09 अक्तूबर 2015

अकेले हैं चले आओ...

‘जब भी ये दिल उदास होता है, जाने कौन आसपास होता है’ किसी गीत की ये पंक्तियाँ दिल के उदास होने पर किसी अपने के अस्तित्व के होने की गवाही दे रही हैं. दिल के उदास होने और उस उदासी में किसी अपने के पास होने की अभिलाषा करना इंसान को इंसान से जोड़े रखने की संकल्पना को पुष्ट करती है. भारतीय समाज में मानवीय आधार पर निर्मित अनेकानेक मान्यताओं, परम्पराओं का अपना वैज्ञानिक आधार रहा है. उसके अनुपालन के पीछे संस्कारों का निर्माण, संस्कृति का संवर्धन, सहयोग की भावना का विस्तारण करना रहा है. वसुधैव कुटुम्बकम महज एक विचार नहीं, चंद शब्द नहीं वरन अपने आपमें एक समृद्ध अवधारणा है, जिसके द्वारा इंसान को न केवल इंसान से बल्कि इंसान को प्रकृति के अंग-अंग से समन्विति बनाये रखने को बल मिलता है. आधुनिकता के वशीभूत हमने न केवल वसुधैव कुटुम्बकम की अवधारणा को छिन्न-भिन्न किया वरन अपने आपको नितांत अकेलेपन का शिकार बना लिया. तकनीकी, ज्ञान, कार्य की असीमित व्यस्तता के बीच भी इंसान किस कदर अकेला पड़ गया है इसे महानगरों के साथ-साथ छोटे-छोटे नगरों, कस्बों में भी सहजता से देखा जा सकता है. किसी समय छोटे-छोटे नगरों, कस्बों, गाँवों आदि को प्रेम-स्नेह-सौहार्द्र के, आपसी सहयोग के, समर्पण के रूप में प्रस्तुत किया जाता था किन्तु आज इन सबको भी आधुनिकता की बयार में बदलते देखा जा सकता है.
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अकेलेपन की इस स्थिति के दुष्प्रभाव का हाल ये है कि आज एक घर में कई-कई घर देखने को मिल रहे हैं. अपने-अपने कमरे की चहारदीवारी में अपना-अपना एक अलग संसार बनाकर लोग उसी में ख़ुशी तलाश रहे हैं. अपने आपसे घिरे नितांत अकेले अपने में ही अपने को खोज रहे हैं. मोबाइल, लैपटॉप, कंप्यूटर की दुनिया से रचे-बसे संसार की पल-पल की जानकारी रखने के बाद भी इंसान अपने आसपास की, अपने परिवार की जानकारी से अनभिज्ञ रहता है. यही वे हालात हैं जो व्यक्ति को अकेलेपन के साये में अवसाद में धकेलते हैं. अवसाद की इस नकारात्मक स्थिति में न केवल वयस्क जा रहे हैं वरन बच्चों को, किशोरों को भी इसका शिकार होते देखा जा रहा है. संयुक्त परिवार की संकल्पना का ध्वंस करके एकल परिवार अस्तित्व में लाये गए किन्तु उनमें भी आज एक-दूसरे के लिए समय का अभाव दिख रहा है. अकेलेपन की इस त्रासदी के चलते बच्चे, किशोर, युवा, वयस्क आदि, वो चाहे पुरुष हो या स्त्री, किसी अनजाने की खोज में लगे रहते हैं. इस अनजाने की खोज में उनका दिल तो परेशान रहता ही है, साथ ही स्वयं भी परेशानी में नकारात्मकता को जन्म दे बैठते हैं. ये अकेलापन उनको एहसास कराता है कि कोई उनको पसंद नहीं करता है, कोई उनको समझने का प्रयास नहीं करता है, उनके लिए किसी के पास समय नहीं. देखा जाये तो स्थितियाँ इसके उलट उन्हीं पर लागू होती हैं. अकेलेपन से ग्रस्त-त्रस्त व्यक्ति स्वयं भी किसी को पसंद नहीं करते हैं, वे स्वयं ही किसी को समझने की कोशिश नहीं करते हैं, उनके पास ही किसी से मिलने-जुलने का समय नहीं होता है. अकेलेपन की स्थिति ऐसे लोगों को चिड़चिड़ा बना देती है, बात-बात में आक्रोशित होना, अकारण किसी से झगड़ा कर बैठना ऐसे लोगों का स्वभाव बन जाता है.

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आधुनिकता का आलम ये है कि इंसान के संगठित रूप में रहने को अब कबीलाई संस्कृति समझा जाने लगा है; खिलखिलाकर, ठहाका मारकर हँसने को अब ज़ाहिलाना हरकत करार दिया जाता है; अंतरंगता दिखाने को चापलूसी समझा जाने लगता है; गले मिलने, आत्मीयता जताने को अवैध संबंधों से जोड़कर देखा जाने लगता है, ऐसे में दिल का उदास होना, अकेला होना लाजिमी है. उत्सव, त्यौहार, आयोजन अब हर्ष-उल्लास का विषय नहीं वरन विवाद का विषय बनने लगे हैं, ऐसे में इंसान को भरे-पूरे होने का एहसास कैसे हो? दोस्तों की महफ़िल कहीं दूर हो गई है, सांझ ढलने से देर रात चलने वाली हँसी-मस्ती की आवारगी अब देखने को नहीं मिलती है. बच्चों के लिए खेल के मैदानों को बड़ी-बड़ी इमारतों ने निगल लिया है, अब वे मैदान में मस्ती करने के स्थान पर मोबाइल, टीवी, वीडियो गेम के सामने अकेले-अकेले अपनी सक्रियता प्रदर्शित करते हैं. बच्चों से लेकर बूढ़ों तक सबको अकेलापन सालता भी है और विडम्बना देखिये कि यही अकेलापन उन्हें पसंद भी आता है, या कहें कि अकेलेपन से लगातार जूझते रहने के कारण ये अकेलापन उन्हें पसंद आने लगता है. अकेलेपन का ये रोग ऐसे लोगों के मन-मष्तिष्क में इस कदर हावी हो जाता है कि किसी का साथ, मित्रों की संगत, महफ़िलों की रौनक, हंसी-ठहाके ऐसे लोगों को अकेलेपन की तरफ और ज्यादा धकेलते से मालूम पड़ते हैं. ऐसे में अकेलेपन की त्रासदी झेल रहे लोग कह उठते हैं ‘तब ही ये दिल उदास होता है, जब भी कोई आसपास होता है.’ इससे पहले कि हमारे परिवार के बीच में अकेलेपन का भयावह साया किसी सदस्य को अपनी गिरफ्त में ले, किसी बच्चे को अवसाद की तरफ ले जाये, किसी युवा को अपराध की तरफ धकेले, हम सबको एकजुटता की, सहयोग की, अपनत्व की महफ़िल सजाकर अपने लोगों को अपने लोगों के बीच उपस्थित करना होगा. 
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