Pages

24 अप्रैल 2020

ये उन दिनों की बात है

सोशल मीडिया पर इन दिनों अपनी बीस वर्ष की उम्र की फोटो शेयर करने का ट्रेंड चलने में लगा है. अच्छा है यह, इस बहाने फुर्सत के पलों में सबको अपने पुराने दिनों में सैर करने का अवसर मिल रहा है. फोटो एल्बम आज से पंद्रह-बीस साल पहले घरों का विशेष आकर्षण हुआ करते थे. मेहमानों के आने पर कुछ देर की बातचीत के बाद एक निश्चित कार्यक्रम हुआ करता था, एल्बम दिखाने का. उन दिनों फोटो खींचना, खिंचवाना और उसके बाद उनका एल्बम बनवाया जाना मुख्य काम में शामिल हो जाया करता था. एल्बम आने के बाद उसे देखने के लिए परिवार में मारा-मारी भी आम बात हुआ करती थी. लॉकडाउन के इस दौर में उन दिनों की याद बीस वर्ष की उम्र की फोटो के चक्कर में बहुत से लोगों ने कर ली होगी.


हमने भी उस उम्र की फोटो खोजने के चक्कर में कई-कई एल्बम देख मारे. घर के, हॉस्टल के, कॉलेज के, दोस्तों के साथ के और एक-एक फोटो के साथ घंटों के हिसाब से कहानियों का सुनना-सुनाना. हम अपनी उस समय की ऐसी फोटो खोज रहे थे जिसमें किसी न किसी तरह की गतिविधि करते हों. उस समय कई फॉर्म वगैरह के चक्कर में सादा पासपोर्ट आकार की फोटो खिंचवाई गईं थीं, जिनमें से कुछ के रंग उड़ गए हैं और कुछ बीस साल की उम्र से इधर-उधर की हैं.


इसी में एक फोटो मिली अपने कॉलेज के समय की. उस समय हम स्नातक अंतिम में थे. उस समय हम बीस वर्ष से महज छह माह पीछे थे. उस फोटो में हमारे जीवाजी विश्वविद्यालय, ग्वालियर के कुलपति महोदय हैं. उनके द्वारा एक कार्यक्रम में हमें कॉलेज की एथलेटिक टीम के कप्तान और एथलेटिक प्रतियोगिता में स्थान प्राप्त करने का प्रमाण-पत्र प्रदान किया गया था.

कुलपति महोदय, जीवाजी विश्वविद्यालय, ग्वालियर (मार्च 1993)

दूसरी फोटो उस समय की है जबकि हम बीस वर्ष की उम्र से दो-तीन महीने आगे निकल गए थे. उस समय हमने अपने नए बने मकान के एक कमरे को स्टडी रूम बना रखा था. उसी में अचानक से इस फोटो को खींच लिया गया था.


फोटो के सहारे बीते दिनों में गोते लगाते-लगाते वापस वर्तमान में आना बहुत मुश्किल लगता है. इसके बाद भी आना तो होता ही है. सो एल्बम बंद करके वापस आज में लौट आये, अपनी वे फोटो लगाने को जो बीस वर्ष की उम्र से इधर-उधर की हैं.

.
#हिन्दी_ब्लॉगिंग

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें