27 अक्तूबर 2013

खुदाई में सरकारी नीयत भी संदेहास्पद




बाबा को दिखाई दिए एक सपने के बाद खण्डहर में बदल चुके किले में खजाने की खोज होने लगी है. एक सप्ताह से अधिक समयावधि में खुदाई होने के बाद भी कुछ हड्डियों, कुछ कीलों, दीवारों, मटके के अलावा कुछ नहीं मिला है. खजाना तो बाद की बात है, वहाँ फूटी कौड़ी भी नहीं मिल सकी है. शोभन सरकार, जिन्हें स्वप्न आया था और उनके चेले ओम महाराज, जो लगातार खजाना मिलने का सीना ठोंक दावा कर रहे हैं, पर मुकदमा चलाये जाने की सरकारी मंशा के सामने आने की खबर आई है. पर देखा जाये तो प्रथम दृष्टया इस मसले पर केवल दो बाबा-संत ही आरोपी किस आधार पर बनाये जा सकते हैं? स्वप्न के आधार पर सोना या कुछ भी मिलने की चर्चा से अन्धविश्वास को बढ़ावा मिलता है, किन्तु यहाँ मसला दूसरी तरह का हो गया है. इन दो बाबाओं-संतों ने खजाने की खोज के लिए सरकार पर कोई जोर नहीं डाला था, कोई अनशन या जनान्दोलन नहीं किया था. इस मामले में यदि इन बाबाओं को आरोपी बनाया जाता है तो सरकार, सरकारी तंत्र, प्रशासनिक अधिकारी भी आरोपी होने चाहिए जिन्होंने एक स्वप्न के आधार पर खुदाई का काम शुरू किया.
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एक तरफ विज्ञान की बातों को बढ़ाया जा रहा है वहीं दूसरी ओर सपने के आधार पर खुदाई का काम शुरू किया जाता है, यह तो अपने आपमें ही हास्यास्पद समझ आता है. समाज में आमतौर पर ये धारणा बनी हुई है कि साधू-संन्यासी-संत आदि अपने कृत्यों से अन्धविश्वास फ़ैलाने का काम करते हैं, धर्म के नाम पर आम जनमानस को बहकाने का काम करते हैं, किन्तु यहाँ सरकार ने किस आधार पर खजाने की खोज हेतु खुदाई का आदेश दिया, जबकि सरकार के पास पुरातत्त्व, भूविज्ञान से एएसआई, जीएसआई नामक संस्थाएँ भी हैं. इन संस्थाओं के माध्यम से पहले वास्तविकता को जांच-परख लेना चाहिए था, उसी के बाद आगे की कार्यवाही करनी चाहिए थी. अब शोभन सरकार के, ओम महाराज के दावों पर सवाल उठाया जा रहा है तो सरकार की नीयत पर भी सवाल उठाये जाने चाहिए. यदि इस खुदाई के पूर्व कोई सर्वेक्षण करवाया गया है तो सरकार को अन्धविश्वास मिटाने की नियत से सर्वेक्षण रिपोर्ट का खुलासा करना चाहिए और यदि खुदाई का काम बिना किसी सर्वेक्षण के शुरू हुआ है तो सरकार भी उतनी दोषी है जितने ये दो साधू-संत दोषी हैं.
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इधर एक सप्ताह से अधिक का समय निकल जाने के बाद भी खजाने की झलक भी न मिल पाने से जनमानस में अन्धविश्वास भले ही न फैला हो पर अब अलग-अलग विचारधाराएँ अवश्य फैलने लगी हैं. लोगों में अजब-अजब तरीके के कयास लगाये जाने लगे हैं. कोई इस खुदाई को तत्कालीन संग्राम के हथियारों की खोज मान रहा है तो कोई एक पूर्व प्रधानमंत्री द्वारा खजाना गड़बाये जाने की अफवाह को पुनर्जीवित करने में लगा है. कोई इसे साधू-संतों को कठघरे में खड़ा करके हिन्दू धर्म को कलंकित करने की बात करता है तो कोई वर्तमान मंहगाई-भ्रष्टाचार आदि से जनमानस का ध्यान हटाने की चर्चा कर रहा है. असलियत क्या है ये तो समय आने पर, खुदाई पूरा होने पर पता चलेगा किन्तु सरकार को इन दो संतों पर कानूनी कार्यवाही करने के पूर्व खुद को भी कटघरे में खड़ा करना पड़ेगा.


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