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17 मई 2020

मौत स्वयं ही प्राणी को अपनी तरफ आकर्षित करने लगती है

आज की पोस्ट में एक कथा, इसे बोध-कथा कह सकते हैं. इसे बहुत साल पहले अपने मित्र के घर पर एक पंडित जी से सुना था. मित्र अपनी माता जी के निधन के कारण बहुत परेशान रहता था. पंडित जी रोज शाम को धार्मिक अनुष्ठान सम्बन्धी कार्यों के लिए आया करते थे. उस दिन बातचीत के दौरान उन्होंने इस कथा को सुनाया. इस पोस्ट के द्वारा हम किसी भी रूप में इसकी सत्यता अथवा असत्यता सम्बन्धी बात नहीं कर रहे वरन इसके यहाँ रखने का उद्देश्य कुछ अलग ही है. संभवतः इसे पूरा पढ़ने के बाद आप लोग समझ सकें. चलिए बिना किसी और बातचीत के सीधे उसी कथा पर, जो पंडित जी ने उस शाम सुनाई.


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किसी पौराणिक कथा के अनुसार महर्षि वेद व्यास के मामा अत्यंत वृद्ध हो गए. अपनी वृद्धावस्था देख कर उन्हें अपनी मृत्यु का भय सताने लगा. कई दिनों तक इस सम्बन्ध में परेशान रहने के बाद उन्हें उपाय नहीं सूझ रहा था कि मृत्यु से कैसे बचा जाये. विचार करते-करते एक दिन उनके मन में वेद व्यास का ख्याल आया. उनको लगा कि अमर होने का रास्ता मिल गया. वे तत्काल ही महर्षि वेद व्यास से मिलने चल दिए.

व्यास जी से मुलाक़ात करने पर उन्होंने अपनी समस्या बताई और कहा कि तुम्हारे तो सभी देवताओं से मधुर सम्बन्ध हैं. तुम उनसे मिलकर ऐसा कुछ कर दो जिससे मेरी मृत्यु न हो.

वेद व्यास अपने मामा जी कि बेचैनी को देख-समझ रहे थे सो उन्होंने इसे गंभीरता से लिया. अपने मामा को सांत्वना देते हुए उन्होंने कहा कि ये छोटा काम है, इसके लिए देवताओं के पास तक जाने की आवश्यकता नहीं. मैं काल से ही कहे देता हूँ, वो आपके प्राण लेने नहीं आएगा.

व्यास जी के मामा को चैन कहाँ था. उनको इस बात से बड़ी प्रसन्नता हुई और बल भी मिला. उन्होंने उसी समय वेद व्यास से काल के पास चलने को कहा. वेद व्यास भी मामा की आकुलता देखकर काल के पास तत्काल चलने को तैयार हो गए.

काल के पास दोनों लोग पहुँचे. उन्हें देखकर काल ने प्रणाम किया और आने का कारण जानना चाहा. वेद व्यास ने उसे पूरी बात बताई. मामा की इच्छा जानकर उसने अपने हाथ जोड़े और कहा कि मैं तो इस कड़ी की सबसे छोटी इकाई हूँ. आप यमदूत से कह दें कि मामा जी की मृत्यु का आदेश न दे. मैं कभी मामा जी के प्राण लेने न आऊँगा.

मामा की आतुरता देखकर व्यास जी काल को लेकर यमदूत के पास चल दिए. यमदूत के सामने पहुँच कर उसे भी पूरी बात बताई. प्रकरण सुनने के बाद उसने कहा कि मुझे किसी के प्राण लेने के आदेश देने का कोई अधिकार नहीं है. हमारे ऊपर के यमराज जी की तरफ से पृथ्वी लोक के प्राणियों की एक सूची समयबद्ध होकर आ जाती है. हम उसी में से नित्य के नाम काल को भेज देते हैं. कृपा करके आप यमराज जी से कह दें कि वे मामा जी का नाम सूची में न भेजें. मैं आपके प्राण लेने के लिए काल को आदेशित न करूँगा.

