23 मार्च 2015

लापरवाह रेलवे


जनता एक्सप्रेस दुर्घटना रेलवे दुर्घटना इतिहास में कोई पहली घटना नहीं है और आखिरी तो कतई नहीं है. जिस तेजी से रेलवे के विकास की बात करते हुए सरकार बुलेट ट्रेन तक आ पहुँची है, उसी उलटी रफ़्तार से दुर्घटनाओं में वृद्धि होती आई है. मानवीय चूक के नाम पर, कमजोर व्यवस्थाओं के नाम पर, रेलवे में फैली विसंगतियों के नाम पर यात्रियों की जान से होते आ रहे खिलवाड़ को नजरंदाज़ नहीं किया जा सकता है. जिस तरह से समाचारों के माध्यम से सामने आया कि इंजन के ब्रेक फेल हो जाने का दुष्परिणाम इस दुर्घटना के रूप में सामने आया. इस तरह की लापरवाही को क्या समझा जाए? ऐसी एक-दो नहीं अनेक घटनाएँ सामने आती रही हैं, जिनके द्वारा रेलवे की लापरवाही उजागर होती रही है. कभी पटरी से ट्रेन के डिब्बों का उतर जाना, कभी टूटी-चटकी पटरियों से ट्रेन का गुजर जाना, कभी इंजन से बाकी डिब्बों का अलग हो जाना, कभी सिगनल के चक्कर में ट्रेन का आपस में टकरा जाना, कभी रेलवे के कर्मचारियों का नियमों की अवहेलना करते हुए ट्रेन सञ्चालन को जारी रखना आदि-आदि ऐसी स्थितियां हैं जो रेलवे प्रशासन की विशुद्ध लापरवाही को दर्शाती हैं. रेलवे ऐसी लापरवाही के साथ-साथ अपनी विसंगतियों के लिए भी विख्यात हो चुकी है.
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रेल विसंगतियों की जब भी बात आती है तो जेहन में स्टेशनों, प्लेटफार्म पर बढ़ती भीड़, रेल के भीतर यात्रियों की आपाधापी, रेलवे के तमाम सारे कर्मचारियों का समय से उपस्थित न होना, रेलों के आवागमन में भयंकर तरीके से होने वाली लेटलतीफी, रेलों के रखरखाव आदि की छवि उभर कर आती है. यदि इसे अन्यथा के रूप में न लिया जाये तो ये सारी स्थितियाँ वर्तमान में रेल की विसंगतियाँ नहीं वरन् उसकी पहचान बन गईं हैं. रेल के यात्रियों ने भी इन स्थितियों को आत्मसात् कर लिया है और आसानी से स्वीकार कर लिया है कि रेल यात्रा के समय इस तरह की स्थितियाँ तो सामने आयेंगी ही. रेलवे लापरवाही के परिदृश्य में प्लेटफार्म पर, स्टेशनों पर बढ़ती भीड़, रेलवे द्वारा मूलभूत सुविधाओं की कमी आदि-आदि विसंगतियाँ बहुत ही छोटी मालूम पड़ती हैं. पुलिसिया बदसलूकी, बदमाशों के गैंग द्वारा मारपीट आम घटनायें बन जायें तो इस प्रकार की विसंगति को प्राथमिकता में रखकर उसका निदान करना अनिवार्य प्रतीत होता है. इसके अलावा रेलवे की कार्यप्रणाली पर विचार किया जाये तो देखने में आता है कि पार्सलघर से सामान की चोरी का पता न लगना, स्टेशन से, ट्रेन से हुई चोरी का पता न चल पाना, चलती ट्रेन में जेबकतरों, जहरखुरानियों पर अंकुश न लग पाना, रेल में अवैध रूप से कार्य कर रहे वेंडरों, सामान बेचने वालों का घुस आना भी अभी नियंत्रित नहीं किया जा सका है. इन घटनाओं में भी कई बार मारपीट, छीना-झपटी आदि होने पर यात्री की जान तक चली जाती है. स्पष्ट है कि रेलवे प्रशासन की व्यवस्था कहीं न कहीं यात्रियों की जान से ही खिलवाड़ करने में लगी हुई है.
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ऐसे में सवाल यह उठता है कि रेल स्वयं में इस विसंगति को पाल रही है अथवा वह इस विसंगति से निपट नहीं पा रही है? सम्भव है कि रेलवे प्रशासन इस तरह के अराजक लोगों के सामने, अपनी व्यवस्थाओं को सुचारू रूप से अमल में लाने के लिए, अपनी लापरवाहियों को रोकने के लिए इतना पंगु बन गया हो कि वह चाह कर भी कुछ कर न पा रहा हो. बहरहाल जो भी हो, जैसी भी स्थिति हो उस स्थिति में भी रेलवे को इस तरह की विसंगतियों से निपटने के उपाय करने चाहिए. मुआवजा दे देने से, सहानुभूति दर्शा देने से, किसी भी मृत यात्री की वापसी नहीं होती है. रेलवे प्रशासन को, सरकार को इस पर विचार करना ही होगा कि रेल यात्रा के सुखमय होने का प्रमाण अच्छे और भव्य रेलवे स्टेशन-प्लेटफार्म नहीं, कम्प्यूटरीकरण नहीं, उन्नत वातानुकूलन प्रणाली नहीं, मेट्रो का दौड़ना नहीं, लम्बी दूरी की सुपरफास्ट ट्रेनें नहीं, बुलेट ट्रेन की संकल्पना नहीं वरन् यात्रियों की सुरक्षा-सुविधा है. इसमें रेल प्रशासन लगातार नकारात्मक दिशा में जाता दिख रहा है.
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