15 सितंबर 2015

हमारी दिव्य हिन्दी और विश्व हिन्दी सम्मलेन






विशाल हिन्दी का आशीर्वाद लेते हुए दसवें विश्व हिन्दी सम्मलेन के प्रांगण में प्रवेश करते ही माखनलाल चतुर्वेदी जी की आदमकद प्रतिमा चमत्कारिक रूप से सम्मोहित करती प्रतीत होती है. आगे बढ़ने पर हिन्दी की अमर ज्योति अग्नि, और आगे बढ़ने पर दायीं तरफ नर्मदा नदी का संकेत करता बहता जल, उसके और आगे धरती का बोध कराता बोधिवृक्ष, वायु का एहसास कराते उसके हिलते-डोलते पत्ते तथा आकाश के विस्तार का सूचक बनती ऊपर विशाल आसमानी-सफ़ेद रंग की छत से पैदा होते पञ्च तत्त्वों की उपस्थिति का मन को हर्षाती है. मन-मष्तिष्क स्वतः ही हिन्दी के प्रति सम्मान-आदर का भाव लिए दसवें विश्व हिन्दी सम्मलेन में स्फूर्त रूप से हिन्दी के साथ एकाकार हो जाता है. 





१० से १२ सितम्बर २०१५ तक भोपाल में चले विश्व हिन्दी सम्मलेन में पहली बार व्यावहारिक रूप से उपस्थित प्रतिनिधियों, श्रोताओं, वक्ताओं की टिप्पणियों को, सुझावों को सुना गया और संस्तुति के पश्चात समापन सत्र में ही केन्द्र सरकार के समक्ष उनको अमल में लाने हेतु रखा गया. 




पूरे तीन दिन कहीं से भी एहसास नहीं हो रहा था कि जिस हिन्दी को लेकर एक उदासीनता का, हीनता का बोध भारतीय समाज में ही व्याप्त है वो कहीं आसपास भी है. कई सारे नामी-गिरामी लेखकों, साहित्यकारों के साथ-साथ राज्यपालों, मंत्रियों, सांसदों-विधायकों, संपादकों आदि की उपस्थिति के बाद भी आपसी वार्तालाप में अंग्रेजी कहीं दिख भी नहीं रही थी. बारह विभिन्न विषयों में निर्धारित सत्रों में हुई चर्चाओं का हिन्दी में होना कहीं न कहीं वहाँ उपस्थित लोगों की मजबूरी माना जा सकता है किन्तु जलपान में, भोजनावकाश में, भ्रमण के समय आपसी वार्तालाप, चर्चाओं में हिन्दी की उपस्थिति सतत बने रहना गौरवान्वित करता था. ऐसा सिर्फ भारतीय लोगों के बीच ही नहीं हो रहा था बल्कि स्वीडन, नोर्वे, कनाडा, श्रीलंका, सऊदी अरब, मोरिशस, लिथवानिया, बेल्जियम, सूरीनाम, रूस, फिजी, यूके आदि देशों के प्रतिनिधियों के द्वारा भी हिन्दी में किया जाता वार्तालाप, अपने-अपने देशों में हिन्दी विकास के लिए होते कार्यों को बताया जाना आदि रोमांचित कर रहा था. 





सम्मलेन के उद्घाटन और समापन सत्र में प्रधानमंत्री, विदेशमंत्री, गृहमंत्री, मुख्यमंत्री आदि के हिन्दी भाषा को लेकर दिए बयानों को राजनीति से प्रेरित मानने वालों की भी कमी नहीं होगी; समानांतर सत्रों के वक्ताओं के उद्बोधनों को कतिपय रूप से सरकारी पक्ष में रहने का मानने वालों की संख्या भी कम नहीं होगी किन्तु इन सत्रों में बारह विषयों में हुई चर्चाओं के बाद निकले सार को, निष्कर्ष को, सुझावों को, टिप्पणियों को कतई राजनैतिक नहीं माना जा सकता है, कतई पूर्वाग्रहयुक्त नहीं माना जा सकता है. इसके पीछे का कारण ये कि उपस्थित जनसमुदाय ने पूरी तरह से खुलकर बहस में भाग लिया. मंच की तरफ से भी समयसीमा का आग्रह ऐसा नहीं था कि सबकी बात न सुनी जा सके. लिखित, मौखिक टिप्पणियों, सुझावों की संख्या सैकड़ों में रही और एक-एक विषय में अनेकानेक सुझाव स्वीकार किये गए, अनुशंसा हेतु केन्द्र सरकार के समक्ष भेजने हेतु सहमति योग्य समझे गए. ये दर्शाता है कि हिन्दी अभी भी आमजन की भाषा है, आमजन में आज भी हिन्दी के विकास के लेकर ललक है, चिंता है. इसके साथ ही ये भी एहसास हुआ कि हिन्दी भाषा का अपना एक विस्तृत परिवार है जहाँ देश-विदेश की सीमाओं का कोई भेद नहीं, पद का, दायित्व का कोई मोल नहीं, उम्र का, लिंग का कोई विभेद नहीं बस सब हिन्दीमय हैं, सब हिन्दीभाषी हैं, सब हिन्दीप्रेमी हैं, सब हिन्दीचिन्तक हैं. 




विश्व हिन्दी सम्मलेन की तीन दिवसीय रपट शायद बहुत लम्बी हो जाये क्योंकि हिन्दी के प्रति लोगों की सजगता, लोगों की चेतना को जिस तरह करीब से देखा उससे लगा नहीं कि किसी सरकारी आयोजन का हिस्सा बने हैं. देशवासियों के साथ-साथ विदेशियों को जिस तरह हिन्दी भाषा के लिए कार्य करते देखा तो महसूस ही नहीं हुआ कि हिन्दी सिर्फ इस देश के लोगों की भाषा है. कोई आश्चर्य की बात नहीं कि आने वाले समय में हिन्दी सकल विश्व की प्रतिनिधि भाषा बन जाए. पहली बार हिन्दी के किसी आयोजन को देखकर लगा कि हमारी हिन्दी भाषा का आयोजन भी भव्यता के साथ हो सकता है; पहली बार लगा कि हिन्दी को विश्व भाषा बनाया जा सकता है. आप भी हमारी इस ख़ुशी, इस हर्ष में शामिल हों. बहरहाल हिन्दी दिवस को मातम की तरह मनाना बंद करें, उस पर स्यापा करना बंद करें. हम भले ही चौबीस घंटे, बारह महीने सिर्फ हिन्दी ही बोलते हैं पर हिन्दी दिवस का एक आयोजन उसी उत्साह से मनाएँ जिस उत्साह से हम अपने किसी परिवारीजन का जन्मदिन मनाते हैं, अपना कोई त्यौहार मनाते हैं.
 





सारे चित्र लेखक द्वारा निकाले गए हैं.

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