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04 जून 2020

समाजोपयोगी हो सकती है यह व्यवस्था

अनलॉक के दौरान बाजार में भीड़ अब अपने पुराने रूप में आती दिख रही है. उरई में शाम पाँच बजे तक बाजार खोलने की अनुमति है. जैसा कि ऊपर से आदेश हैं, उसके अनुसार रात नौ बजे तक नागरिकों के आवागमन पर प्रतिबन्ध नहीं है. एक आवश्यक काम से शाम को सात बजे के बाद निकलना हुआ. उस समय बाजार पूरी तरह से बंद हो चुका था. इक्का-दुक्का दवाओं की दुकानें खुली हुईं थीं. दुकानें बंद करने के नियम का पालन था अथवा प्रशासन का भय कि छोटी-छोटी सी दुकानें भी बंद थीं. ठिलिया वाले भी नहीं दिखाई दे रहे थे. चाय-पान की गुमटियाँ भी बंद मिलीं. सुनसान रास्तों पर चंद वाहनों की लाइट थी, सड़क के खम्बों पर जगमगाती रौशनी थी और शांत सा माहौल. लगा नहीं कि उरई के उसी बाजार में हम चले जा रहे हैं, जहाँ रात को नौ-दस बजे तक बस शोर-शराबा बना रहता था. दुकानों का बंद होना होते-होते भी देर रात कर ली जाया करती थी. गाड़ियों का शोर, हॉर्न का अनावश्यक बजना, तेज रफ़्तार से लोगों को डरातीं बाइक्स तब उरई की सड़कों की पहचान बनी थीं.


अब जो स्थिति दिखाई दे रही है वह किसी छोटे से कसबे से देर रात निकलने का एहसास करवा रही थी. एहसास ऐसा भी हो रहा था जैसा कि भोर में टहलने के लिए निकलते समय हुआ करता था. हलकी-हलकी ठंडी हवा, खम्बों, घरों, दुकानों से झांकती रौशनी और इक्का-दुक्का वाहनों के इंजन की आवाज़. न लोगों की भागदौड़, न अंधाधुंध रफ़्तार, न धक्का-मुक्की, न शोर, न धुआँ, न प्रदूषण बस एक चरम शांति, एक मधुर सा एहसास. लगा कि ऐसा नियम हमेशा के लिए बना दिया जाना चाहिए. किसी भी शहर को सुबह आठ-नौ बजे से शाम छह-सात बजे तक के लिए ही खोलना चाहिए. इससे न केवल कई तरह का प्रदूषण दूर होगा बल्कि समाज में फैली बहुत सी अराजकता अपने आप समाप्त हो जाएगी.



जब जल्दी बाजार बंद होगा तो ज़ाहिर सी बात है कि दुकानदारों को जल्द ही अपने घर पहुँचने का समय मिला करेगा. इससे देर रात पहुँचने के कारण अस्त-व्यस्त होने वाली उनकी दिनचर्या भी नियंत्रित हो सकेगी. बहुत से व्यापारिक परिवारों के बच्चों में इसकी समस्या देखने को मिलती है कि वे अपने पिता, भाई अथवा अन्य पुरुष परिजनों से समय से नहीं मिल पाते हैं. कई बार व्यापारिक अवसरों पर बच्चों को भी अपने परिजनों की सहायता के लिए दुकान पर जाना पड़ जाता है. इस तरह की स्थितियों पर बहुत हद तक लगाम लग सकती है.

इसके साथ-साथ जल्दी दुकान बंद होने के कारण लूट-पाट, छीना-झपटी जैसी घटनाओं पर भी अंकुश लगने की सम्भावना है. लगभग सभी दुकानदार, व्यापारी रात को अपनी-अपनी दुकान बंद करने के बाद बहुत सारा धन, दिन भर की आय अपने साथ लेकर ही घर जाते हैं. कई-कई दुकानदार देर तक दुकान खोले रहते हैं. ऐसे में अँधेरे में अकेले जाने वाले दुकानदारों पर, देर तक खुली दुकानों पर अराजक तत्त्वों का हमला भी हो जाया करता है. उनके साथ लूटपाट हो जाती है. जल्दी बाजार बंद होने से इस पर भी नियंत्रण लग सकता है.

इसी तरह यदि बाजार जल्द बंद होगा तो देर रात तक जलने वाली लाइट को भी रोका जा सकता है. इससे विद्युत ऊर्जा की खपत पर नियंत्रण होने से ऊर्जा की बचत की जा सकती है. लाइट चले जाने की स्थिति में जेनरेटर चलने की स्थिति में होने वाले प्रदूषण को भी रोका जा सकता है.

इनके अलावा बहुत से बिंदु ऐसे हैं जो समाजोपयोगी सिद्ध हो सकते हैं. इस तरह के निर्णय को लागू करने के लिए सरकार से ज्यादा सहयोग नागरिकों का, व्यापारियों का चाहिए है. इसके लिए बहुत से ऐसे व्यावसायिक कार्यों का हवाला दिया जा सकता है जो रात को ही संचालित होते हैं. यदि वाकई ऐसा होता है तो ऐसे व्यापारिक कृत्यों को कुछ निश्चित शर्तों के साथ रात में निश्चित अवधि तक के लिए खोलने की अनुमति दी जा सकती है. देखा जाये तो अभी भी कुछ ऐसा ही हो रहा है. बाजार को शाम पाँच बजे बंद करने का नियम है मगर शराब की दुकानों को रात नौ बजे तक खोलने की अनुमति मिली है. वर्तमान की भयावहता और उसके सन्दर्भ में लगाई गई बंदी के बाद प्रकृति में आये सकारात्मक बदलाव को देखते हुए भविष्य की मजबूत इमारत के लिए ऐसे निर्णयों का पालन किया जाना अनिवार्य होना चाहिए. नागरिकों और व्यापारियों को भी इसके लिए अपनी सहमति देनी चाहिए.  

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#हिन्दी_ब्लॉगिंग

4 टिप्‍पणियां:

  1. हर शहर में बाज़ारों को बंद करने का समय निश्चित है लेकिन कोई मानना ही नही चाहता।

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  2. ज़रूरी सुझाव। बाज़ार खुलने का समय हर रोज़ सुबह 11-6 हो, लेकिन सिर्फ़ एक दिन रात्रि में 6-12 भी होना चाहिए। ताकि नौकरी पेशा वाले लोग 6 बजे घर लौटने के बाद ख़रीददारी कर सकें। हर महीने में एक दिन पूरा लॉकडाउन भी होना चाहिए, ताकि आपसी दुरी थोड़ी कम हो।

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