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22 जून 2020

रक्तवीर से सम्मानित रक्तदाता भी हो रहे अपमानित कोरोना जाँच में

सुबह-सुबह खबर मिलती है कि आपने जहाँ रक्तदान किया था वहाँ रक्तदान करने वाला एक व्यक्ति कोरोना पॉजिटिव निकला है. इसके बाद भी हम संयम बनाये रखते हैं क्योंकि जो नाम हमें बताया गया वह हमारे रक्तदान करने के पहले नहीं था. दूसरी बात कि हमने वहाँ किसी से कोई संपर्क नहीं रखा था. ये बात बताने के बाद भी दोपहर दो बजे फोन पर खबर दी जाती है कि मुख्य चिकित्सा अधिकारी के आदेश पर उन सभी को अपना सैम्पल देना है जिन्होंने रक्तदान किया है. अपने स्वास्थ्य और अपने पर विश्वास था इस कारण इस आदेश को स्वीकारते हुए विगत आठ दिनों के अपने संपर्कों पर निगाह दौड़ाई.


इसमें भी सबसे पहले अपने परिवार को ही देखा. न बिटिया को, न श्रीमती जी को खाँसी, बुखार अथवा किसी तरह की अन्य समस्या थी. इसके बाद अन्य लोगों पर भी गौर किया. माना कि एक हम ऐसे व्यक्ति हों जिस पर कोरोना के लक्षण प्रदर्शित न हों मगर ऐसा सबके साथ नहीं हो सकता था. दस जून से लेकर अठारह जून तक की अपनी संपर्क सूची को खुद से खंगाला. इसमें किसी भी एक व्यक्ति को नाममात्र का न तो बुखार आया और न ही जुकाम-खाँसी जैसी कोई स्थिति सामने आई. इस बारे में पूरी तरह से संतुष्ट थे कि हम पॉजिटिव नहीं हैं और न ही हमारे संपर्क में आया कोई व्यक्ति पॉजिटिव है. इसके बाद भी जैसा कि प्रशासन की मंशा थी, अपनी सैम्पलिंग के लिए जिला चिकित्सालय पहुँच गए. जिला स्वास्थ्य विभाग अथवा प्रशासन इस कारण भी इस मामले में तत्परता दिखा रहा था क्योंकि रक्तदान शिविर का आयोजन प्रशासन की अनुमति से हुआ था. इसके साथ-साथ प्रशासनिक अधिकारी का, मीडिया का, समाज के प्रबुद्धजनों का भी इसमें भी सम्मिलिन हुआ था.


शाम को लगी भीड़, सैम्पल देने के लिए 

निश्चित समय पर जिला चिकित्सालय पहुँचना हुआ. सैम्पल लेने के पहले पंजीकरण करवाना था. उस समय ऐसा लग रहा था जैसे सामने जानकारी लेने वाला व्यक्ति कोई अपार विद्वान हो और जानकारी देने वाला निपट निरक्षर. जानकारी लेने के आसपास लगी बाँस-बल्लियों को लेकर धमकी भरे स्वर में डराया भी जा रहा था. डराने के साथ-साथ लगभग धमकाने जैसा स्वर भी दिखाई दे रहा था. हम लोग प्रशासन की तरफ से सैम्पल के लिए भेजे गए थे इसके बाद भी वहाँ तैनात स्वास्थ्य कर्मियों की तरफ से ऐसा व्यवहार किया जा रहा था जैसे कि हम सभी कोरोना वायरस के सीधे कैरियर हैं. खड़े होने, बैठने, बातचीत करने आदि को लेकर जिस तरह से उपेक्षित रवैया वहाँ के कर्मियों का दिखा उससे लगा कि केन्द्र सरकार द्वारा फोन पर सुनाई जा रही कॉलर ट्यून का कोई मतलब नहीं जिसमें कहा जा रहा है कि बीमारी से लड़ना है, बीमार से नहीं. यहाँ तो उस व्यक्ति को उपेक्षित किया जा रहा है जो अभी अपना सैम्पल देने आया है.

अति-सक्रिय स्वास्थ्य कर्मी 

इसके अलावा एक और दुखद बात सामने आई वो यह कि जिनको भी सैम्पल के लिए प्रशासन ने बुलाया था वे सब प्रशासन की शब्दावली में रक्तवीर थे. ऐसे लोगों को दो-तीन दिन पहले ही जिला प्रशासन ने सम्मानित भी किया था. इसके बाद भी प्रशासन और रक्तदान करवाने वाले तमाम स्वयंभू अपनी-अपनी जाँच जनपद में लगी ट्रू नेट मशीन से करवा कर फुर्सत पा गए, शेष लोगों को भटकने को छोड़ दिया गया. यहाँ भी पिछला दरवाजा मौजूद रहा. जुगाड़ वालों को इसी मशीन के सहारे जाँचने पर सहमति दिख रही थी मगर सबके लिए नहीं. ऐसे में सभी ने इसे नकारते हुए अपना सैम्पल देने का मन बनाया.

अपनी बारी का इंतजार करते रक्तवीर 

ये सुखद रहा कि दो दिन बाद सभी की रिपोर्ट निगेटिव आई मगर यहाँ एक बात सोचने वाली है कि एक तरफ प्रशासन की मंशा से, स्वैच्छिक संस्थाओं की मंशा से लोग रक्तदान करने के लिए स्वेच्छा से सामने आते हैं, उसके बाद ऐसी किसी भी घटना पर ऐसे लोगों का साथ न मिलना मनोबल को तोड़ता है. उस दिन अनुभव किया कि सैम्पल देने वालों में कुछ लोग तो ऐसे थे जो मानसिक रूप से कमजोर थे. सोचने वाली बात है कि एक तरफ वे रक्तदान करके रक्तवीर बनते हैं, दूसरी तरफ प्रशासनिक उपेक्षा के चलते दो दिन मानसिक रूप से पशोपेश में रहते हैं. आखिर प्रशासन को इस तरफ भी ध्यान देने की आवश्यकता है.

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#हिन्दी_ब्लॉगिंग

2 टिप्‍पणियां:

  1. कोरोना को लेकर ही नहीं सामान्य दिनों में भी सरकारी तंत्र का रवैया ऐसा ही रहता है चाहे कहीं भी हो। बेहद दुखद स्थिति है।

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  2. बहुत दुखद है ये स्थिति।
    पर यथार्थ है ।

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