22 जुलाई 2015

नाम तेरे कितने नाम

सुबह-सुबह मोबाइल ने बजना शुरू किया। गुस्सा बहुत आया। रात को सोच कर सोये थे कि देर तक सोयेंगे पर कमबख्त मोबाइल। मन मार कर कॉल रिसीव की और आँखें बंद किये-किये ही हाय-हैलो बोल दिया। हैलो बोलते ही तेज गुस्सा भी आया साथ ही नरमी भी दिखाई आवाज़ में क्योंकि दूसरी तरफ से एक महिला स्वर उभर कर कान में मिश्री घोल रहा था। दूसरी तरफ वाले ने जो नाम पुकारा वह हमारे घर में तो क्या दूर-दूर तक न तो रिश्तेदारी-नातेदारी में था और न ही पास-पड़ोस में। 
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यह सोच कर कि गलत नम्बर लगा दिया है मोहतरमा ने हमने पूछा किसको नम्बर लगाया है, कौन सा नंबर लगाया है? जवाब में हमें हमारा ही नम्बर बताया गया। फिर पूछा किसने दिया? अबकी जो जवाब मिला उससे लगा कि उन मैडम जी को बात हम से ही करनी है।


दरअसल हम कुछ दोस्त मिल कर एक एसोसिएशन बनाये हैं और लोगों को उससे जोड़ने का काम चल रहा है। पी-एच0डी0 होल्डर्स एसोसिएशन’ नाम से इस एसोसिएशन में विशेष रूप से पी-एच0डी0 वालों को ही जोड़ा जा रहा है। उसी से जुड़ने के लिए उस तरफ से फोन था।
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सामने वाली महिला से हमने नितांत शालीनता से पूछा कि ये नम्बर तो हमारा है पर इस नाम का यहाँ कोई नहीं है। जब उसने हमारे दोस्त का नाम बताया कि फलां श्रीमान ने कहा था कि आप जिससे बात करेंगी, उसका नाम कुमारी इंदिरा है और उससे बात करके आपको एसोसिएशन के बारे में पूरी जानकारी मिल जायेगी। यदि आप कहते हैं कि इस नम्बर पर इस नाम का कोई नहीं है तो हम आपको डिस्टर्ब करने के लिए आपसे सॉरी बोलते हैं।

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इतनी देर में नींद तो गायब ही हो गई और हमारी समझ में पूरी बात आ गई। बात समझते ही जोर की हँसी आई किन्तु अपनी हँसी को रोक कर कहा बताइये क्या जानकारी चाहिए? हम वही बोल रहे हैं जिनका नाम आपको फलां श्रीमान ने बताया है। अबकी शायद चकराने की बारी सामने वाले की थी क्योंकि उस तरफ खामोशी सी छा गई। हम समझ गये कि उस तरफ नाम को लेकर संशय उभर आया है। हमने तब उनको समझाया कि आपको जिस व्यक्ति से बात करनी है वो हम ही हैं, बस नाम के उच्चारण को लेकर कुछ गड़बड़ हो गई है। हम ही वो कुमारेन्द्र हैं जिससे आपको बात करनी थी  और आप परेशान न हों क्योंकि आप सही व्यक्ति से बात कर रहीं हैं। जब उन मैडम जी को असलियत बताई तो वे भी खिलखिला पड़ीं। 
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हो सकता है कि ये सब पढ़कर आप सब भी संशय में आ गए हों? आपको शायद अंदाज़ा न हो कि वे मोहतरमा किससे बात करना चाहतीं थींवो बात करना चाहतीं थीं कुमारी इन्दिरा से। उन्होंने अच्छे भले कुमारेन्द्र को संधि-विच्छेद करके कुमारी इन्दिरा बना दिया था।
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अकसर हमारे नाम को लेकर ऐसा होता रहा है। कभी नादानी में तो कभी प्यार में तो कभी चुहल में। हमारा एक मित्र है संदीप। वैसे तो वह हमें कुमारेन्द्र ही बुलाता है पर जब कभी अपने मूड में होता है तो कुम्मू ही बुलाता है। हमारे इन्हीं दोस्त के रिश्ते के एक भाई हैं। उनको मालूम है कि हमारा नाम कुमारेन्द्र है पर वे आज भी हमें रामेन्द्र बुलाते हैं और सुनने वाला भी समझ जाता है कि बात हमारी हो रही है।
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कालेज के दौरान हमारा एक साथी था, उसने भी हमारे नाम के अलग-अलग हिस्से करके एक अलग ही नाम बना दिया था। यहाँ उस समय कालेज के समय का लड़कपन, चुहलबाजी ही काम करती थी। उसने हमारे नाम को चार हिस्सों में बाँट दिया था - कुमार, इन्द्र, सिंह, सेंगर। इसके बाद इसको अंग्रेजी के शार्टफार्म में बनाकर पुकारता था। किस’ (KISS) - कुमार का K, इन्द्र का I, सिंह का S, सेंगर का S। इसी तरह और भी कई तरह से लोग उच्चारण में गलती करके नाम के कई रूप बनाते रहे हैं पर मोबाइल से बात करने वाली उन मैडम जी ने जो नाम दिया उसने तो हमें भी घुमा दिया।


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वाह! कैसे हो (कैसी हो) कुमारी इन्दिरा?

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