26 जनवरी 2014

भारतीय ध्वज की विकास-यात्रा और भारतीय ध्वज संहिता




भारतीय आन-बान-शान का प्रतीक राष्ट्रीय ध्वज तीन रंगों से बना हुआ है इसी कारण इसे हम तिरंगा कह कर भी पुकारते हैं। ध्वज में सबसे ऊपर केसरिया रंग, बीच में सफ़ेद और सबसे नीचे गहरा हरा रंग समानुपातिक रूप में होता है। सफ़ेद पट्टी में बीचों-बीच गहरे नीले रंग का एक चक्र भी बना होता है, जिसको सारनाथ में स्थापित सिंह के शीर्षफलक के चक्र में दिखने वाले चक्र के रूप में परिभाषित किया गया है। इस चक्र में 24 तीलियाँ होती हैं। ध्‍वज को साधारण भाषा में झंडा भी कहा जाता है। झंडे की लम्‍बाई और चौड़ाई का अनुपात 3:2 होता है। राष्‍ट्रीय ध्‍वज को 22 जुलाई 1947 को भारत के संविधान द्वारा अपनाया गया था।
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राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे के संभी रंगों का अपना विशेष महत्त्व है. केसरिया रंग वैराग्य का रंग है। आज़ादी के दीवानों ने इसको अपने ध्वज में सबसे ऊपर इसी सोच के कारण स्थान दिया कि आने वाले दिनों में देश के नेता स्वार्थ छोड़ कर देश के विकास में खुद को समर्पित कर दें। तिरंगे का सफ़ेद रंग प्रकाश और शांति के प्रतीक के रूप में स्वीकार किया जाता है। हरे रंग को प्रकृति से सम्बंधित करके इसके माध्यम से संपन्नता को दर्शाया गया है। तिरंगे के केंद्र में स्थित चक्र गतिशीलता के साथ-साथ  अशोक चक्र धर्म के 24 नियमों की याद दिलाता है।
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पहला भारतीय ध्वज –   सन 1906 में पहली बार भारत का गैर आधिकारिक ध्‍वज फ़हराया गया। इसे सन 1904 में स्वामी विवेकानंद की शिष्या भगिनी निवेदिता द्वारा बनाया गया था। तत्पश्चात 7 अगस्त 1906 को बंगाल के विभाजन के विरोध में कलकत्ता में इसे कांग्रेस के अधिवेशन में फहराया गया था। हमारा पहला ध्वज लाल, पीले और हरे रंग की क्षैतिज पट्टियों से बना हुआ था। सबसे ऊपर की हरी पट्टी रखी गई थी जिसमें 8 आधे खिले हुए कमल के फूल थे। झंडे में सबसे नीचे लाल पट्टी में सूरज और चाँद बनाए गए थे। बीच की पीली पट्टी पर वन्दे मातरम् लिखा हुआ था।

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दूसरा भारतीय ध्वज-- दूसरा ध्वज भीकाजी कामा और उनके साथ निर्वासित किए गए कुछ क्रांतिकारियों द्वारा सन 1907 में फहराया गया था। कुछ लोगों मानना है कि ऐसा कार्य सन  1905 में हुआ था। बताया जाता है कि सुबह साढ़े आठ बजे इंडिया गेट पर लोगों की भीड़ ने  करतल ध्वनि के बीच यूनियन जैक को उतारकर इसी भारतीय राष्ट्रीय झंडे को फहराया था। इस दूसरे ध्वज में कुछ बदलाव भी किये गए, जिनमें सबसे ऊपर की हरी पट्टी का रंग हरे से केसरिया कर दिया गया और उसमें कमल के फूलों का स्थान सात तारों, जिन्हें सप्तऋषि के समकक्ष माना गया, ने ले लिया। सबसे नीचे की पट्टी का रंग भी लाल से परिवर्तित करके हरे में बदल दिया गया. शेष ध्वज पहले की तरह ही रहा। इस ध्‍वज को बर्लिन में हुए समाजवादी सम्‍मेलन में भी प्रदर्शित किया गया था।
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तीसरा भारतीय ध्वज -- भारतीय राजनीतिक संघर्ष सन 1917 तक आते-आते एक निश्चित मोड़ लिया। एनी बेसेंट और लोकमान्य तिलक ने अपने आंदोलन के दौरान इसे फहराया था। इस ध्‍वज में 5 लाल और 4 हरी क्षैतिज पट्टियाँ एक के बाद बनी हुई थीं और सप्‍तऋषि आकृति में इस पर सात सितारे बने हुए थे। बांये हिस्से में ऊपरी किनारे पर यूनियन जैक और दूसरे दायें कोने में सफ़ेद अर्धचंद्र और सितारा भी था।




