जब
चीनी वायरस कोरोना ने हंगामा काटना शुरू किया था तो लोगों ने उसे गंभीरता से नहीं लिया
था. अपने देश में तो इसे गंभीरता से लेना तो अभी भी शुरू नहीं किया गया है. पता
नहीं इस देश के लोग किस मिट्टी के बने हैं जो गंभीर मसलों पर गंभीरता नहीं दिखाते
और अनावश्यक मामलों में बहुत ज्यादा गंभीर हो जाते हैं. गंभीर न रहने की इसी
मानसिकता ने संकट खड़ा कर दिया है. जिस तरह से इस वायरस के बारे में कहा जा रहा है
यदि सभी लोग पूरी तरह से लॉकडाउन का पालन करते तो स्थिति इतनी भयावह न होती.
वैश्विक
भयावहता देखने के बाद बहुत सारे लोग कहने लगे हैं कि अब सभी को इस वायरस के साथ
जीवन जीने की आदत डाल लेनी चाहिए. सही भी है. अभी जिस तरह से इसकी वैक्सीन बनाये
जाने का काम चल रहा है, दवा, टीका आदि के बारे में जिस तरह के प्रयोगों की स्थिति
है उसे देखते हुए लग रहा है कि इसके अंतिम रूप से आने में समय लगेगा. तब तक क्या
व्यक्ति को भय के साथ जीना पड़ेगा? क्या तब तक समाज में भेदभाव जैसा माहौल दिखेगा?
क्या समन्वय बनाने वाली बात की जगह एक-दूसरे को शक की निगाह से देखना पड़ेगा?
आने
वाला समय कैसा होगा, इस बारे में अभी से कुछ कहना जल्दबाजी होगी. आने वाले समय में
लोग किस तरह की जीवनशैली अपनाएँगे, इसे भी ठीक-ठीक कहना मुश्किल है. लॉकडाउन के
पहले दो दौर के बाद जब तीसरे दौर में सरकार की तरफ से शराब की दुकानों को खोलने के
आदेश आये तो लोग ऐसे टूट पड़े जैसे कोरोना वायरस की दवा बाजार में आ गई हो. इस शराब
की दुकानों के अलावा लोगों को सामान्य खरीददारी के लिए, सब्जी के लिए इस तरह भीड़
लगाते देखा है जैसे अपने देश में कोरोना जैसा कोई संकट ही नहीं है. ये स्थिति इतना
बताने के लिए पर्याप्त है कि जो लोग घर में रह रहे हैं उनमें बहुत से लोग ऐसे हैं
जो बस पुलिस की मार से बचने के लिए. अनेक राज्यों में बाजारों के तमाम दृश्य देखने
के बाद लगता नहीं कि आने वाले समय में इन्सान सहनशीलता दिखायेगा, संयम रखेगा.
ऐसे
में, संभव है कि हमारे कुछ सुझाव हास्यास्पद लगें (लगें तो हँस लेना क्योंकि इस
लॉकडाउन में लोग हँसना भूल गए हैं) मगर हम यहाँ दे रहे हैं. यदि इसी वायरस के साथ
जीवन बिताना है, इसकी आदत डालनी ही है तो तकनीकी क्षेत्र से जुड़े हुए लोग ऐसी कोई
मशीन का आविष्कार करें जो कोरोना को नापने का काम करे. आखिर दिल की धड़कन नापने की,
बीपी नापने की, शुगर नापने की, हीमोग्लोबिन नापने की, आँखों का प्रेशर नापने की, इलेक्ट्रॉनिक,
इलेक्ट्रिक उपकरणों की क्षमता नापने आदि की मशीन तो हैं ही. इसी तरह की कोई मशीन आनी चाहिए ताकि वो व्यक्ति
जो इस मामले में संवेदित है वह सम्बंधित वस्तुओं में कोरोना को नाप सके, लोगों में
कोरोना नाप सके.
इसके
अलावा बाजार की दुकानों को अलग-अलग वस्तुओं के हिसाब से अलग-अलग दिनों में खोले जाने
जैसे कदम उठाये जाएँ. किसी भी शहर में दिव्यांगजनों, बुजुर्गों, गर्भवती महिलाओं
के अलावा किसी अन्य को सार्वजनिक वाहन इस्तेमाल करने से रोका जाना चाहिए. बाजार
आने अथवा एक जगह से दूसरी जगह जाने के लिए निजी वाहन (इसमें भी यदि साइकिल को
मान्यता दी जाये तो बेहतर रहेगा) अथवा पैदल को वरीयता दी जाये. इससे एकसाथ कई-कई
लोगों के बैठने की संभावना पर अंकुश लगेगा.
अब
इसी तरह के उपाय खोजने होंगे, अमल में लाना होंगे, यदि वाकई इसी वायरस के साथ जीना
है तो.
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#हिन्दी_ब्लॉगिंग
आपके सुझाव बहुत सही है. व्यक्तिगत दूरी का पालन करते हुए बाज़ार, बस, ट्रेन, प्लेन, स्कूल आदि को शुरू करना होगा. आखिर कब तक सब कुछ रुका रहेगा. लेकिन मदिरा खरीदने के लिए लोगों ने जैसी हरकत की है, ऐसे में संक्रमण का रोकथाम संभव नहीं. लोगों को खुद पर नियंत्रण रखना ज़रूरी है, ताकि कोरोना के साथ हम सामान्य जीवन जीएँ.
जवाब देंहटाएंसही कहा आपने. जब तक हम लोग खुद को नियंत्रित न करेंगे, लाभ मिलने वाला नहीं.
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