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19 मई 2020

हताशा, निराशा, कुंठा तो आपने ओढ़ ही ली है

अचानक से परिवार के सामने ऐसी स्थिति आ जाये जो कभी सोची न हो, जैसी स्थिति कभी सामने आई न हो तो क्या स्थिति होती है दिमाग की? किसी पारिवारिक आपदा के समय अचानक से ऐसा निर्णय लेना पड़ जाये जो किसी एक-दो व्यक्तियों के लिए नहीं वरन सम्पूर्ण परिजनों पर प्रभाव डालेगा तो उस समय आपकी क्या हालत होती है? कभी विचार किया है कि अपने परिवार के किसी ख़ुशी के समारोह की तैयारी भी हम सभी सूचीबद्ध तरीके से करते हैं उसके बाद भी अंतिम समय में कोई न कोई चूक हो जाती है. कभी कोई सामान कम पड़ जाता है, कभी कोई सामान लाना भूल जाया जाता है. ऐसा तब होता है जबकि आप ख़ुशी का कार्यक्रम संपन्न कर रहे हों. याद करिए, आपके साथ भी हुआ होगा जबकि किसी कार्यक्रम से सम्बंधित निमंत्रण/आमंत्रण पत्र बाँटने पड़े हों. कई-कई बार की सूची बनाने के बाद, कई-कई लोगों से जानकारी लेने के बाद भी आपका कोई नजदीकी अवश्य ही छूट गया होगा. चलिए नजदीकी न सही कोई न कोई ऐसा रह गया होगा उस आमन्त्रण पत्र पाने से जिसे आप न्यौता देना चाहते थे. ऐसा तब हो जाता है जबकि आप सबकुछ एक प्लानिंग के द्वारा करते हैं.


अब इसी सन्दर्भ में एक  बार केन्द्र सरकार के बारे में अथवा किसी भी राज्य सरकार के बारे में विचार करिए. क्या आपने कभी सोचा था कि लॉकडाउन जैसी स्थिति इस देश में आएगी? क्या आपने कभी विचार किया था कि एक दिन ऐसा आएगा जबकि आपको बाहर से आने के बाद अपने ही परिजनों से दूर रहना पड़ेगा? इससे पहले बहुत से लोगों ने देश में युद्ध की स्थिति के समय को देखा होगा, झेला होगा मगर वह वक्त भी इतना भयावह नहीं था. उस समय आपके घर के बगल में दुश्मन की गोली चलने का, बम फूटने का भय नही हुआ करता था. आपके किसी के छू लेने से आपको गोली लगने का डर नहीं हुआ करता था. आज इसके ठीक उलट है. आपको किसी व्यक्ति से ही नहीं बल्कि किसी सामान से भी संक्रमित होने का खतरा है. किसी के छींकने, थूकने से भी आपको खतरा है. ऐसे में विचार करिए कि जिस आपने पहली बार कोरोना के संक्रमण की खबर सुनी थी, क्या आपने उस समय भी लॉकडाउन के बारे में विचार किया था?


अब आपके सामने दो महीने के आसपास की स्थिति है. आप घर पर बैठे टीवी, मोबाइल पर अपनी विद्वता पेलने में लगे हैं. इसी सबको देखते हुए अब आप सरकारों को सलाह देने के काबिल हो गए हैं. सरकारों के कदमों की आलोचना करने लायक हो गए हैं. ये ठीक वैसा ही है जैसे आप अपने सोफे में धँसे, कुछ न कुछ अपने हलक में उतारते हुए किसी बल्लेबाज को गेंद खेलने का तरीका बताने लगते हैं, किसी गेंदबाज को गेंद फेंकने का तरीका समझाने लगते हैं. कभी विचार किया है कि मैदान पर पिच के ऊपर खड़े बल्लेबाज को किस गति की गेंद का सामना करना पड़ता है? नहीं न, क्योंकि आपको महज अपना मुँह चलाने की विशेषज्ञता हासिल है.

आपके परिवार में एक व्यक्ति गंभीर बीमारी का शिकार हो जाता है तब आपके होश उड़ जाते हैं. बहत्तर लोगों से विचार करते हैं मगर समझ नहीं पाते हैं कि कौन से डॉक्टर को दिखाया जाये? कौन सा इलाज करवाया जाये? कहाँ ले जाया जाये? हर एक बार निर्णय लेने के बाद उससे उपजे परिणामों को देखने के बाद आप अगला कदम उठाते हैं. कभी विचार किया है कि आप महज एक व्यक्ति के इलाज को लेकर किस स्थिति तक परेशान होते हैं? इस समय आप सरकारों के निर्णयों को लेकर हमलावर हो सकते हैं क्योंकि आप अपने घर में सुरक्षित हैं. ऐसा इसलिए भी कर सकते हैं क्योंकि आप किसी रूप में खुद को सरकारी क़दमों में सहयोगी नहीं मान रहे हैं.

