लॉकडाउन
4 का अंत हुआ या समापन, ये सभी लोग अपने हिसाब से तय कर लें.
आज एक जून से अनलॉक किये जाने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई. कुछ लोगों का ऐसा विचार
बना हुआ था कि लॉकडाउन अभी बढ़ेगा. कुछ लोगों ने अब इस पर अपनी प्रतिक्रिया देनी
शुरू कर दी कि अभी लॉकडाउन हटना नहीं चाहिए था. कुछ लोग सवाल उठा रहे हैं कि अब
जबकि संक्रमितों की संख्या बढ़नी शुरू हो गई है तो लॉकडाउन हटाना सही नहीं. ये वही
लोग हैं जो घोड़े और बाप-बेटे वाली कहानी में थे. जिन्हें किसी भी स्थिति में चैन
नहीं आ रहा था.
बहरहाल,
अनलॉक किये जाने की प्रक्रिया शुरू करने के बाद नागरिकों की जिम्मेवारी है कि वे
संयम से रहना सीखें. विगत दो महीने से अधिक समय में सरकारों ने यही सिखाया है कि
कोरोना से कैसे लड़ना है. उन्हीं चरणों में सरकारों ने अपनी तैयारी भी कर ली है. अब
यहाँ समझना यह होगा कि कोरोना कोई ऐसा शत्रु नहीं जो अपने आप उड़कर घर के अन्दर घुस
जाए. इसके लिए हम ही वाहक बनेंगे, सामान वाहक बनेगा. बस यहीं ध्यान रखने की
आवश्यकता है.
बात
कहाँ से कहाँ पहुँच गई. लॉकडाउन में यही दिमाग ख़राब होने वाली स्थिति होती है. दो-तीन
दिन पहले तय कर लिया था कि एक जून से अपनी ज़िन्दगी को फिर उसी तरह से शुरू किया
जायेगा जिस तरह 24 मार्च तक रही. 25 मार्च
को भले कैलेण्डर में, समय में खींच कर नहीं ला सकते मगर ज़िन्दगी के पलों को उसी
रूप में जीना तो अपने हाथ में है. अब और तब में अंतर इतना हो गया कि तब सुरक्षा का
बोध इस तरह नहीं रखना था, आपस में असुरक्षा का भाव जन्म नहीं लेता था. अब सावधानी
रखनी है, लोगों से मिलने में, सामानों को छूने में, किसी जगह जाने में.
इन
सारी बातों का ध्यान रखते हुए आज अपनी ज़िन्दगी को 24 मार्च
के बाद से फिर से प्ले कर दिया. कोरोना ने एक पॉज लगा दिया था, उसे आज प्ले कर
दिया गया. स्वाभाविक रूप में जिस तरह की सड़कछाप घुमक्कड़ी होती थी, वो की गई.
दो-तीन पारिवारिक सदस्यों से मिलना हुआ. उनका आशीर्वाद लिया गया. रात की घुमक्कड़ी
देर रात नहीं रही मगर इसे भी आजमा लिया गया. इन सबमें शारीरिक दूरी का ध्यान रखा
गया. इधर-उधर किसी भी सामान को छूने से बचा गया.
सोचने
वाली बात है कि ज़िन्दगी एक कमरे में नहीं काटी जा सकती. न आज, न आने वाले कल में.
आज नहीं तो आने वाले कुछ महीनों में लोगों को घर से बाहर निकलना ही पड़ेगा. लोगों
को अपनी दिनचर्या को पुराने ढंग पर लाना ही पड़ेगा. ऐसे में अच्छा है कि अचानक से
अकबका कर सड़क पर उतरा जाए, सबकुछ अस्त-व्यस्त किया जाए, उसका अभ्यास धीरे-धीरे कर
लिया जाये. बिना किसी परेशानी, तनाव के ज़िन्दगी को स्वच्छंद रूप से जीना सीखिए,
ज़िन्दगी को बोझ नहीं बल्कि मनोरंजक पल समझकर बिताना शुरू कीजिये, एक-एक पल को
हँसते-खिलखिलाते गुजारने की मानसिकता बनाइये फिर देखिये कोरोना जैसे तनाव, वायरस,
बीमारियाँ स्वतः ही आपसे दूर रहने लगेंगी.
कर
के देखिये, अच्छा लगेगा हाँ, दिमाग से अनावश्यक तनाव, अनावश्यक परेशानियाँ दूर
करनी होंगीं. सकारात्मकता बनाये रखनी होगी, नकारात्मकता से कोसों दूर रहना होगा.
आत्मविश्वास के चरम पर जाकर ज़िन्दगी को ज़िन्दगी बनाना होगा.
.
#हिन्दी_ब्लॉगिंग
यही एक उपाय है ।
जवाब देंहटाएंबात तो सही है ज़िंदगी को हल्के में हर हाल में सहज लेने का प्रयास तनाव से मुक्त रखता है ... धीरे धीरे शुरुआती करनी होगी ... ढलना होगा ...
जवाब देंहटाएंएक दो महीने अति आवश्यक कार्य ही किये जाये तो अच्छा !
जवाब देंहटाएंहम सकारात्मक बनें, यह बेहद ज़रूरी है। पिछला दो महीना जीवन से डिलीट हो जाए तो कितना अच्छा हो।
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंडर के नहीं सकारात्मक सोच के साथ ज़िंदगी में आगे बढ़ने की जरूरत है। बहुत सुंदर और सार्थक प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर और सार्थक रचना।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया सार्थक लेख आदरणीय सर.
जवाब देंहटाएंसादर