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चौथा भारतीय ध्वज -- सन 1916 में एक ऐसे ध्वज की कल्पना की गई जो सभी भारतवासियों को एकसूत्र में बाँध सके। इस पहल को देखते हुए एक नेशनल फ़्लैग मिशन का गठन किया गया। सन 1921 में बेजवाड़ा (अब विजयवाड़ा) में अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सत्र के दौरान आंध्र प्रदेश के एक युवक ने एक झंडा बना कर महात्मा गांधी को दिया। इसमें दो रंगों को शामिल किया गया था। लाल और हरे रंग को दो प्रमुख समुदायों अर्थात हिन्‍दू और मुस्लिम के प्रतिनिधित्‍व के रूप में प्रदर्शित किया गया था। गांधी जी ने सुझाव दिया कि भारत के शेष समुदाय का प्रतिनिधित्‍व करने के लिए इसमें एक सफेद पट्टी और राष्‍ट्र की प्रगति का संकेत देने के लिए एक चलता हुआ चरखा होना चाहिए। इसी के चलते ध्वज का यह चौथा रूप सामने आया।
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पाँचवाँ भारतीय ध्वज -- वर्ष 1931 को ध्‍वज के इतिहास में एक यादगार वर्ष कहा जा सकता है। राष्ट्रीय ध्वज में रंग को लेकर तरह-तरह के वाद-विवाद चलते रहे। काफ़ी तर्क वितर्क के बाद भी जब सब एकमत नहीं हो पाए तो सन 1931 में अखिल भारतीय कांग्रेस के ध्वज को मूर्त रूप देने के लिए 7 सदस्यों की एक कमेटी बनाई गई। तिरंगे ध्‍वज को हमारे राष्‍ट्रीय ध्‍वज के रूप में अपनाने के लिए एक प्रस्‍ताव पारित किया गया। इस ध्‍वज का स्‍वरूप वर्तमान ध्वज की तरह ही (तीन रंगों – केसरिया, सफ़ेद और हरा को शामिल किया गया) रखा गया और मध्‍य में गांधी जी के चलते हुए चरखे को दर्शाया गया था। यह स्‍पष्‍ट रूप से बताया गया था कि इसका कोई साम्‍प्रदायिक महत्‍व नहीं है। 22 जुलाई 1947 को संविधान सभा ने इसे मुक्‍त भारतीय राष्‍ट्रीय ध्‍वज के रूप में अपनाया। स्‍वतंत्रता मिलने के बाद इसके रंग और उनका महत्‍व बना रहा।
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वर्तमान भारतीय ध्वज -- आज़ादी के परवानों ने इसी ध्वज के तले अनेक आंदोलन किए और 1947 में अंग्रेज़ों को भारत छोड़ने पर मजबूर कर दिया। आज़ादी की घोषणा से कुछ दिन पहले राष्ट्रीय ध्वज को नया रूप देने के लिए डॉ. राजेंद्र प्रसाद के नेतृत्व में एक कमेटी बनाई गई और तीन सप्ताह के भीतर ही 14 अगस्त को इस कमेटी ने अखिल भारतीय कांग्रेस के ध्वज को ही राष्ट्रीय ध्वज के रूप में मान्यता देने की सिफ़ारिश की। इसमें सिर्फ इतना परिवर्तन किया गया कि बीच की सफ़ेद पट्टी में चरखे के स्थान पर चक्र को प्रतिस्थापित किया गया। 15 अगस्त 1947 को यही तिरंगा हमारी आज़ादी और हमारे देश की आज़ादी का प्रतीक बन गया।
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तिरंगे का सम्मान : ध्वज के सम्मान की बात भी स्पष्ट कर दी गई कि ध्वज फहराने के समय किस आचरण संहिता का ध्यान रखा जाना चाहिए। राष्ट्रीय ध्वज कभी भूमि पर नहीं गिरना चाहिए और ना ही धरातल के संपर्क में आना चाहिए। सन 2005 के पहले तक इसे वर्दियों और परिधानों में उपयोग में नहीं लाया जा सकता था, लेकिन सन 2005 में फिर एक संशोधन के साथ भारतीय नागरिकों को इसका अधिकार दिया गया लेकिन इसमें ध्यान रखने वाली बात ये है ये किसी भी वस्त्र पर कमर के नीचे नहीं होना चाहिए। राष्ट्रीय ध्वज कभी अधोवस्त्र के रूप में नहीं पहना जा सकता है।
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भारत का राष्ट्रीय झंडा, भारत के लोगों की आशाओं और आकांक्षाओं का प्रतिरूप है। यह हमारे राष्ट्रीय गौरव का प्रतीक है। सभी के मार्गदर्शन और हित के लिए भारतीय ध्वज संहिता-2002 में सभी नियमों, रिवाजों, औपचारिकताओं और निर्देशों को एक साथ लाने का प्रयास किया गया है। ध्वज संहिता-भारत के स्थान पर भारतीय ध्वज संहिता-2002 को 26 जनवरी 2002 से लागू किया गया है।
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झंडा फहराने का सही तरीका
* जब भी झंडा फहराया जाए तो उसे सम्मानपूर्ण स्थान दिया जाए। उसे ऐसी जगह लगाया जाए, जहाँ से वह स्पष्ट रूप से दिखाई दे।

