22 नवंबर 2014

क्षमा करना विक्रांत! हम तुम्हें बचा नहीं पाए



अलविदा आईएनएस विक्रांत! ये कहना बहुत पीढ़ादायक है किन्तु ऐसा कहना पड़ रहा है. पूर्व एडमिरल के साथ-साथ देश के गौरवशाली इतिहास को सहेजने की उत्कंठा रखने वाले अनेकानेक नागरिकों के प्रयासों के बाद भी विक्रांत को बचाया जाना, सुरक्षित रख पाना संभव नहीं हो सका. अंततः ६० करोड़ की नीलामी में एक निजी कंपनी द्वारा विक्रांत को नहीं देश के सैन्य इतिहास के गौरव को खरीद लिया गया. इस खरीद को रोकने के बहुत से प्रयास किये गए, विक्रांत को संग्रहालय बनाने की मुहिम भी चलाई गई किन्तु सरकारी मंशा के सामने सबने घुटने टेक दिए. अब गौरवशाली अतीत नित्य ही हथौड़े की चोट खाता हुआ अंपने अस्तित्व को शनैः-शनैः समाप्त होता देख रहा है.
संभवतः नई युवा पीढ़ी विक्रांत के वैभव को, उसकी क्षमता को, पाकिस्तान के युद्ध में उसके कौशल को न तो देखा होगा और न पढ़ा होगा किन्तु जिस-जिस ने आईएनएस विक्रांत के बारे में पढ़ा-सुना-देखा है उसके लिए ये खबर अत्यंत कष्टकारी है कि विक्रांत अगले सात-आठ माह में कतरा-कतरा होकर समाप्त हो जायेगा. जिस देश में नामचीन लोगों के कपड़े, औजार, मशीनें, कलम, घड़ी, रस्सी आदि जैसी छोटी-छोटी चीजें सुरक्षित रखकर उन पर झूठा गर्व किया जाता है; जिस देश में गुलामी के प्रतीकों को अपना बनाकर सहेजने की प्रवृत्ति लगातार देखने को मिल रही है; जिस देश में पैसे के लिए ठुमके लगाने वालों के मंदिरों-संग्रहालयों आदि की सुरक्षा में सरकारें तल्लीन रहती हैं उस देश के गौरव को नीलम होना पड़ा, अब हथौड़े की चोट सहना पड़ रहा है. ये भी देश का दुर्भाग्य है कि हमने अपने गौरवशाली प्रतीकों को विस्मृत करना लगातार जारी रखा है.
आने वाले समय में विक्रांत को पढ़ने-सुनने को भी कुछ नहीं मिलने वाला क्योंकि इस देश में इतिहास उसी का सुरक्षित रखा जा रहा है, जिसका कोई उच्च खानदान हो, कोई जबरन स्थापित किया गया वारिस हो और विक्रांत इस मामले में भी अभागा ही रहा. यदि ऐसा नहीं होता हो करोड़ों रुपये समाधियों, स्मारकों, संग्रहालयों, मूर्तियों, चौराहों आदि में फूंकने वाली सरकारें एक विक्रांत को संग्रहालय बनाकर भावी पीढ़ी को गौरवशाली अतीत का दर्शन नहीं करवा सकती थी? बहरहाल, समझा जा सकता है कि आने वाला समय कैसा होगा, कहाँ ले जायेगा. जहाँ की सरकारों ने देश की आज़ादी के लिए जान न्योछावर कर देने वाले वीर-वीरांगनाओं को विस्मृत कर रखा है; जहाँ की सरकारें दो-दो सपूतों की मृत्यु को आज भी संदेह के घेरे से बाहर न निकाल पाई हो; जहाँ की सरकारों ने पाठ्यक्रमों से हमारे पूर्वज, नैतिक शिक्षा जैसी सामग्री को पूर्णतः समाप्त करवा दिया हो; जहाँ की सरकारों के लिए बकरी की रस्सी, ट्रेन में यात्रा के दौरान इस्त्री करने वाली प्रेस, चश्मों के टूटे-फूटे फ्रेम, अंतःवस्त्रों आदि की सुरक्षा के लिए संग्रहालय बनवाने-रखरखाव करवाने-सुरक्षा करवाने हेतु बजट है वहाँ वास्तविक गौरव प्रतीक को सुरक्षित रख पाने हेतु बजट नहीं है, ये दुर्भाग्य नहीं तो और क्या है?
विक्रांत, तुम जाओ.. दफ़न हो जाओ... मिट जाओ, चंद नागरिकों को फर्क पड़ेगा किन्तु बहुतायत आज भी, अभी भी पिज़्ज़ा-बर्गर में व्यस्त होंगे; सरकारी तंत्र किसी की समाधि पर फूल चढ़ाने की तैयारी में जुटा होगा, किसी की समाधि पर जलती अग्नि न बुझे इसके इन्तेजाम में लगा होगा. हमें तुम पर गर्व है और हमेशा रहेगा, तुम भी उन सैनिकों के सहारे याद कर लिए जाया करोगे जिन्होंने तुम्हारी ताकत की छाँव में अपनी ताकत को सम्पूर्ण विश्व को दिखा दिया था. बस जाते-जाते कामना तुम ये करते जाना कि कम से कम तुम्हारा न सही, उन सैनिकों के स्मारक बन जाएँ, उन्हें सम्मान मिल जाये. अलविदा विक्रांत! 
चित्र गूगल छवियों से साभार 

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