आज एक लेख नयी कविता पर लिख रहे थे। इस लेख के लिए थोड़ा सी जो सामग्री रखी थी उसके आधार पर लेख को तैयार किया। इसमें कुछ कवियों के काव्य अंश उदाहरण के रूप में प्रस्तुत किये हैं। कुछ कविताओं के अंशों ने मन को गहराई तक प्रभावित किया, सोचा आप सबके साथ उसको भी बाँटा जाये। हालांकि कुछ कविता-अंशों पर आपत्ति भी है क्योंकि वे हमारे देश की, हमारे लोगों की उस स्थिति का चित्रण प्रस्तुत करते हैं जो वीभत्स सी दिखता है। कहा जाता है कि कविता के द्वारा मन को प्रसन्नता प्राप्त होती है किन्तु इस तरह के काव्यांश मन को व्यथित कर देते हैं।
यह बात सत्य है कि हमारे समाज में ज्यादातर विसंगतियाँ ही व्याप्त हैं पर क्या उनका निस्तारण कविताओं, लेखों, चित्रों आदि के माध्यम से उनको दर्शा कर किया जा सकता है? हम स्वयं इस बात पर आपत्ति दर्शाते रहते हैं कि विदेशी देश में पर्यटन के बहाने आकर हमारी गरीबी, हमारी विसंगति को फोटो रूप में लेजाकर उसका व्यापारिक रूप से प्रयोग करते हैं। यह उनको धनराशि तो प्रकट करवाती है साथ ही हमारे देश की छवि को भी धूमिल करती है।
एक ओर हम अपने कारनामों से देश की स्थिति को सुधार तो पा नहीं रहे हैं और जो विदेशी इस बिगड़ी दशा को मजाक के रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं उनका भी सामना नहीं कर पा रहे हैं उस पर विद्रूपता ये कि हम खुद किसी न किसी रूप में अपने देश की बिगड़ती स्थिति को विदेशियों के सामने परोस देते हैं। बहरहाल ये बहस का विषय हो सकता है पर यहाँ बहस नहीं कुछ कवितांशों का मजा लीजिए-
                                    (1)
                        ‘मैं एक्सट्रा हूँ
                        एक्सट्रा यानि कि फालतू
                        गिनती से ज्यादा
                        फिलहाल बेकार
                        बेजरूरत।’       
                                   
                                    (2)
                        ‘कोई हँसती गाती राहों में अंगार बिछाये ना-
                        पथ की धूल है ये, इससे प्यार मुझको
                        कोई मेरी खुशहाली पर खूनी आँख उठाये ना-
                        मेरा देश है ये, इससे प्यार मुझको!’
                                    (3)
                       
                        ‘याद तो होगा तुम्हें वह मधु-मिलन क्षण
                        जब हृदय ने स्वप्न को साकार देखा।’
                                    (4)
           
                        ‘तुम्हारी रेशमीन जुल्फों को सहलाती
                        मेरे प्यार की लालायित अँगुलियों पर
                        शोषण के भयंकर भुजंगम दम तोड़ रहे हैं।’
                                    (5)       
                                   
                        ‘और जब मैं तुम्हें अपनी गोद में लिटाये हुए
                        तुम्हारे केशों में अपनी अँगुलियाँ फिरा रहा होता हूँ
                        मेरे विचार हाथों में बंदूकें लिए
                        वियतनाम के बीहड़ जंगलों में घूम रहे होते हैं।’
                                    (6)
                       
                        ‘झाड़ी के एक खिले फूल ने
                        नीली पंखुरियों के एक खिले फूल ने
                        आज मुझे काट लिया
                        ओठ से
                        और मैं अचेत रहा
                        धूप में!’
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अच्छी पोस्ट है।गीत भी अच्छा लगा रखा है।
जवाब देंहटाएंनयी कविता के बहाने बहुत कुछ जाना…
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