सुबह के इंतजार में रात जागते-सोते काटी. सुबह
होने के बाद इंतजार उसकी खबर का. थोड़ी-थोड़ी देर में मोबाइल को देखता कहीं वह घंटी
सुन न पाया हो. कहीं फोन के बजाय मैसेज ही न किया हो. कभी सोचता कि वह खुद ही फोन
करके जानकारी कर ले फिर कुछ सोच कर अपने को रोक लेता. व्यग्रता के बीच समय भी बहुत
धीमे से आगे बढ़ रहा था. उसका किसी काम में मन नहीं लग रहा था. बेचैनी में इधर-उधर
टहलने के बीच मोबाइल की घंटी बजते ही उसने लपक कर फोन उठाया.
“क्या फोन पर ही बैठे थे?” दूसरी तरफ से
जानी-पहचानी आवाज़ और हँसी सुनाई दी.
“इतनी देर लगा दी. बताओ, क्या प्रोग्राम बना?”
“नहीं आ पाऊँगी.” उसने बड़े धीमे से कहा.
“क्यों? क्या हो गया? क्या समस्या है? हम आ
जाएँ?” उसने एक साँस में कई सारे सवाल दूसरी तरफ उछाल दिए.
इतने सारे सवालों के उत्तर में उसे जोरदार हँसी सुनाई दी, जो देर तक मोबाइल के सहारे उसके दिल-दिमाग में, उसके आसपास घूमती रही.
“इतने परेशान न हो. शाम तक आती हूँ.”
उसकी साँस में साँस आई यह सुन कर. “शाम माने, कितने बजे?” उसने आने के बारे में पूरा इत्मिनान करना चाहा.
“देखती हूँ, जैसा समय निकलेगा शाम को. अभी कुछ
कह नहीं सकती.”
इधर उधर की कुछ बातों के बाद दोनों ने बातचीत को विराम दिया. शाम को उसके आने की खबर अपने आपमें खुश करने वाली थी. वह सोचने लगा कि उसके न आ पाने की बात पर वह इतना बेचैन क्यों हो गया था? उससे मिलने की इतनी बेताबी क्यों है? दो-चार पल की मुलाकात में क्या वर्षों की बातचीत समाप्त हो पायेगी? कितनी-कितनी बातें हैं जो उसके साथ करनी हैं. कितना कुछ है जो बताना है. कितना कुछ है जो उससे सुनना-जानना है.
अब फिर इंतजार शुरू. शाम का इंतजार. शाम को किस समय आएगी? कितनी देर रुकेगी? दोपहर के बाद उसने अपने हिसाब से शाम का निर्धारण करना शुरू कर दिया. शाम चार बजे के बाद तो वह बार-बार घड़ी देखता, दरवाजे की तरफ देखता. घड़ी की सुई लगातार आगे बढ़ती हुई उसी धड़कन बढ़ा रही थी. कभी मन में उसके न आने की शंका उठती. कभी समय न निकाल पाने की मजबूरी दिखाई देती. कभी उसे लगता कि अपने घर पर क्या बताएगी कि कहाँ जा रही है, इसलिए न आये. कभी सोचता कि कहीं उसने मन रखने के लिए ही आने की हामी तो नहीं भर दी?
इसी ऊहापोह में उसने कई बार मैसेज छोड़ दिए. वह
मैसेज देख लेती मगर जवाब नहीं दे रही थी. समय के गुजरने के साथ उसे एहसास होने लगा
कि वह आएगी नहीं. उसके आने की ख़ुशी पर उसके न आने की आशंका भारी पड़ने लगी. इस
भारीपन का आभास उसे होने लगा.
तभी मोबाइल की मैसेजटोन ने उसका ध्यान खींचा. उसी का मैसेज था, एक स्माइली के साथ, ‘आती हूँ थोड़ा सा धीरज धरो.’
मैसेज पढ़ते ही उसके चेहरे पर मुस्कान तैर गई. पहले सोचा कि ‘लगा दूंगी मैं प्रेम की फिर झड़ी’ लिख कर रिप्लाई कर दिया जाए. फिर कुछ सोच कर उसने अपना विचार बदल दिया.
इस तरह के हँसी-मजाक, छेड़छाड़ उनके बीच अक्सर
होती रहती थी. कई बार वह नाराज हो जाती थी. उसका नाराज होना अपने आपमें एक
आश्चर्यजनक स्थिति रही है. कब किस बात पर नाराज हो जाये, कब किस बात को खुद मजाक
बना दे, कहा नहीं जा सकता था. आज वर्षों बाद उसकी मुलाकात होनी थी और वह नहीं
चाहता था कि उसकी किसी भी बात से वह नाराज होकर मिलने का प्लान बदल दे.
‘धीरज ही धरे हैं.’ लिख कर उसने रिप्लाई दिया और उसका इंतजार करने लगा.
इंतजार भरे उसके जीवन का एक और इंतजार.
(लिखी जा रही प्रेम कहानियों सम्बन्धी पुस्तक में से )
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#हिन्दी_ब्लॉगिंग
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