11 अक्तूबर 2013

हाय सचिन, तुम बड़ी जल्दी चले गए, हमें छोड़ के




हाय सचिन! (हाय-हाय नहीं कहा है...)
हाँ तो, हाय सचिन! तुम इतनी जल्दी चले गए, हमें छोड़ के...(छोड़ने का गलत अर्थ न लगिएगा..). अभी कुछ दिन तो और रुकना था...हमारे लिए न सही तो अपने रिकॉर्ड के लिए ही रुक लेते (हमारे लिए तो वैसे तुम अब मैदान में रुक ही नहीं पा रहे थे) अभी तो टीम-प्रबंधन तुमको कई-कई वर्षों तक ढोने के मूड में दिख रहा था. बाहर वालों का क्या है, वे तो बकबकाते ही रहते हैं...बकबकाते रहेंगे...पर तुमको भगवान के चोले में लिपटे रहकर अभी कुछ और रिकॉर्ड के लिए रुकना था. ‘रिकॉर्ड पर मेरी नज़र नहीं रहती’ का रिकॉर्ड बार-बार बजा कर तुम अपने को महान साबित करने में लगे रहे और उम्र को बल्ले पर हावी करते रहे. यदि रिकॉर्ड पर तुम्हारी नज़र नहीं रही होती तो अपनी असल महानता के समय संन्यास की चर्चा की होती. इसके लिए भी तुम दो सौ टेस्ट की आंकड़ेबाजी में न फंसे होते. तुमको शायद लिटिल मास्टर याद होंगे, जिनके संन्यास की घोषणा पर समूचे क्रिकेट-प्रेमियों ने समवेत स्वर में उनसे वापसी की गुहार लगाई थी. याद आया....पर तुम्हारे संन्यास से बहुतों ने राहत की सांस ली होगी, कि चलो अब किसी नए को मौका मिलेगा. बार-बार तुम्हारा ही शून्य देखने को नहीं मिलेगा.
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ओ सचिन! तुम्हारे इस तन्हा-शांत-शांत से संन्यासी माहौल को देख कपिल देव का संन्यास याद आ गया. वे भी रिकॉर्ड आंकड़ेबाजी के लिए एक-एक विकेट को हाँफते-जूझते रहे और श्रीनाथ बाहर बैठे-बैठे अपनी गेंद को अपनी पेंट पर रगड़ने के साथ-साथ अपनी एडियाँ भी रगड़ते रहे. इसमें कोई शक नहीं कि तुमने हपक के अपना बल्ला चमकाया...क्रिकेट को नई ऊँचाइयों तक पहुँचाया...अनछुए रिकॉर्ड को छूने लायक बनाया....पर समय के साथ गेंद की चमक की तरह तुम्हारी बल्लेबाज़ी की चमक-धार चली गई थी. यदा-कदा तो भीगे कारतूस भी फट पड़ते हैं...तुम भी कुछ वैसी ही हरकतें करने लगे थे. कभी एकाएक फट पड़ते और भगवान की कुर्सी से गिरते-गिरते फिर उस पर चिपक लेते. वैसे इसमें तुम्हारा भी कोई कसूर नहीं था, ये तो विज्ञापन सम्बन्धी क्रिकेट-व्यावसायिकता कही जाएगी जो तुम्हारे गीलेपन को धूप बनकर सुखाने में लगी थी.  इसी क्रिकेट-व्यावसायिकता के चलते तुम अपने पिता की मृत्यु पर भी नहीं थमे और ये भोले-नादान-पागल क्रिकेट-प्रेमी, तुम्हारे भक्त समझते हैं कि तुम क्रिकेट के प्रति अपना समर्पण दिखाने को अपना कष्ट भुलाकर चले गए थे. वाह रे समर्पण! वाह री दीवानगी! अनुबंधों पर टिकी व्यावसायिकता की दुनिया में सम्बन्ध-कष्ट-रिश्ते-सुख कैसे हवा हो जाते हैं, ये बात ये नादान क्या जानें.