* सरकारी भवन पर झंडा रविवार और अन्य छुट्टियों के दिनों में भी सूर्योदय से सूर्यास्त तक फहराया जाता है, विशेष अवसरों पर इसे रात को भी फहराया जा सकता है, जिसके अलग से प्रावधान किये गए हैं।

* झंडे को सदा स्फूर्ति से फहराया जाए और धीरे-धीरे आदर के साथ उतारा जाए। फहराते और उतारते समय बिगुल बजाया जाता है तो इस बात का ध्यान रखा जाए कि झंडे को बिगुल की आवाज के साथ ही फहराया और उतारा जाए।

* जब झंडा किसी भवन की खिड़की, बालकनी या अगले हिस्से से आड़ा या तिरछा फहराया जाए तो झंडे को बिगुल की आवाज के साथ ही फहराया और उतारा जाए।

* झंडे का प्रदर्शन सभा मंच पर किया जाता है तो उसे इस प्रकार फहराया जाएगा कि जब वक्ता का मुँह श्रोताओं की ओर हो तो झंडा उनके दाहिने ओर हो।

* झंडा किसी अधिकारी की गाड़ी पर लगाया जाए तो उसे सामने की ओर बीचोंबीच या कार के दाईं ओर लगाया जाए।

* फटा या मैला झंडा नहीं फहराया जाता है।

* झंडा केवल राष्ट्रीय शोक के अवसर पर ही आधा झुका रहता है।

* किसी दूसरे झंडे या पताका को राष्ट्रीय झंडे से ऊँचा या ऊपर नहीं लगाया जाएगा, न ही बराबर में रखा जाएगा।

* झंडे पर कुछ भी लिखा या छपा नहीं होना चाहिए।

* जब झंडा फट जाए या मैला हो जाए तो उसे एकांत में पूरा नष्ट किया जाए।
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आइये हम सब अपने राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे को सम्मान दें और देश की आज़ादी के लिए अपनी जान न्योछावर कर देने वाले शहीदों को सच्ची श्रद्धांजलि प्रदान करें। जय हिन्द.... 

1 टिप्पणी:

  1. रोचक जानकारी, विशेष रूप से नई पीढ़ी के लिए तो अत्यंत महत्वपूर्ण🌹🙏

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