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28 जुलाई 2020

कोरोना संक्रमित की जगह मानसिक बीमार न हो जाएँ

चीनी वायरस कोरोना के चलते लॉकडाउन चार महीने पहले लगाया गया था. उसके बाद अनलॉक की प्रक्रिया शुरू की गई. बहुत सारी बाध्यताओं के बीच, नियम-कानूनों के साथ लॉकडाउन जैसी स्थिति देखने को मिल रही है. इसके साथ-साथ जीवन वापस पटरी पर लाने की कोशिश की जा रही है. कुछ शर्तों के साथ बाजार खोल दिए गए हैं. ऑफिस भी शुरू किये गए हैं. कारखानों में काम चालू कर दिया गया है. परिवहन, यातायात के साधनों का भी दौड़ना दिखाई पड़ने लगा है. बहुत कुछ ऐसा हो रहा है, दिखाई दे रहा है जो लॉकडाउन के पहले के जीवन जैसा आभास करवाता है इसके बाद भी पहले जैसी निश्चिंतता, पहले जैसी स्वतंत्रता, पहले जैसा सहज भाव देखने को नहीं मिल रहा है. बहुत कुछ खुला होने के बाद भी, संचालित होने के बाद भी लगता है जैसे बहुत बड़ा बंधन बना हुआ है. यह बंधन बाहरी कम, भीतरी ज्यादा समझ आ रहा है.



शारीरिक रूप से, मानसिक रूप से बहुत कुछ बंधनों में जकड़ा हुआ लगता है. इसका एहसास भीतर ही भीतर डराता नहीं है वरन परेशान करता है. यह बंधन धीरे-धीरे लोगों के दिल-दिमाग पर हावी होता नजर आ रहा है. लोगों के काम करने में, लोगों के बाजार में खरीददारी करने में, कार्यालयों में अपने काम से जाने के दौरान उनकी क्रियाशीलता में, क्रियाविधि में सहज भाव नहीं है. लगभग सभी लोग किसी न किसी अप्रत्यक्ष शक्ति के द्वारा नियंत्रित होकर कार्य करने में लगे हैं. कोरोना वायरस के कारण उपजी स्थिति ने जैसे लोगों को मानसिक रूप से बीमार बनाना शुरू कर दिया है. सुरक्षात्मक होने के बजाय लोग पैनिक होते जा रहे हैं. लोगों के आपस में बातचीत करने के विषय बदल चुके हैं. घूम-फिर कर बात कोरोना पर, संक्रमितों की संख्या पर, मरने वालों पर आकर टिक जाती है. मेल-मिलाप के वैसे भी अवसर हाल-फिलहाल नजर नहीं आ रहे हैं, ऐसे में फोन द्वारा भी हालचाल लेने पर कोरोना वायरस ही उछल कर सामने आ जाता है.


यह स्थिति किसी भी रूप में सुखद नहीं है. आज न सही, कल को कोरोना वायरस का इलाज मिल ही जायेगा मगर जिस तरह से लोगों की हरकतें, मानसिक और शारीरिक स्थिति बनती जा रही है, उससे निकल पाना बहुत से लोगों के लिए आसान नहीं होगा. कोरोना वायरस से संक्रमित होने के भय, उसके द्वारा होने वाली मौत की डरावनी कल्पना चिंता का विषय है. ऐसे में सभी को आपस में मिलकर कोरोना के अलावा किसी अन्य विषय पर बातचीत करनी चाहिए. मिलने-जुलने पर, ऑफिस में काम करते समय, फोन से बात करते समय उसी तरह से व्यवहार रखना चाहिए जैसा कि कोरोना आने के पहले हुआ करता था. ध्यान रखना होगा कि कहीं हम सब एक वायरस से लड़ाई जीतने के साथ-साथ अपने लोगों की शारीरिक-मानसिक हालत से न हार जाएँ.

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#हिन्दी_ब्लॉगिंग

2 टिप्‍पणियां:

  1. कोरोना ने मानसिक रूप से ज़्यादा प्रभावित कर दिया है। हर जगह बस कोरोना की बात। सच में कोरोना से डर नहीं लग रहा लेकिन मन अवसादग्रस्त हो गया है। सामान्य जीवन अब ज़रूरी हो गया है।

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