tag:blogger.com,1999:blog-2270816749749638604.post4759888208003422587..comments2024-03-18T14:44:16.872+05:30Comments on रायटोक्रेट कुमारेन्द्र: हिन्दी भाषा की चीर-फाड़ न करें.....Dr. Kumarendra Singh Sengarhttp://www.blogger.com/profile/13394109654270394091noreply@blogger.comBlogger2125tag:blogger.com,1999:blog-2270816749749638604.post-52379490265461189492009-03-22T14:12:00.000+05:302009-03-22T14:12:00.000+05:30कुमारेन्द्र जी,आपने बहुत महत्वपूर्ण मुद्दे को फिर ...कुमारेन्द्र जी,<BR/><BR/>आपने बहुत महत्वपूर्ण मुद्दे को फिर छेडा है। <BR/><BR/>आपने जिसको/तिसको हिन्दी का अहित करते हुए बताया है। हिन्दी को सरल करने की बात कही है (जैसे दुनिया में हिन्दी ही क्लिष्टता की पर्याय है) कभी चीनी भाषा और उसकी लिपि की क्लिष्टता की बात आपने सुनी है? जर्मन भाषा की क्लिष्टता के बारे में कभी विचार किया है? फिर भी ये भाषाएं अपने देशों में धड़ल्ले से चल रहीं हैं। इन देशों के वैज्ञानिक और तकनीकी कार्य ब्रितानियों से बहुत आगे हैं।<BR/><BR/>हिन्दी भाषा न कठिन है न इसको किसी सरलीकरण की दरकार है। क्या इस देश में हर आदमी अंग्रेजी इसलिये रट रहा है कि वह सरल है? जी नहीं। सबको पता है कि अंग्रेजी एक कठिन भाषा है - व्याकरण की दृष्टि से, उच्चारण की दृष्टि से, वर्तनी की दृष्टि से, भारी-भरकम शब्दकोश की दृष्टि से।<BR/><BR/>हिन्दी का अहित कतईं इस कारण नहीं हो रहा है कि कोई "मोबाइल" को "चलभाष" कहने की कोशिश कर रहा है। इसका असली अहित इस कारण हो रहा है कि रोजगार के लिये इसकी अनिवार्यता समाप्त है; इसकी उपेक्षा का किसी को कोई खामियाजा नहीं भुगतना पड़ता। अंग्रेजी को अघोषित रूप से हर रोजगार के लिये अनिवार्य घोषित कर दिया गया है - यही एक मात्र समस्या है, और कुछ भी नहीं। <BR/><BR/>सारांश यह है कि आपके इस लेख ने वास्तविक मुद्दे को ताख पर रखकर अर्थहीन मुद्दों को बहुत महत्वपूर्ण मान लिया है।अनुनाद सिंहhttps://www.blogger.com/profile/05634421007709892634noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-2270816749749638604.post-91381630425445774542009-03-22T13:33:00.000+05:302009-03-22T13:33:00.000+05:30प्रिय डॉ. कुमारेन्द्र सिंह,आपके विचार पढ़े. बात केव...प्रिय डॉ. कुमारेन्द्र सिंह,<BR/>आपके विचार पढ़े. बात केवल टीका-टिप्पणी या दुःख व्यक्त करने की नहीं है. विचारणीय यह है कि हम क्या वास्तव में हिंदी के हितैषी हैं ? ब्रज भाषा को कोई सरकारी प्रोत्साहन नहीं मिला, फिरभी वह सम्पूर्ण देश की साहित्यिक भाषा थी. कोई भी फ़ारसी भाषा का कवि ऐसा नहीं था जिसने ब्रज में दो-एक छंद पद्य-बद्ध करना अपने लिए गौरव का विषय न समझा हो. इस प्रसंग में उत्तर दक्षिण जैसा कोई विभाजन नहीं था.ब्रजभाषी और अब्रजभाषी जैसी कोई लकीर भी नहीं थी. हिन्दू मुसलमान जैसा साम्प्रदायिक आधार भी नहीं था. फ़ारसी परंपरा के साहित्यकार इसे 'हिन्दवी' कहते थे और नस्तालीक़ लिपि में लिखते थे देशज परंपरा में यह 'भाखा' कहलाती थी और देवनागरी में लिखी जाती थी. सभी साहित्यकार दोनों लिपियों से परिचित थे. कम-से-कम देवनागरी आन्दोलन से पूर्व यानी 1861 से पहले ऐसा ही था. अरबी, फ़ारसी या तुर्की शब्दावली से इसे कोई परहेज़ नहीं था. हाँ उसे अपने स्वभावानुकोल बनाने की इसमें क्षमता थी. फीरोज़ा को इसने पीरोजा, फ़तीला को पलीता, जमा'अत को जमात, मस्जिद को मसीत, नायिब को नेब,अमारी को अम्बारी,दुहल को ढोल बना लेना उनके लिए सहज था.संस्कृत के शब्दों के साथ भी हिन्दवी [भाखा] का यही व्यवहार था. सुविधा को सुभीता, यमुना को जमुना, मनुष्य को मानुस, और इसी प्रकार ढेर सारे शब्द दिए जा सकते हैं. यह पद्धति विशुद्ध भारतीय थी. कर्ण-कटु ध्वनियों जैसे 'ण' को स्थायी रूप से 'न' में बदल दिया गया. जीवित भाषायें यही करती भी हैं. उर्दू ने ब्रज की इसी विरासत का लाभ उठाया. लैंटर्न को लालटैन, हास्पीटल को अस्पताल, एकेडेमी को अकादमी इसी आधार पर बनाया गया. देवनागरी आन्दोलन जो आगे चलकर हिंदी आन्दोलन कहलाया मूल रूप से अलगाव-वादी और शुद्धतावादी था. उसने आधार- भाषा के रूप में उर्दू का ढांचा ज़रूर लिया किन्तु संस्कृत के प्रति प्रेमातिरेक के कारण शुद्धतावादी रुख अख्तियार किया. ब्रज की विरासत के बजाय संस्कृत की विरासत को चुना. 'ण' की ध्वनि को पुनर्जीवित किया. जमुना को फिर से यमुना बना दिया. प्राचीन ग्रंथों के नाम तक शुद्ध कर दिए. संनेह रासउ को संदेशरासक, पउम् चरिउ को पद्म-चरित कर देने में उसे संकोच नहीं हुआ. हिंदी को हिन्दुओं की और उर्दू को मुसलमानों की भाषा कहा, हिंदी भाषी और अहिन्दी-भाषी का विभाजन किया. हिंदी-प्रदेश और अहिन्दी प्रदेश घोषित किये. हिंदी जाति की काल्पनिक नींव रखने का प्रयास किया. प्रश्न महत्वपूर्ण यह है की इस अलगाववादी और शुद्धतावादी दृष्टिकोण से भाषा का कितना विकास संभव है. ?<BR/>शैलेश ज़ैदीयुग-विमर्शhttps://www.blogger.com/profile/05741869396605006292noreply@blogger.com