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वाह रे सचिन! तुम तो खेलते रहे, विज्ञापन करते रहे, रिकॉर्ड बनाते रहे, नोट छापते रहे और...और...और......बस. तुमने देश से सम्मान लिया, भगवान का दर्जा लिया, लाखों-करोड़ों प्रशंसक लिए, तालियों-जय-जयकारों का शोर लिया पर तुमने वापसी में क्या दिया? (चोरी-छिपे क्या किया ये तुम्हारी धरोहर है...देश की सम्पदा क्या है). तुमको महान बताया गया कि तुमने शराब के, नशीले उत्पादों के विज्ञापन नहीं किये...पर तुम्हीं वो व्यक्ति थे जिसने अपनी कार के लिए शुल्क में छूट देने की बात कही थी; वायु सेना की मानद पदवी (कैप्टन रैंक) का तुम सम्मान भी नहीं कर सके; अपने चौके-छक्के पर, एक-दो रनों पर चीखते युवाओं को देश-सेवा के लिए प्रेरित न कर सके; भ्रष्टाचार की लड़ाई में सामने न आ सके; महिलाओं-बच्चियों के साथ होते बलात्कार के विरोध में न खड़े हो सके और तो और जाते-जाते, जाने की तैयारी करते-करते आकंठ भ्रष्टाचार में डूबे दल के गले लटक राज्यसभा पहुँच गए. अपनी महानता की चकाचौंध में तुम पद-लोलुपता में कैसे घिर गए...क्या यहाँ भी कोई आँकड़ा तुमको दिख रहा था; क्या यहाँ भी कोई रिकॉर्ड तुमको बनाना था?
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प्रिय सचिन! हो सकता है कि तुम्हारी हर सफलता-असफलता पर चापलूसी की हद तक उतरने वाले तुम्हारे प्रशंसकों को, मीडिया को, कमेंट्री करने वालों को अवश्य ही कुछ दिन सूना-सूना लगेगा पर तुम उदास न हो ये सब भी बहुत ही जल्द किसी और को सामने स्थापित कर लेंगे; तुम्हारे भक्त किसी दूसरे में अपना भगवान तलाश लेंगे. इस समाज को रिक्त स्थान की पूर्ति करना बहुत अच्छे से आता है और बहुत जल्दी आता है. अरे, तुम तो महज एक खेल से, खेल के मैदान से जुड़े थे, जहाँ किसी के आने या चले जाने का देश-सञ्चालन पर प्रभाव नहीं पड़ता. यहाँ तो देश ने अपने सच्चे-असली नेताओं को खोने के बाद भी खुद को जीवित बनाये रखा; अपने श्रेष्ठ राजनीतिज्ञों के अलविदा कह देने के बाद भी अपनी राजनैतिक-गतिविधियों पर विराम नहीं लगने दिया; विदेशी हमलों के बाद भी खुद को बिखरने नहीं दिया; पड़ोसी देशों की कुत्सित हरकतों के बाद भी खुद को पंगु नहीं होने दिया वो एक तुम्हारे संन्यास से रुकने वाला नहीं है. इसलिए तुम क्रिकेट के सूनेपन को लेकर उदास न होना. तुम्हारी कमाई के लिए विज्ञापन अभी भी तुम्हारे पास हैं...तुम्हारे अनुबंधों पर संन्यास का कोई असर नहीं पड़ेगा, ऐसा समाचारों में आया है. बाकी संसद-सदस्यता तुम्हारे पास है, हाथ का पंजा तुम्हारे साथ है. वैसे हमने कभी तुमको नमस्कार सचिन भी नहीं कहा इसलिए ये कहने का अधिकार नहीं बनता है, फिर भी...जी ललचाये....बिना कहे रहा न जाए...इसलिए कहे देते हैं..... अलविदा सचिन.

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