06 मार्च 2013

भांडगीरी इतनी भी न करो ए हुजूर



          आज एक बोधकथा से अपनी बात को शुरू करने का मन कर रहा है। एक महाराज जी थे जो हमेशा चाटुकारों से, भांड़ों से, विदूषकों से घिरे रहते थे। महाराज कोई भी काम करते ये सारे तत्व उनकी वाहवाही में जुट जाते। शिकार करना भी महाराज के विशेष शौक में एक था। आये दिन अपनी बन्दूक लेकर निकल पड़ते और हमेशा पक्षियों के उड़ते झुंड पर ही गोली चलाते। इस कारण से कोई न कोई पक्षी मर ही जाता और उनके साथ अपनी चाटुकारिता, भांड़गीरी करते लोगों को महाराज की वाहवाही करने का अवसर मिल जाता। सब महाराज के उड़ते में निशाना लगाने की तारीफ करते और महाराज भी सीना चौड़ा करके उन सभी को कुछ न कुछ पारितोषिक देते। एक दिन दुर्भाग्य से महाराज की बन्दूक की चपेट में कोई भी उड़ता पंछी नहीं आया। अब सारे चाटुकारों की, विदूषकों की, भांड़ों की हालत पतली हो गई, उन्हें समझ में ही नहीं आ रहा था कि अब क्या किया जाये। इस असमंजस की स्थिति में एक चाटुकार का दिमाग चला और वो पूरी ताकत से वाहवाही के अंदाज में चिल्लाया-‘‘वाह महाराज! क्या बचाके बन्दूक दागी, एक भी पंछी को गोली से मरने नहीं दिया।’’ बस फिर क्या था, सारे चाटुकार, विदूषक, भांड़ उसी के स्वर में स्वर मिलाकर वाहवाही करने लगे। महाराज भी मंद-मंद मुस्कुराते हुए सीना फुलाकर उन सभी को गर्व से देखने लगे।
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          इन्हीं चाटुकारों, विदूषकों, भांड़ों जैसी स्थिति आज देश के एक राष्टीय दल के पदाधिकारियों की, समर्थकों की हो गई है। एक दूसरे दल की गतिविधियों के आधार पर इस दल के चाटुकार, विदूषक, भांड़ अपनी-अपनी तरह से उस काम की व्याख्या करते हुए अपने दल के आकाओं को प्रसन्न करने की कोशिश में लग जाते हैं। मोदी ने आकर अपना भाषण देना शुरू किया तो इन समर्थकों के पेट में पीर हुई और लगे चिल्लाने। भाषण समाप्त हुआ तो इन्हीं चाटुकारों ने अपनी जुबान से आंय-बांय बकना शुरू कर दिया। इसी बीच मोदी को बाहर भाषण देने जाना था तो इन्हीं विदूषकों में कोमा जैसे हालात दिख रहे थे और अब जबकि मोदी का वहां जाना रद्द हो गया है तो भी इन भांड़ों को चैन नसीब नहीं हुआ है। ये सब किसी न किसी रूप में अभी भी इस बात के प्रयास में हैं कि उनके आका किसी तरह उन पर प्रसन्न होकर कुछ पारितोषिक दे बैठें। कुछ तो मोदी के आमंत्रण को वहां के आयोजकों द्वारा रद्द करने को अन्तर्राष्ट्रीय मंच पर देश का अपमान बताकर अपने दल के गौरवशाली अतीत को भुलाने की कोशिश कर रहे हैं।
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          हो सकता है कि मोदी को पहले आमंत्रण मिलना फिर वहीं के तीन भारतीय मूल के लोगों द्वारा विरोध प्रदर्शन, आपत्ति के बाद मोदी का आमंत्रण रद्द करना किसी मायने में देश की अन्तर्राष्ट्रीय साख को कम करता हो किन्तु जिस दल के ये समर्थक अपनी चाटुकारिता, विदूषकपना, भांड़गीरी दिखा रहे हैं उनके आकाओं द्वारा जो-जो भी अभी हाल के दिनों में किया गया है, उससे भी तो देश की मर्यादा बढ़ती नहीं है। इसके विस्तार में जाये बिना उन गौरवशाली कार्यों को स्मरण किया जाना ही काफी होगा जो इन चाटुकारों, विदूषकों, भांड़ों के आकाओं ने किये हैं। कॉमनवेल्थ घोटाला, टू जी स्पैक्ट्रम घोटाला, कोयला घोटाला, जीजाजी घोटाला, सैन्य सामग्री घोटाला, विकलांगों की सहायता राशि सम्बन्धी घोटाला, बलात्कार, पोर्न वीडियो में उच्च पदस्थजनों की संलिप्तता, आतंकवादियों को सम्मानजनक शब्दों से नवाजने की घटनायें, उच्च पदस्थ मंत्रियों का बिना विचार के बयानबाजी करना और फिर उसको स्वीकारना, पुरानी और नई पत्नी की व्याख्या समझाना, शान्तिपूर्ण चल रहे आन्दोलन में देर रात लाठीचार्ज करवा देना, देश की राजधानी में बलात्कार की, सामूहिक बलात्कार की वीभत्स घटनाओं का होते रहना, संसद में लिखित आश्वासन देकर भी जनलोकपाल के बनाये जाने से मुकर जाना, केन्द्र सरकार बचाये रखने के लिए सहयोगियों में सीबीआई की जांच का भय दिखाना, भरपूर जनविरोध के बाद भी एफडीआई का लागू किया जाना, मंहगाई को काबू न कर पाना, एक आम आदमी की दैनिक आवश्यकता के लिए हास्यास्पद-विद्रूपतापूर्ण राशि का निर्धारण करना आदि-आदि ऐसी घटनायें हैं जो किसी भी रूप में देश की गरिमा को अन्तर्राष्ट्रीय मंच पर बढ़ाती नहीं हैं।
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          मोदी का भाषण देने बुलाया जाना अथवा न बुलाया जाना एक अलग विषय हो सकता है। किसी भी घटना पर दो राजनैतिक दलों के अपने-अपने विभेद, अपनी सहमति-असहमति हो सकती हैं किन्तु जिस तरह से एक दल विशेष के समर्थकों, चाटुकारों, विदूषकों, भांड़ों के द्वारा अपने काले इतिहास को, अपने काले कारनामों को भूल कर, अपने आकाओं की विद्रूपतापूर्ण हरकतों को विस्मृत करके एक छोटी सी घटना को आधार बनाकर देश की मर्यादा का हनन बताया जा रहा है, वह वाकई निन्दनीय है। ऐसी ही हरकतों से उपर वर्णित बोधकथा अकस्मात याद आती है और देश में आज भी अपनी-अपनी तरह से काम कर रहे चाटुकारों, विदूषकों, भांड़ों की याद दिलाता है। इनकी ऐसी हरकतें सामने वाले को हंसाती नहीं, गर्वित नहीं करती वरन् सोचने पर विवश करती हैं कि 21वीं सदी में भी किस तरह कुछ लोग चाटुकारिता का, विदूषकपने का, भांड़गीरी का काम करके अपने आकाओं को प्रसन्न करने में लगे हैं और स्वयं भी झूठी शान में इतराये से घूम रहे हैं।
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