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29 अप्रैल 2020

मृत्यु की खबर पर हम संवेदनशील या असंवेदनशील

हम सबको किसी की मृत्यु भी तभी संवेदित करती है जबकि वह किसी नामधारी से जुड़ी हुई हो. किसी जनसामान्य की मृत्यु पर हम आम नागरिकों का संवेदित होना शायद हम सबको ही न सुहाता हो. ऐसा करना शायद हमें अपनी ही तौहीन समझ आता हो. ऐसा सिर्फ आपके साथ ही नहीं, हमारे साथ भी है. किसी क्षेत्र विशेष के प्रसिद्द व्यक्ति के गुजरने पर हम सभी ऐसे शोकाकुल होते हैं जैसे वह व्यक्ति हमारे अत्यंत निकट का हो. इसके उलट हम उस व्यक्ति के लिए उस गहराई से संवेदित नहीं हो पाते जो हमारे ही शहर का हो मगर हमसे परिचित न हो. संवेदना प्रकट करने की इस स्थिति का अपना ही मनोविज्ञान है.


किसी भी प्रसिद्द व्यक्ति से हम सभी भले ही एकबार भी न मिले हों, भले ही उसे कभी आमने-सामने न देखा हो किन्तु उसके निधन की खबर हमें दुःख देती है. ऐसा इसलिए क्योंकि हम उसे किसी न किसी माध्यम में, किसी न किसी मंच से देखते रहे हैं. उसकी बातों को सुनते रहे हैं, उसके हावभाव से परिचित रहे हैं. ऐसे में वह व्यक्ति हमें अपना सा लगता है. इसके साथ-साथ किसी नामधारी व्यक्ति के निधन पर संवेदना के दो शब्द हमारी गंभीरता के परिचायक भी बनते हैं, हमें जागरूक बनाने का काम करते हैं, ऐसा कहीं न कहीं हमारे अचेतन में चलता है. ऐसी घटना, खबर के बाद भी यदि हम दो शब्द श्रद्धांजलि के प्रकट नहीं करते हैं तो हमें लगता है कि हमारे जानने वाले क्या सोचेंगे? लोग हमारे बारे में क्या कहेंगे? सोशल मीडिया के इस दौर में यह सोच, यह मानसिकता और अधिक हावी हुई है.


हमारा मंतव्य यह कतई नहीं कि ऐसा नहीं होना चाहिए. ये सबका नितांत निजी, व्यक्तिगत मामला है कि वह किसके प्रति संवेदित होता है, किसके प्रति संवेदना प्रकट करना चाहता है, किसके प्रति नहीं. इसके लिए किसी के कदमों पर, किसी के प्रयासों पर सवालिया निशान नहीं लगाया जाना चाहिए. आज के इस दौर में हमने ऐसा होते देखा, आज फिर देखा उस दौर में देखा जबकि एक दिन में पूरे विश्व में हजारों की संख्या में मौतें हो रही हैं मगर हम एक पल को संवेदित नहीं हुए. इन मौतों के कारण यदि हम कुछ हुए हैं तो भयभीत. यदि इन पर हमने कुछ किया है तो खुद को और अपने परिजनों को बचाए रखने का काम. विश्व स्तर पर ही नहीं देश में ही इन्हीं दिनों में कई-कई हत्याएं हुईं, कई-कई मौतें हुईं मगर हमने उन पर संवेदना किसी न किसी राजनैतिक कारणों से की न कि अपने इन्सान होने के कारण.

ये हम सबके लिए सोचने का विषय है, खुद हमारे लिए भी कि हम कितने अमानवीय होते जा रहे हैं, क्यों? हम इस कदर असंवेदनशील क्यों होते जा रहे हैं? क्यों हम मृत्यु जैसी खबर को लेकर या तो संवेदना के शीर्ष पर होते हैं या फिर असंवेदना के रसातल पर? सोचने की आवश्यकता है, शायद सोचने का काम करें भी क्योंकि लॉकडाउन अभी इसके लिए समय भी दे रहा है.

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#हिन्दी_ब्लॉगिंग 

1 टिप्पणी:

  1. बेहद गम्भीर मनोविश्लेषण
    जो बात प्रधानमंत्री जी ने कही विकृति पृकृति हर संस्कृति
    आपने उसके आयामों को विस्ततारित कैनवास पर उकेरा

    जवाब देंहटाएं