30 अगस्त 2013

रुपये की कीमत का लगातार गिरना चिंताजनक




डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत में गिरावट का दौर लगातार जारी है. सरकारी स्तर पर क्या प्रयास हो रहे हैं, ये वही जाने क्योंकि अभी तक कोई भी प्रयास सामने होता दिखा नहीं है. जिस तरह से भारतीय मुद्रा लगातार गिर रही है वह अर्थव्यवस्था के लिए वाकई चिंता का विषय है. रुपये की गिरावट के शुरुआती दौर में सरकार द्वारा, सरकार समर्थकों द्वारा वैश्विक आर्थिक स्थिति का हवाला देकर रुपये की कमजोरी को स्वाभाविक मान रहे थे किन्तु सत्यता ये कतई नहीं है. वैश्विक आर्थिक हालात इस कदर भयावह नहीं हैं, जितना भयावह रूप भारतीय मुद्रा का हो गया है.
.
रुपये की गिरती कीमत के सन्दर्भ में ये ध्यान रखने योग्य है कि कई बार कुछ देश अपनी आर्थिक स्थिति के हिसाब से अपनी मुद्रा का अवमूल्यन करते हैं. इसके पीछे उन देशों का उद्देश्य निर्यातों को बढ़ावा देना, आयातों को कम करना होता है. ऐसा करने से सम्बंधित देश का विदेशी मुद्रा-भंडार बढ़ता ही है. भारतीय रुपये के साथ भी पूर्व में कई बार मुद्रा अवमूल्यन किया जा चुका है किन्तु वर्तमान में सरकार की तरफ से ऐसा कोई संकेत नहीं दिया गया है. यदि मुद्रा अवमूल्यन किया भी गया होता तो रुपये की कीमत का लगातार गिरना नहीं हो रहा होता. इस सम्बन्ध में सरकार तो सुस्ती दिखा ही रही है, रिजर्व बैंक ने भी हाथ बांध रखे हैं. फिर भी यदि एक पल को ये मान भी लिया जाये कि सरकार ने बिना जानकारी दिए अप्रत्यक्ष रूप से मुद्रा अवमूल्यन जैसा कदम उठाया है तो उसका कोई लाभ होता तो दिखा ही नहीं. निर्यात बढे हों या न बढ़ें हों किन्तु आयातों में किसी तरह की कमी देखने को नहीं मिल रही है. आयात घटने, निर्यात बढ़ने के स्थान पर यहाँ तो अवमूल्यन का ऋणात्मक असर ही देखने को मिला है.
.
अर्थशास्त्र सिद्धांत के अनुसार कई बार देश अपनी मुद्रा का अवमूल्यन भुगतान असुंतलन की विषमता को दूर करने, कम करने के लिए और कई बार दूसरे देशों द्वारा राशिपातन जैसी स्थिति से बचने के लिए भी किया जाता है. राशिपातन वह स्थिति है जहाँ कोई देश किसी दूसरे देश में अपना उत्पाद लागत से भी कम मूल्य पर बेचता है. ऐसा करने के पीछे उस देश का उद्देश्य दूसरे देश के उद्योग धंधों को नष्ट करना होता है. यदि इसी राशिपातन को ध्यान में रखा जाये तो स्पष्ट रूप से दिखाई देता है कि हमारे देश में चीन लगातार अपने उत्पादों को कम से कम कीमत में खपाने में लगा है. लगभग प्रत्येक क्षेत्र में, लगभग प्रत्येक उत्पाद को देश के बाज़ार में न्यूनतम मूल्य पर खपाने के पीछे चीन की मंशा हमारे देश के उद्योग धंधों को नष्ट करने की भले ही न रही हो पर ये बात किसी से छिपी नहीं है कि हमारे कुटीर उद्योग, लघु उद्योग अपनी अकाल मृत्यु को प्राप्त हो चुके हैं. इसके बाद भी नहीं लगता कि सरकार ने इस राशिपातन को रोकने की दृष्टि से मुद्रा अवमूल्यन किया होगा.
.
बहरहाल मुद्रा कीमत का ये संकट सरकार की अपनी कमजोर आर्थिक नीतियों का परिणाम है. ये जानने-समझने की बात है कि जिस तरह से देश में भ्रष्टाचार-घोटालों का आलम लगभग नित्य ही देखने को मिल रहा है, घरेलू बाज़ार जिस तरह से मंहगाई की राह पकड़ता जा रहा है, जिस तरह से हमारे उत्पादों की लागत लगातार बढ़ती जा रही है उसको देखते हुए रुपये का कमजोर होना स्वाभाविक लगता है. पेट्रोलियम पदार्थों का अंधाधुंध होता दुरुपयोग हम अभी तक रोक नहीं पाए हैं ऐसे में हमें विदेशी मुद्रा का एक बहुत बड़ा भाग इसी पर व्यय करना पड़ता है. विदेशों से हमारा लेन-देन अधिकतर डॉलर के रूप में होता है, इसके चलते भी डॉलर की स्थिति में भी असंतुलन पैदा हो जाता है. किसी समय में भारतीय अर्थव्यवस्था को लाभकारी समझकर विदेशी निवेशकों द्वारा निवेश किये गए अत्यधिक धन की वापसी ने भी मुद्रा-संकट को जन्म दिया है. लाखों-करोड़ों डॉलर का विदेशी कर्ज भी हमारी अर्थव्यवस्था पर बोझ बना हुआ है. इसके अतिरिक्त कई अन्य कारण भी हैं जो रुपये कीमत को कम कर रहे हैं. सोना गिरवी रखना अल्पकालिक समाधान हो सकता है किन्तु जिस तरह से उत्पादों की कीमतों में वृद्धि और रुपये की कीमत में गिरावट देखने को मिल रही है उसे देखते हुए कोई दीर्घकालिक कदम सरकार को उठाने ही होंगे. ऐसा न हो पाने की स्थिति में देश की अर्थव्यवस्था भयंकर संकट के दौर में घिर जाएगी. हम वैश्विक स्तर पर भले ही दिवालिया घोषित न किये जाएँ पर कहीं न कहीं इसके पासंग हो जायेंगे.

1 टिप्पणी:

  1. Thanks for sharing, nice post! Post really provice useful information!

    Giaonhan247 chuyên dịch vụ mua hàng mỹ từ dịch vụ order hàng mỹ hay nhận mua nước hoa pháp từ website nổi tiếng hàng đầu nước Mỹ mua hàng ebay ship về VN uy tín, giá rẻ.

    जवाब देंहटाएं