19 जुलाई 2015

समलैंगिक विकृति की तरफ बढ़ती पीढ़ी

अमेरिका में समलैंगिक विवाह की अनुमति के पूर्व सात देशों -नीदरलैंड, नार्वे, बेल्जियम, स्पेन, दक्षिण अफ्रीका, कनाडा और ब्रिटेन- ने समलैंगिक विवाह को मान्यता दे रखी थी. भारत में समलैंगिक विवाह को भले स्वीकृति न मिली हो किन्तु उच्चतम न्यायालय ने जुलाई 2009 में धारा 377 को संविधान के अनुच्छेद 14, 15 एवं 21 का उल्लंघन बताते हुए समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर रखने का आदेश दिया था. समलैंगिकता का सीधा अर्थ समान लिंग के प्रति यौन अथवा रोमांसपूर्वक आकर्षित होने से लगाया जाता है. इसमें पुरुष समलैंगिक अथवा गे (Gay); महिला समलिंगी अथवा लेस्बियन (Lesbian); महिला और पुरुष दोनों के प्रति समान रूप से आकर्षित होने वाला उभयलिंगी (Bisexual); लिंग परिवर्तन (Transsexual) करवाकर खुद को स्त्री या पुरुष की परिभाषा में शामिल करते हैं. आम बोलचाल की भाषा में इन सबको एलजीबीटी (LGBT) समूह के नाम से जाना जाता है. बचपन से किसी विषमलिंगी का पर्याप्त सहयोग न मिलना समलैंगिकता का वातावरण निर्मित करता है. माता-पिता का व्यवहार, पति-पत्नी की आपसी सेक्स लाइफ, लम्बे समय तक घर से बाहर रहने की स्थिति, समागम की अनुकूलता न होना आदि बहुत हद तक समलैंगिकता को जन्म देती है. जेल के कैदी, ट्रक के ड्राइवर, सुरूर क्षेत्रों में तैनात जवान, लम्बी आयु के अविवाहित स्त्री-पुरुष में इस तरह की स्थिति को देखा जा सकता है. ये कई अनुसंधानों से स्पष्ट हुआ है कि समलैंगिकता आनुवांशिक नहीं, सीखी हुई आदत है और इसे चाहने पर छोड़ा भी जा सकता है.  
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समलैंगिकों के आपसी यौनाचार को लेकर वर्ष 1827 से वर्तमान तक की लगभग 3,60,000  वैज्ञानिक अनुसंधान रिपोर्ट्स इंटरनेट पर ‘पॉपलाइन’ वेबसाइट पर उपलब्ध हैं. इनके आधार पर स्पष्ट है कि पुरुष-पुरुष यौनाचार में एड्स की सम्भावना तो रहती ही है साथ ही इनमें प्रोसाइटिस नामक रोग व्यापक रूप से फैलता है. इस बीमारी की भयावहता के कारण इसे समलैंगिक महामारी के नाम से भी जाना जाता है. स्त्री समलैंगिकों में इसी तरह से ह्युमन पेपिलोमा वायरस, हर्पिस आदि बीमारियाँ अतितीव्रता से फैलती हैं. इन बीमारियों के अलावा समलिंगियों में सिफलिस, गोमोनिया, अमिसियोसिस, हेपेटाइटिस बी, गले के वायरल, यौन-जनित बीमारियों के वाहक वायरस आदि भी किसी महामारी की तरह फैलते हैं. इसके उलट समलैंगिक समर्थक दावा करते हैं कि समलैंगिक गतिविधियों को कानूनी मान्यता न मिलने के कारण ही समाज में एड्स/एचआईवी का फैलाव हो रहा है, इसकी रोकथाम में बाधा आ रही है.
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आखिर जब विभिन्न अनुसंधानों से स्पष्ट हो चुका है कि समलैंगिकता आनुवांशिक नहीं है, मानसिक बीमारी भी नहीं है वरन व्यावहारिक समस्या है तो उसके सुधारात्मक उपाय किये जाने चाहिए. इसके समाधानस्वरूप सर्वप्रथम बच्चों की परवरिश पर पर्याप्त ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है. समय-समय पर उनकी लैंगिक समस्या पर भी विचार किया जाना चाहिए और उनका सहज समाधान प्रस्तुत करना चाहिए. बच्चों में पनप रहे विषमलिंगी संकोच को दूर करने का प्रयास किया जाना चाहिए और इसके लिए उनको आरम्भ से ही सह-शिक्षा प्रदान करवाई जाए. इसी तरह से पारिवारिक वातावरण को समृद्ध करने की आवश्यकता है. इसके अलावा समलैंगिकों का बहिष्कार करने, उनको प्रताड़ित करने, उनका मजाक बनाये जाने की बजाय उनको समझाए जाने की आवश्यकता है कि यह मानसिक बीमारी नहीं है और इससे आसानी से छुटकारा पाया जा सकता है. उनको बताया जाना चाहिए कि समलैंगिकता एक स्थिति है जो अतृप्तता के कारण उपजती है और कहीं-कहीं ये बेलगाम मौज-मस्ती के लिए विकृत वृत्ति, स्वच्छंद शारीरिक भोग-विलास की लालसा के रूप में जन्म लेती है. ऐसे लोगों को सहानुभूति, इलाज की आवश्यकता होती है और इस समस्या को सद्भाव, सहयोग प्रदर्शित करके दूर किया जा सकता है. समझना होगा कि समलैंगिक सम्बन्ध मात्र भावनात्मकता के स्तर पर ही कायम नहीं हो रहे हैं वरन शारीरिकता पर आकर समाप्त हो रहे हैं. दैहिक सुख की भोगवादी लालसा में समलिंगी अपने जीवन को खोखला ही बना रहे हैं, जिसका निदान समलिंगी विवाहों की मान्यता प्रदान करने में नहीं वरन इस आदत के इलाज और समाधान में है.
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