ऐसा सुनकर सभी लोग यमराज से मिलने को चल दिए. यमराज अपने सामने वेद व्यास, उनके मामा, काल, यमदूत को देखकर चौंक उठे. उन्होंने अपने सिंहासन से उठकर अभिवादन सहित यहाँ आने का कारण पूछा. वेद व्यास ने पूरा प्रकरण विस्तार से समझाया. यमराज ने शांतिपूर्वक बताया कि वे किसी प्राणी के प्राण लेने के लिए स्वतः किसी को आदेशित नहीं करते हैं. भगवान शंकर की तरफ से ऐसा आदेश आने के पश्चात् ही प्राणियों के साथ ऐसा व्यवहार काल के द्वारा किया जाता है. आप भगवान शंकर से निवेदन कर लें तो मुझे भी सहजता हो जाएगी.

वेद व्यास के मामा जी उत्साहित होते जा रहे थे. उनको अपने अमर होने का रास्ता दिख रहा था. वे वेद व्यास के साथ-साथ काल, यमदूत यमराज को लेकर भगवान शंकर से निवेदन करने चल दिए. भगवान शंकर के सामने पहुँचने पर उन्हें सारी स्थिति से अवगत कराया गया तो उन्होंने कहा कि महर्षि आपके मामा मेरे मामा समान हैं. और वैसे भी मुझे किसी प्राणी को मारने में, उसके प्राण लेने में कतई प्रसन्नता नहीं होती. मैं तो विधि का विधान बनाये रखने के लिए ऐसा करता हूँ. आपने कहा तो भविष्य में मामा का नाम यमराज के पास नहीं जायेगा मगर एक समस्या है.

वेद व्यास ने समस्या जाननी चाही तो भगवान शंकर ने बताया कि इस जगत के समस्त प्राणियों के भरण-पोषण, उनके जीवन का दायित्व भगवान विष्णु का है. एक बार आप उनसे सलाह लेते हुए ये निर्धारित कर लें कि मामा जी का जीवन बनाये रखने में भगवान विष्णु के भरण-पोषण सम्बन्धी कार्य में कोई व्यवधान तो नहीं पड़ेगा? यदि वे आज्ञा देते हैं तो मामा जी की मृत्यु टालनी सुनिश्चित कर दी जाए.

वेद व्यास ने भगवान शंकर से अनुरोध किया तो वे भी उनके साथ चल दिए.

अचानक से, अकारण, बिना किसी पूर्व सूचना के अपने सामने भगवान शंकर के साथ वेद व्यास, उनके मामा, काल, यमदूत, यमराज को आया देखकर भगवान विष्णु के माथे पर चिंता की लकीरें उभर आईं. उन्होंने जब भगवान शंकर से पूरी स्थिति समझी तो वे बड़े प्रसन्न हुए. उन्होंने कहा कि महर्षि के मामा जी का जीवन समाज के लिए लाभकारी सिद्ध हो सकता है. मुझे आजीवन इनके भरण-पोषण करने में कोई समस्या नहीं बस आप एक बाद भगवान ब्रह्मा से इसकी चर्चा कर लें. जीवन देने वाले वही हैं. इस तरह से जीवन-मरण के चक्र में व्यतिक्रम आने से कहीं कोई समस्या उत्पन्न न हो. उनकी सहमति मिलते ही मामा जी मृत्यु सम्बन्धी भय से मुक्त हो जायेंगे.

भगवान शंकर के निवेदन पर भगवान विष्णु भी उन सबके साथ हो लिए. सभी लोग इस कारण एक-दूसरे के पास तक पहुँचते जा रहे थे ताकि किसी भी तरह की प्रक्रिया सम्बन्धी समस्या आने पर उसका समाधान तुरंत हो सके. आखिर महर्षि वेद व्यास के मामा के जीवन-मृत्यु से सम्बंधित प्रकरण था.

