23 अक्तूबर 2011

चलिए औपचारिकता मे ही सही --- दीपावली की शुभकामनायें


त्यौहार आने की आहट हुई और बस शुरू हो गये औपचारिकताबाज अपने अपने संसाधनों को साफ करने में। कोई कोई तो आज के दो दिनों पहले से ही मोबाइल को परेशानी में डालकर संदेश पर संदेश छोड़े जा रहा है, मानो जैसे अब चूके तो बस चूके। इसी तरह से इंटरनेट पर भी जहां निगाह डाल दो..दे शुभकामनायें..दे शुभकामनायें। अरे भई आदमी अभी लगा है अपने घर को पोतने में, चूना-कलई--अरे! क्षमा करियेगा, अब चूना-कलई कहां है--- हां तो, अभी आदमी लगा है डिस्टेम्पर करवाने में, कोई अच्छा सा मंहगा कलर करवाने में। कुछ भी गिर जाये, कुछ भी लिख दिया जाये तो बस एक झटके में, कपड़े से साफ...बिलकुल टी0वी0 के विज्ञापन की माफिक...बोले तो झक्कास।

अब भैया हम भी ठहरे आप सभी की तरह के आम आदमी तो हम भी आ गये तमाम सारी औपचारिकताओं के लपेटे में। कुछ हम भी करने की जुगाड़ में लग गये। समझ नहीं आया कि का किया जाये..मोबाइल में चार्ज करवाया एक संदेश को सस्ता बना देने वाला कार्ड और बना बैठे ससुरा एक बड़ा ही बुद्धिजीवियों टाइप वाला मैसेज....अब कल समय देखकर हम भी भरमार मचा देंगे सभी के मोबाइल के इनबॉक्स में।

ये तो रही संदेश भेजने वाली बात....दिमाग अभी भी संतुष्ट नहीं हुआ था। कुछ मीठा हो जाये की तर्ज पर..इस दीपावली आप किसे खुश कर रहे हैं पर चांस लेने की सोच रहे हैं। अपने आसपास निगाह दौड़ाई तो कोई सेक्रेटरी टाइप की कोई भी नहीं दिखाई दी जिसको कोई आदेश दें और वो मेज की दराज में चॉकलेट का डिब्बा देख हमें भी हैप्पी दीपावली कह दे। हाय रे...अब सोचा कि चलो किसी पुराने बाबा टाइप के किसी उम्रदराज को खोजें, जिसे कभी किसी भी रूप में परेशान किया हो...पर इधर भी नाकामी हाथ लगी। न मिले कोई भी बाबा टाइप क्योंकि वे तो पहले से ही लम्बी दूरी की मिसाइल बनकर हमसे बहुत दूर जा चुके हैं।

मन तो कर रहा था कि इन टी0वी0 वालों को निकाल कर टी0वी0 से दो-चार अच्छे रैपटे लगा ही दें पर क्या करें, यही तरक्की नहीं हो पाई हमारी तकनीकी विकास यात्रा में। यदि हो जाती तो समझ लीजिये कि नेता तो आना बन्द ही कर देते टी0वी0 पर। चर्चा में भटकाव नहीं, टी0वी0 पर देख-देख कर कि इस बार दीपावली पर मिठाई की जगह पर चॉकलेट का आदान-प्रदान करना होगा, हमारा मन वैसे भी मिठाइयों की तरफ जा नहीं रहा था। कैसी सुन्दर सी, हसीन सी चॉकलेट और कहां वही रूखी सी, पुरानी ढर्रे की मिठाई। देने में भी शर्म...लेने में भी शर्म। हाय रे!!!

चलो इस बारे में उसी दिन तक सोचेंगे कि क्या देना है....काश कोई आ ही जाये चॉकलेट देने वाला। बस एक दो न दे...पूरा का पूरा डिब्बा दे जाये। अब तो हम बैठे रहते हैं पूरे दिन टी0वी0 के सामने, चॉकलेट के मनपसंद रूप-रंग को देख-देख कर मुंह में पानी भरते रहते हैं, जब तक कि कोई इस दीपावली पर देने नहीं आ जाता। बाकी तो सब मजे में ही है। चलो अब हम भी औपचारिकता का निर्वाह कर दें नहीं तो आप सभी बुरा मान जायेंगे....।

तो इसी बात पर आप सभी को दीपावली की शुभकामनायें। इस दीपावली के दीयों की रोशनी में सभी के अंधियारे मिट जायें..सुख-समृद्धि-सम्पन्नता का प्रकाश सभी के जीवन में सदा-सदा को फैलता रहे।

अरे कल भी आयेंगे...शुभकामनायें देने....अभी तो औपचारिकता मान लीजिये....कल व्यवहार निभाने आयेंगे।









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