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15 जनवरी 2009

विश्वास-अविश्वास के माहौल में

आजकल समाज में विश्वास अविश्वास का मकड़जाल किस कदर आपस में घुलमिल गया है कि पता ही नहीं चलता है कि कौन विश्वास के लायक है और कौन अविश्वास के लायक. किस-किस पर विश्वास किया जाए और किस पर नहीं? जिसे देखो वही अपने आपको सबसे अधिक विश्वास-पात्र बताता है और वक्त आने पर आपसे पल्ला झाड़ लेता है। हमारे समाज में भी अभी से ऐसा होने लगा है या पहले भी होता रहा है? ये सवाल उठा हम मित्रों की आपसी मेल-मिलाप वाली बैठक के समय.
ये सवाल इस दृष्टि से और भी समाचीन है क्योंकि इस समय हर एक ग़लत काम के लिए आधुनिक पीढी को जवाबदेह ठहराया जाता है और पुरानों को पाकसाफ कर दिया जाता है. ये कोई अजब कहानी नहीं है कि इस समाज में हमेशा से नए-पुराने की जंग सी छिडी रही है. यदि विश्वास-अविश्वास को लेकर ही चला जाए तो हमारे देश के इतिहास ने हमेशा इस तरह के उदाहरण दिए हैं जबकि इसी देश के लोगों ने अपने लोगों पर विश्वास न कर विदेशियों की मदद की, उन पर विश्वास जताया और इस देश के लोगों को ही गुलाम बनाने में मदद दी।
इसी तरह का माहौल आज भी है. ये कोई नई रीति नहीं है. अन्तर इतना आया है कि इस विश्वास-अविश्वास के बीच हम मानवता को भुला बैठे हैं. आज सड़क पर पड़े किसी घायल को उठाकर चिकित्सालय पहुँचाना तो बहुत दूर की बात है हम किसी वृद्ध को भी सहायता पहुँचने में डरते हैं. हमें हर चेहरे के पीछे आतंकवादी छिपा नजर आता है, हर हाथ में कोई हथियार नजर आता है, हर एक बात हमें भयभीत करती दिखती है. हमारा विश्वास अब अपने आप तक ही सीमित रह गया है. यही कारण है की कुछ ताकतें इसका फायदा उठाकर हमें और हमारे सामाजिक ढांचे को खोखला कर रहीं हैं. क्या समाज इसी तरह चलता रहेगा? क्या आने वालीं पीढियों के लिए हम अविश्वास का माहौल ही छोड़ कर जायेंगे?

4 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत बढ़िया लेख

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    आप भारतीय हैं तो अपने ब्लॉग पर तिरंगा लगाना अवश्य पसंद करेगे, जाने कैसे?
    तकनीक दृष्टा/Tech Prevue

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  2. बहुत अच्छा लेख ! स्थिति चिन्ताजनक होती जा रही है। असुरक्षा की भावना ने हालत और भी खराब कर दी है।
    घुघूतीबासूती

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  3. PlainaEpine http://comprare-kamagra.wikidot.com http://buy-eriacta.wikidot.com http://buy-erectalis.wikidot.com PlainaEpine

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