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26 फ़रवरी 2009

फोलोवर गम होने और पाने का बवाल

फालोवर गायब होने की चिन्ता आजकल ब्लाग के सदस्यों को बुरी तरह से सता रही है। ब्लाग टिप्स के द्वारा पहले तो फालोवर गुम होने की बात बताई गई फिर उनको खोजने की तरकीब बताई गई। हालांकि ये तरकीब बेकार ही गई। यहाँ तरकीब सही या गलत को बताना नहीं है बस खुद को यह समझाने का प्रयास करना है कि क्या फालोवर की संख्या अधिक होना आपके ब्लाग के लोकप्रिय होने का सबूत है.
ब्लाग टिप्स के अलावा एक और ब्लाग पल भर पकड़ में आया जो अपने फालोवर के छोड़ कर जाने पर लयात्मक प्रस्तुति कर रहा है। इसी तरह की चिन्ता कुछ और दूसरे ब्लाग पर की गयी है। फालोवर कहते किसे हैं यह निर्णय किया जाये. क्या अपने आप को किसी भी ब्लाग से जोड़ लेना ही उसका फलोवर बनना है. एक बार फालोवर बन जाने के बाद क्यों उसका साथ छोड़ दिया जाता है? फालोवर क्यों बना जाता है? क्या कोई भी एक पोस्ट किसी भी ब्लाग का फालोवर बना या बिगाड़ सकती है?
हमारे ही ब्लाग के कभी तीन फालोवर हुए कभी पांच हो गये. कभी दो रह गये और कभी फिर चार हो गये। क्या है ये सब? यदि किसी एक पोस्ट के कारण कोई ब्लाग को फालो करता है और अगली पोस्ट के कारण उसको फालो करना बन्द कर देता है तो इससे अच्छा है कि वह किसी भी ब्लाग को फालो करना बन्द कर दे।
जहाँ तक बात किसी भी ब्लाग की सामग्री की है तो कई बार घटिया किस्म की सामग्री होने के बाद भी उसको दर्जनों फालोवर मिल जाते हैं और कभी अच्छी से अच्छी सामग्री होने के बाद भी वह ब्लाग टिप्पणी और फालोवर को तलाशता रहता है। यह सब ब्लाग पर भी इस हाथ दे और उस हाथ ले वाला हाल है। ऐसा क्यों? यदि किसी ब्लाग की सामग्री अच्छी है और भले ही वह आपकी पोस्ट पर टिप्पणी देता हो या न देता हो आपको वहां जाना चाहिए।
इस बात पर शायद ही कोई इत्तेफाक रखता हो पर जो लोग ब्लाग पर हैं वे लगभग सभी लोग किसी न किसी रूप में लेखन कार्य से जुड़े हैं। क्या वे किसी अन्य लेखक की रचनाओं को नहीं पढ़ते हैं? अवश्य ही पढ़ते होगे. पर क्या वे अन्य लेखक उन लोगों की रचनाओं को भी पढ़ते है. यहाँ अन्य लेखकों में देश-विदेश के नामी लेखकों की रचनाओं को लिया जा सकता है। यदि किताबों के रूप में यह लिहाज अपनाया जाता है तो ब्लाग पर कहाँ से तुरर्मशाही आ जाती है कि जब तक कोई हमारे ब्लाग पर नहीं आयेगा, जब तक कोई हमारे ब्लाग को फालो नहीं करेगा हम भी उसके ब्लाग पर नहीं जायेंगे.
चलिए ये सबका नितांत निजी मामला है कि कोई क्या करना चाहता है और क्या नहीं करना चाहता है। यह भी किसी व्यक्ति का नितांत निजी मामला हो सकता है कि वह किस ब्लाग को फालो करे और किस ब्लाग को नहीं। किसे कब तक फालो करे और किसे कब तक। जब सब जगह ही लेन देन का फार्मूला फिट है तो फिर फालोवर के आने जाने पर रोना क्यों?

2 टिप्‍पणियां:

  1. बिलकुल आपकी राय से इत्तिफाक रखता हूँ इसीलिए मैंने अपने ब्लाग एक शाम मेरे नाम पर ये बीमारी नहीं पाली। ब्लॉग जगत में आजकल प्रोफेशनल फौलोवर का दौर चला है जो प्रायः सभी चिट्ठों को फौलो करते हैं:)
    फौलोवर विजेट तब ज्यादा उपयोगी है जब आप किसी ऍसे ब्लॉग पर जाते हों जो नियमित अपडेट नहीं होता सो उसकी जानकारी प्रोफाइल पेज पर मिल जाती हो। अन्यथा किसी भी ब्लॉग को अगर हम नियमित रूप से पढ़ते और पसंद करते हों तो उसे साइडबार में जगह देना सबसे सुगम और बेहतर तरीका है।

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  2. bloging ek taknik sae upji vidha haen aur is mae jo log taknik mae ruchi rakhtey haen wo har nayee widget kaa upyog kartey haen . follower ko aap kewal ek follow karney waalae sae jodh kar daekh rahey haen jabki blog tips aur anay taknik kae blogs is par jaankarnari uplabdha karaa rahey haen .

    mujeh takniki gyaan mae utsukktaa haen so maene google groups bhi join kar rakhaa haen jahaan mujh jaese log ek dusrey kae saath apnaa gyan aur agyaan baant rahey haen .

    naari blog par 54 bloggers sae ek dam 42 reh gayae mujeh bhi utsuktaa hui kyaa taknik badli so maene bhi jagah jagah pataa karney ki koshish kii

    blog mehaj laekhan nahin haen , bloging taknik haen aur laekhak is par taknik sae likhtey haen

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