ये इस देश की सबसे बुरी स्थिति है, यहाँ चाहे ख़ुशी का अवसर हो या फिर दुःख का, कोई सामान्य सी स्थिति है या फिर आपदा की आपको सरकारों के निर्णयों में बस कमी ही दिखाई देती है. ऐसा इसलिए क्योंकि आपके लिए घटनाओं को देखने के बाद उनका विश्लेषण करने की कला आती है. कभी विचार किया है कि इसी देश की सरकारों ने सुनामी जैसी विभीषिका से आपको सुरक्षित बनाये रखा. कभी सोचा है कि केदारनाथ की भयंकर आपदा में भी सरकारों ने आपके लोगों को सुरक्षित रखा. कभी ध्यान दिया कि ऐसी अनेक आपदाओं से आपको या फिर आपके नजदीकी लोगों को बचाए रखा. ऐसी-ऐसी जगह सरकारों द्वारा बचाव कार्य सफलतापूर्वक पूरे किये गए जहाँ आप सामान्य दिनों में जाने की सोचकर भी काँप जाएँ.

फिर विचार करिए अपनी मानसिकता पर कि कहीं आप बौद्धिक रूप से हताश तो नहीं? सोचिये कि कहीं आप विरोध करते रहने की मानसिकता के चलते अवसाद में तो नहीं जा चुके हैं? अपनी स्थिति को देखिये और विचार करिए कि कहीं आप पर कुंठित पागलपन तो हावी नहीं हो चुका है? देखिये और सोचिये, ये सब सही है क्योंकि इस पोस्ट के बाद अभी और न जाने क्या-क्या बकने वाले हैं. फिर विचार करिए कि सरकारें जो कर रही हैं वो अलग, आप ऐसा क्या कर रहे हैं जिससे ये देश आपका ऋणी रहे, ये देशवासी आपका एहसान मानें? सोचियेगा, अन्यथा हताशा, निराशा, कुंठा तो आपने ओढ़ ही ली है.

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#हिन्दी_ब्लॉगिंग

5 टिप्‍पणियां:

  1. देश की सबसे बुरी स्थिति है, यहाँ चाहे ख़ुशी का अवसर हो या फिर दुःख का, कोई सामान्य सी स्थिति है या फिर आपदा की आपको सरकारों के निर्णयों में बस कमी ही दिखाई देती है. ऐसा इसलिए क्योंकि आपके लिए घटनाओं को देखने के बाद उनका विश्लेषण करने की कला आती है. कभी विचार किया है कि इसी देश की सरकारों ने सुनामी जैसी विभीषिका से आपको सुरक्षित बनाये रखा. कभी सोचा है कि केदारनाथ की भयंकर आपदा में भी सरकारों ने आपके लोगों को सुरक्षित रखा. कभी ध्यान दिया कि ऐसी अनेक आपदाओं से आपको या फिर आपके नजदीकी लोगों को बचाए रखा. ऐसी-ऐसी जगह सरकारों द्वारा बचाव कार्य सफलतापूर्वक पूरे किये गए जहाँ आप सामान्य दिनों में जाने की सोचकर भी काँप जाएँ.


    चंद शब्दो मे आपने सटीक विश्लेषण किया है आदरणीय

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  2. आपने सही कहा है, लेकिन कामगारों और मजदूरों की जो स्थिति है, ऐसे में सहज ही कुछ सवाल मन में उठते हैं. सरकार ने जो कदम सही उठाया उसके लिए सरकार को आभार कहते हैं. मगर सरकार जो कर सकती थी वह न किया तो अब हम जैसे आम आदमी के मन में सवाल तो उठेंगे न. तीन चार दिन के लिए ट्रेन चलवा देती तो आज सैकड़ों लोग अपने घर जाने में मरे न होते.

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    1. सरकार की छोड़िए, जब लाॅकडाउन शुरू हुआ था तो आपने ही सोचा था कि मजदूर ऐसे चल देंगे?
      सरकार के सामने भी पहली बार ऐसे हालात बने।

      अब देखिए, चक्रवात इस समय है देश के दो तीन राज्यों में पर सब नियंत्रण में ले लिया गया क्योंकि सरकारों को, एजेन्सियों को मालूम है कि कब कौन सा कदम उठाना है।

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  3. बिलकुल सटीक और खरी खरी बात कह दी आपने। सिर्फ दूसरों को कटघरे में खड़ा कर देना दूसरों पर आरोप लगाना दोषारोपण करना और ये सब करके इतिश्री कर लेना ही आज का सबसे बड़ा फैशन बन चुका है सर। सामयिक सटीक जानकारी

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