भगवान ब्रह्मा के सामने पहुँचने पर वेद व्यास के मामा पूरी तरह निश्चिन्त हो गए. किसी से भी उनको नकारात्मक जवाब नहीं मिला था. इससे उनमें आशा का संचार हो रहा था. ब्रह्मा जी ने धैर्य से पूरी बात सुनने के बाद आदरपूर्वक मामा को निश्चिन्त रहने का आश्वासन दिया. उन्होंने कहा कि इसमें कोई समस्या नहीं मगर सभी प्राणियों के जीवन का लेखा-जोखा चित्रगुप्त के पास रहता है. उनसे ही इस बारे में जानकारी की जा सकती है.

अगले ही क्षण चित्रगुप्त अपनी लेखा-पंजिका सहित उपस्थित हुए. ब्रह्मा जी के सामने भगवान विष्णु, भगवान शंकर, यमराज, यमदूत, काल के साथ-साथ वेद व्यास और उनके मामा को देखकर उन्हें स्थिति गंभीर समझ आई. वे ब्रह्मा जी के अगले आदेश की प्रतीक्षा करने लगे.

ब्रह्मा जी ने मामा की तरफ इशारा कर चित्रगुप्त को सम्बोधित करते हुए कहा कि आप महर्षि के मामा जी हैं. इनकी कुंडली निकालिए और इनकी आयु सम्बन्धी गणना करके कुछ ऐसी व्यवस्था कीजिये जिससे इनकी मृत्यु न हो.

ब्रह्मा जी के आदेश पर चित्रगुप्त ने व्यास जी के मामा की कुंडली खोली तो उनके माथे पर पसीने की बूँदें छलक आईं. चेहरे पर घबराहट के संकेत नजर आने लगे. ब्रह्मा जी ने इसका कारण जानना चाहा तो चित्रगुप्त ने दोनों हाथ जोड़कर विनम्र निवेदन किया कि महाराज, महर्षि वेद व्यास जी के मामा जी स्वयं अपनी कुंडली का अवलोकन कर लें.

ब्रह्मा जी का इशारा होते ही वेद व्यास के मामा ने जैसे ही अपनी कुंडली पर दृष्टि दौड़ाई. उनके चेहरे से सारी प्रसन्नता गायब हो गई. चेहरा एकदम मलिन पड़ गया. देह ठंडी पड़ने लगी. वे वहीं गिर गए.

उनकी कुंडली में लिखा हुआ था, जिस क्षण उनके साथ वेद व्यास, काल, यमदूत, यमराज, भगवान शंकर, भगवान विष्णु, भगवान ब्रह्मा और चित्रगुप्त का मिलना होगा, वो क्षण उनकी मृत्यु का क्षण होगा.


इस कथा का सार यही है कि जिस प्राणी ने जन्म लिया है उसकी मृत्यु निश्चित है. मृत्यु किसी न किसी बहाने से प्राणी को अपने नजदीक बुला लेती है. कुछ ऐसा ही यह कथा कहती है. देखा जाये तो वेद व्यास के मामा की कुंडली के अनुसार उनकी मृत्यु सम्बन्धी पल आना ही नहीं था मगर जिस क्षण को, जिस परिस्थिति को उनकी मृत्यु के लिए निर्धारित किया गया था, वे स्वयं उसी परिस्थिति में, उस क्षण में सबको लेकर पहुँच गए.   

वर्तमान दौर में सभी को आशान्वित रहने की आवश्यकता है. आत्मबल बनाये रखने की आवश्यकता है. आत्मविश्वास बनाये रखने की आवश्यकता है. जीवन मिला है तो उसके साथ मृत्यु भी मिली है. कब, कैसे, कहाँ इससे मिलना होगा, वह स्वतः ही निर्धारित कर देगी. स्वतः ही प्राणी को अपनी तरफ आकर्षित करने लगेगी.

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(लेखक इस कथा की सत्यता, असत्यता को प्रमाणित नहीं करता है)

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