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27 मई 2020

उदास और फीकी रही पहली विदेश यात्रा

इधर दो-चार दिन से चरों तरफ चीन, नेपाल का शोर सुनाई दे रहा है. आजकल ऐसा बहुत कम हो रहा है सोशल मीडिया में कि कोरोना के अलावा कोई और शोर सुनाई पड़े. ये शोर सुनकर चीन की तरफ देखा और नेपाल की तरफ भी देखा तो ऐसा कुछ नहीं दिखा जो वाकई गौर करने लायक हो. ऐसा इसलिए भी क्योंकि हमारे गौर करने से अथवा देखने से होना भी क्या है. न चीन को फर्क पड़ना है और न ही नेपाल की सेहत में सुधार होना है. बहरहाल, जिसे देखना, सुनना है उसने देख-सुन लिया है और अब सुनने में आया है कि काम हो भी गया है. जो हुआ सो हुआ, वो बात अलग किन्तु इसी शोर में हमें अपनी पहली नेपाल यात्रा याद हो आई.


आश्चर्य की बात है कि गोरखपुर कई बार जाना हुआ और उस समय जाना हुआ जबकि लोगों के लिए गोरखपुर जाने का मतलब नेपाल अवश्य ही जाना हुआ करता था. हमने भी मन बनाया नेपाल जाने का मगर कुछ ऐसे कारण बने कि उस समय जाना न हो सका. यह बात है सन 1993 की. उसके बाद भी कई बार सोचा, विचार किया, कई बार मौके भी आये मगर नेपाल जाना नहीं हो सका. इतने सालों में सोचने-विचारने के बीच सन 2018 में नेपाल जाने का मौका मिला. अचानक जाने का कार्यक्रम बनाया गया और उसमें बस ऐसा ही हुआ कि नेपाल छूकर चले आये. जिस उत्साह के साथ नेपाल के लिए चले, वह उत्साह एक झटके में नेपाल पहुँचते ही हवा हो गया. वहाँ पहुँच कर लगा कि अभी तुरंत ही वापस लौट चलना चाहिए मगर न हमारे पास साधन था और न हम अकेले थे. पूरी की पूरी टीम साथ थी और फिर उन्हीं सबके साथ ही वापस लौटना था. हम कुछ लोग पहली बार नेपाल जा रहे थे, नेपाल क्या देश की सीमा से बाहर जा रहे थे सो बिना पासपोर्ट-वीजा के पहली विदेश यात्रा करने जैसा हँसी-मजाक आपस में करते हुए चले जा रहे थे. 


दिसम्बर 2018 में हमारे एक मित्र ने अपने गृह जनपद शिवहर (बिहार) में एक तीन दिवसीय कार्यक्रम आयोजित किया था. आयोजन के समापन दिवस के अगले दिन विचार किया गया कि लगातार भागदौड़ कर रहे साथियों सहित एक दिन कहीं घूमने का कार्यक्रम बनाया जाये. आपसी विचार-विमर्श के बाद शिवहर के सबसे पास वाली जगह घूमने पर सहमति बनी. शिवहर के सीमावर्ती नेपाल की तरफ चलना हुआ. उससे पहले मुद्रा की व्यवस्था भी की गई क्योंकि शिवहर में दुकानदारों ने बताया कि नेपाल में पाँच सौ का नोट नहीं लिया जा रहा है. सौ-सौ रुपये इकट्ठे करते हुए निजी वाहनों से नेपाल को कूच कर दिए. शिवहर के एक मित्र की ससुराल नेपाल के एक गाँव में थी. वही गाँव शिवहर के सबसे पास था. बाँध, नदी, ऊँचे-नीचे रास्तों, कुछ जंगलों जैसी स्थिति की लगभग तीस किलोमीटर की यात्रा के बाद हम लोग नेपाल की सीमा में दाखिल हुए.


जिस समय हम लोग नेपाल के उस गाँव में पहुँचे तो शाम का धुंधलका गहराने लगा था. रास्ते की जैसी स्थिति थी उस हिसाब से मात्र तीस किलोमीटर यात्रा में भी बहुत समय लग गया था. नेपाल जाने की ख़ुशी, नेपाल के बाजार में टहलने की ख़ुशी एक झटके में गायब हो गई जबकि वहाँ का हाल किसी गाँव जैसा ही समझ आया. पहले लगा कि वह मित्र कुछ देर को अपनी ससुराल रुकना चाहता है मगर जैसे ही जानकारी हुई कि यहीं रुकना है तो एक हम ही नहीं सभी के चेहरे का रंग उतर गया. गाँव में बाजार के नाम पर सात-आठ दुकानें थीं, वे भी लगभग बंद हो चुकी थीं. रास्ते भर दिमाग में जितना उत्साह भरा हुआ था, वह पूरी तरह से निराशा में बदल चुका था. सबकी सहमति वहीं रुकने की बनी क्योंकि मालूम चला कि मित्र ने पहले ही फोन करके अपनी ससुराल में भोजन और शयन की व्यवस्था करने को कह दिया था. ऐसे में उलटे पाँव लौट पड़ना भी उचित समझ नहीं आया.

देर रात तक खाना-पीना, हँसी-मजाक, चर्चा-गाना आदि होता रहा. लोग एक-एक करके बिस्तर पर लुड़कते रहे. जिसे बिस्तर न मिल सका, वो कार की सीटों की शरण में चला गया. सुहानी सुबह आ चुकी थी. हम बिना किसी उत्साह अपनी पहली निराशाजनक, उदास विदेश यात्रा के बाद या कहें कि विदेशी गाँव की यात्रा के बाद वापस अपने देश को चल दिए.

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#हिन्दी_ब्लॉगिंग

5 टिप्‍पणियां:

  1. विदेश यात्रा तो हो गयी , चाहे नेपाल सही ।

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  2. सर याद ताज़ा हो गई पहली विदेश यात्रा की...

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  3. रेखा दीदी का कहना सही है ,नेपाल भी बाहरी देश है,विदेश यात्रा हो ही गई इस तरह आपकी ,


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  4. भाई साहब नेपाल अच्छा देश है काठमांडू पोखरा बहुत अच्छी जगह है।पशुपतिनाथ मंदिर भी देखने लायक है ।भारतीय कहना भी मिलता है लोग भी बहुत मिलनसार है।
    दुबारा मौका मिले तो जरूर जाइये।

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  5. अरे वाह आप शिवहर भी हो आए. मेरा घर शिवहर है, इसलिए पढ़कर मन खुश हो गया. मजेदार विदेशी यात्रा.

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