11 जुलाई 2016

आतंकी का समर्थन करने वाले भी आतंकी

आतंक और आतंकी का सम्बन्ध समझ में आता है किन्तु जिस तरह से विगत कुछ वर्षों से आतंकी के समर्थन में, आतंकवाद के समर्थन में नागरिकों का हुजूम एकत्र होने लगा है, वह सम्बन्ध कुछ और कहानी कहता है. आतंकवादियों के समर्थन में नारे लगाये जाने, उनके समर्थन में रैलियाँ करना, उनको शहीद घोषित करने जैसे कृत्य होना, आतंकी के मारे जाने पर सेना के विरोध में नागरिकों का खड़े होना, आतंकवादी के अंतिम संस्कार में अप्रत्याशित भीड़ का जुड़ना आदि वे बातें हैं जो सामान्य नहीं कही जा सकती हैं. इधर राजनैतिक परिदृश्य कुछ इस तरह से बनने-बनाया जाने लगा है जिसके अंतर्गत विरोध करना मुख्य हो गया है. इसमें भी विडम्बनापूर्ण ये है कि इस विरोध का केंद्रबिन्दु भाजपा अर्थात केंद्र सरकार रहती है. जिस तरह से केंद्र सरकार का विरोध करने के लिए, उसको मुस्लिम विरोधी सिद्ध करने के लिए देश-विरोधियों का समर्थन किया जा रहा है, जिस तरह से मुस्लिमों के समर्थन में खड़े होने के कारण आतंकवादियों का समर्थन किया जा रहा है वो निंदनीय है.

जम्मू-कश्मीर की अपनी स्थिति कुछ अलग तरह की भले ही रही हो किन्तु महज इस कारण से कि वहाँ किसी आतंकी के समर्थन में आम नागरिक भी संगठित होते जा रहे हैं, किसी आतंकवादी के अंतिम संस्कार पर नागरिकों की भारी भीड़ जमा हो रही है, जम्मू-कश्मीर को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है. हाल ही में एक आतंकी की मौत के बाद सेना का विरोध, सम्बंधित राज्य में हिंसात्मक घटनाओं का होना, अमरनाथ यात्रियों पर, उनके लंगरों पर हमले किया जाना किसी भी रूप में स्वीकार्य नहीं होना चाहिए. यहाँ जो लोग भी इन घटनाओं के सन्दर्भ में जम्मू-कश्मीर को आज़ाद किये जाने के पक्ष में, वहाँ जनमत-संग्रह कराये जाने के समर्थन में, जम्मू-कश्मीर को पाकिस्तान का अंग मान लेने के पक्ष में वकालत करते दिख रहे हैं वे वास्तविक रूप में जम्मू-कश्मीर के समर्थन वाली नहीं वरन केंद्र सरकार के विरोध वाली मानसिकता से काम कर रहे हैं.

सोचना होगा कि क्या जम्मू-कश्मीर को आज़ाद कर देने से, उसको स्वतंत्र राज्य बना दिए जाने से, उसे पाकिस्तान का अंग बना दिए जाने-मान लिए जाने से क्या देश भर में आतंकी घटनाओं की समाप्ति हो जाएगी? न सही देश भर में, क्या जम्मू-कश्मीर में ही शांति हो जाएगी? क्या उसके स्वतंत्र किये जाने भर से, उसको भारत से अलग कर दिए जाने के बाद से उस तरफ से हिंसात्मक घटनाओं में रोक लग जाएगी? जम्मू-कश्मीर में जनमत-संग्रह करवाए जाने से क्या वहाँ की सभी समस्याओं का समाधान हो जायेगा? जो लोग उक्त कदमों को जम्मू-कश्मीर में शांति स्थापना के लिए आवश्यक मानते हैं, देश के अन्दर होने वाली आतंकी घटनाओं का समाप्त होना मानते हैं वे भयंकर भूल में हैं. उन्हें समझना होगा कि आतंकी घटनाओं का सम्बन्ध किसी एक राज्य की आज़ादी से नहीं है. जनमत-संग्रह समर्थकों को समझना होगा कि जम्मू-कश्मीर में वर्तमान में वहाँ के मूल नागरिक निवास ही नहीं कर रहे हैं. विगत कई दशकों से जिस तरह से वहाँ के मूल निवासियों को हिंसात्मक गतिविधियों के द्वारा प्रताड़ित करके भगाया जा रहा है, उनकी संपत्ति पर कब्ज़ा किया जा रहा है उसके बाद से वहाँ मूल निवासियों की संख्या नाममात्र को रह गई है. पाकिस्तान समर्थित आतंकी सोच वाले, स्वतंत्र जम्मू-कश्मीर की माँग करने वाले अलगाववादी मानसिकता वाले लोगों ने वहाँ कब्ज़ा कर रखा है. ऐसे में जनमत-संग्रह का कोई अर्थ नहीं रह जाता है. उस राज्य की आज़ादी से देश में आतंक अथवा आतंकी सोच नहीं रुकेगा वरन अन्य दूसरे राज्य अपनी स्वतंत्रता के लिए हिंसात्मक गतिविधियों का सहारा लेना शुरू कर देंगे. पंजाब, नागालैंड आदि इसके जीते-जागते उदाहरण हैं.


यहाँ केंद्र सरकार को, राज्य सरकार को कठोर कदम उठाये जाने की जरूरत है. उसके कठोर कदमों के साथ-साथ नागरिकों को भी संयम बरतने की आवश्यकता है. उन्हें महज राजनैतिक कठपुतली न बनते हुए देश-हित में अपनी आवाज़ उठानी चाहिए. उन्हें समझना होगा कि सेना अपने लिए नहीं वरन देश के लिए, देशवासियों के लिए अपनी जान जोखिम में डाल कर आतंकियों का मुकाबला करती है. ऐसे में महज विरोध के लिए नागरिकों का आतंकियों के समर्थन में खड़े हो जाना, आतंकी को शहीद बताने लगना दुर्भाग्यपूर्ण है. आज़ाद देश में आज़ादी की माँग करने वाले आतंकियों की मानसिकता स्पष्ट है, उसी मानसिकता का परिचय देते आम नागरिक भी किसी रूप में आतंकवादी से कम नहीं. आतंकी जहाँ बम-बन्दूक का इस्तेमाल करते हुए मौत बाँट रहे हैं वहीं तथाकथित बुद्धिजीवी केंद्र सरकार के विरोध के लिए आतंकियों का समर्थन कर मौत बाँटने में सहयोगी बन रहे हैं. वे किसी न किसी रूप में अपने को जम्मू-कश्मीर का, आतंकवादी का, मानवाधिकार का सच्चा समर्थक नहीं वरन आतंकवादी ही सिद्ध कर रहे हैं.  

1 टिप्पणी:

  1. आपकी ब्लॉग पोस्ट को आज की ब्लॉग बुलेटिन प्रस्तुति विश्व जनसंख्या दिवस और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। सादर ... अभिनन्दन।।

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