सान बनाने के लिए आगे आयें. दौड़ने, भागने, कूदने आदि क्रियाओं में दक्षता हासिल करें.
=>> दिन भर मोबाइल के ऊटपटांग एप्प पर
अपनी ऊर्जा को खर्च करने के बजाय अपनी ताकत को, दिमागी ऊर्जा
को किसी न किसी आत्मरक्षा वाले गुण के विकास में खर्च करें.
=>> अपने घर की अन्य बुढ़िया टाइप औरतों के
साथ बैठकर सास-बहू जैसे सीरियल्स में अपने दिमाग को खपाने के बजाय समाज में आसपास
छिपे कुत्सित विचारों वाले जानवरों को समझने की क्षमता का विकास करें.
ध्यान रखें, बेटों को
शिक्षा देने के विचार के बहाने आप अपनी बेटियों को घरों में कैद रखने की मानसिकता
का त्याग करें. जानवर किसी के बेटे नहीं होते मगर इन्हीं जानवरों का शिकार होने
वाली लड़कियाँ, स्त्रियाँ आपकी नहीं तो किसी न किसी की बेटी
अवश्य ही होती है.
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