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03 मार्च 2009

आस के सहारे चलती जनता

एक नट करतब दिखाने के लिए शहर में जगह-जगह अपनी लड़की के साथ जाता। जहाँ भी उसे सही जगह दिखती या फिर कायदे की भीड़ दिखती तो वह वहीं पर डेरा जमा कर करतब दिखाना शुरू कर देता। वह अपना सारा सामान एक गधे के ऊपर लाद कर ले जाता। गधा भी एकदम कमजोर किन्तु पूरी तन्मयता से काम करता।एक दिन संयोग से उस गधे का मित्र एक और गधा उसे मिल गया। दूसरा गधा बहुत ही तन्दरुस्त दिख रहा था। दूसरे गधे से अपने मित्र पहले गधे की हालत नहीं देखी गयी। उसने उसको अपने साथ आने को कहा। दूसरे गधे ने बताया कि मेरा मालिक कपड़े धोने का काम करता है। वह इतना दयालु है कि सुबह एक बार कपड़े मेरे ऊपर लादकर नदी किनारे तक ले जाता है और शाम को दोबारा धुले कपड़े मेरे ऊपर लादकर बापस ले आता है। बस, इतना ही काम है मेरा। पहले वाले नट के गधे ने बताया कि मुझे तो सारा दिन काम की तलाश में अपने मालिक के साथ-साथ पूरे शहर में दौड़ना पड़ता है। मेरा मालिक बहुत ही गरीब है तो मुझे खाने को कम भी मिलता है। दूसरे गधे ने समझाया कि तुम इस मालिक का काम छोड़कर मेरे मालिक के पास आ जाओ। वहाँ काम भी कम है और आराम भी बहुत है। यह सुनकर पहले गधे ने सांस छोड़ी और रस्सी पर बिना सहारे के चल रही नट की लड़की की ओर देखकर दूसरे गधे के साथ चलने से मनाकर दिया। दूसरे गधे ने न चलने का कारण पूछा तो पहले गधे ने बताया कि मेरे मालिक की लड़की जब रस्सी पर बिना किसी सहारे के चलती है तो मेरा मालिक चिल्ला-चिल्ला कर उससे कहता है कि चलती रहो यदि गिर गई तो इस गधे से तुम्हारी शादी कर दूँगा। मैं बस इसी आस में इसके साथ हूँ कि ये लड़की गिरे और मेरे साथ इसकी शादी हो जाये। आखिर बिना सहारे के चल रही लड़की कभी न कभी तो गिरेगी? कुछ ऐसा ही हाल आम जनता का है जो हर पांच साल में (कभी-कभी पहले भी) बिना सहारे के न चल पाने वालों के सहारे देश को सौंप देती है, इस आस के साथ कि शायद इस बार ये लोग कुछ अच्छा कर दें, शायद इस बार ये बिना सहारे के चल दें, शायद इस बार देश को ऊँचाइयों तक पहुँचा दें। शायद.....

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नारीवादी क्षमा करेंगे, लड़की की शादी एक गधे से करवाने की बात मालिक से कहलवा कर। इस देश में विवाद जरा-जरा सी बात पर होते हैं..........देखा नहीं फ़िल्म बिल्लू बार्बर का नाम बदलवा ही लिया लोगों ने।

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